रांची: झारखंड की स्थापना वनों और जंगलों के बुनियाद पर हुई थी. झारखंड में एक से एक घने जंगल और पहाड़ मौजूद हैं, जो राज्य की खूबसूरती को चार चांद लगाते हैं. इसलिए झारखंड में वन विभाग के ऊपर कई जिम्मेदारियां हैं, क्योंकि झारखंड की पहचान यहां के जंगलों से है. वहीं झारखंड की पहचान को बचाने के लिए वन एवं पर्यावरण विभाग की तरफ से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. झारखंड में मौजूद जंगलों में विचरण करने वाले जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिए भी कई योजनाएं क्रियान्वित हैं.
ये भी पढ़ें-जानिए, क्यों दिखावा बनकर रह गया है झारखंड में पर्यावरण संरक्षण को लेकर वृक्षारोपण का कार्यक्रम
झारखंड में 23 वर्षों में 1200 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में बढ़ोतरीः झारखंड के मुख्य वन संरक्षक संजय श्रीवास्तव बताते हैं कि पिछले 23 वर्षों में राज्य का वन विभाग झारखंड के जंगलों को संरक्षित करने के लिए लगातार काम कर रहा है. उन्होंने बताया कि वन विभाग के कार्यों के परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं. झारखंड में पिछले 23 वर्षों में करीब 1200 वर्ग किलोमीटर जंगली क्षेत्र में बढ़ोतरी हुई है. उन्होंने बताया कि वन समिति और वन विभाग के कर्मचारियों के सहयोग से झारखंड के जंगली क्षेत्र में बढ़ोतरी हो पाई है. मुख्य वन संरक्षक ने बताया कि झारखंड देश के चुनिंदा राज्यों में एक है जहां प्रत्येक दो वर्ष वन क्षेत्र में बढ़ोतरी हो रही है. पिछले दो वर्षों में करीब 110 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में बढ़ोतरी हुई है.
इस वर्ष करीब ढाई करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्यःमुख्य वन संरक्षक संजय श्रीवास्तव ने बताया कि झारखंड में पौधरोपण का कार्यक्रम भी युद्ध स्तर पर चल रहा है. इस वर्ष करीब ढाई करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है. उन्होंने आगे बताया कि शहरों में भी लोगों को प्रकृति के करीब रहने का अहसास हो इसके लिए नगर वन योजना की शुरुआत की जाएगी. राज्य के छह जिलों में इस योजना की शुरुआत की जाएगी. इस योजना के तहत शहरों में जगह-जगह पेड़-पौधे लगाकर जंगल जैसा माहौल तैयार किया जाएगा.
दुमका के मसानजोर को इको टूरिज्म के रूप में विकसित किया जाएगाःउन्होंने बताया कि साहिबगंज में फॉसिल्स पार्क, दुमका और रांची में हाल ही में बायोडायवर्सिटी पार्क बनाए गए हैं. इसके अलावा दुमका के मसानजोर को भी इको टूरिज्म के रूप में विकसित किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इस तरह की पहल के बाद ना सिर्फ लोगों को बेहतर वातावरण नहीं मिलेगा, बल्कि आसपास रहने वाले स्थानीय लोगों को रोजगार के साधन भी मिल पाएंगे.
जंगलों में आग लगने की घटना को रोकने के लिए किए जा रहे उपायः झारखंड जैसे राज्यों में जंगलों में आग लगने की घटना अत्यधिक देखी जाती है. जिससे वनों से निकलने वाले उत्पाद प्रभावित होते हैं. इसलिए जंगलों में अगलगी की घटना को रोकने के लिए जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है. साथ ही जंगली क्षेत्र में काम करने वाले शिक्षकों, आंगनबाड़ी सेविकाओं सहित सरकार के सभी कर्मचारियों की मदद से लोगों को जागरूक किया जा रहा है.
वन में पौधे और फलों से लोगों को पहुंचाया जा रहा लाभः वहीं वनों में होने वाले उपयोगी फल और पौधों से वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए भी वन विभाग काम कर रहा है. पलामू और साहिबगंज जैसे क्षेत्रों में मधु उत्पादन कर ग्रामीण और सभी क्षेत्र की महिलाएं अपना जीवन यापन कर रही हैं. इसके अलावा जंगलों में निकलने वाले कई ऐसे पेड़-पौधे हैं जिसके माध्यम से वनों में रहने वाले लोग अपनी जीविका चला रहे हैं. इसलिए वनों में उगने वाले महत्वपूर्ण फल पौधों को बचाने के लिए वन विभाग वन क्षेत्र में निगरानी बनाकर रखता है.
ये भी पढ़ें-23 साल का होने जा रहा झारखंड, पर अब तक नहीं बनी नियोजन को लेकर स्पष्ट नीति, सरकार की नीतियों के भंवरजाल में फंसे युवा
शहर विस्तारीकरण को लेकर हुई है पेड़ों की कटाईः गौरतलब है कि राज्य गठन के बाद से झारखंड की आबादी में खासा बढ़ोतरी हुई है. बढ़ती आबादी की वजह से रांची, देवघर, बोकारो, जमशेदपुर जैसे बड़े शहरों के विस्तारीकरण के लिए कई पेड़ों की कटाई भी हुई है. ऐसे बड़े पेड़ों के कटने की वजह से वातावरण काफी प्रभावित हुआ है, लेकिन वन विभाग की तरफ से यह आश्वासन दिया गया है कि जितने भी पेड़ काटे गए हैं उससे अधिक पेड़ विभिन्न क्षेत्रों में लगाए जाएंगे, ताकि झारखंड के वन क्षेत्र में कमी नहीं आए. झारखंड की पहचान कहे जाने वाले यहां के जंगलों को बचाने के लिए वन विभाग का कार्य सराहनीय है, लेकिन जंगलों के संरक्षण को लेकर सिर्फ विभाग ही नहीं, बल्कि आम लोगों को भी जागरूक होने की आवश्यकता है.