रांची: बिरले ही लोग होते हैं जिनके रहते उनकी गाथा को किताब के पन्नों पर जगह मिलती है. उनमें से एक हैं दिशोम गुरू शिबू सोरेन. झारखंड आंदोलन और यहां के भोले-भाले आदिवासियों में महाजनी शोषण के खिलाफ एकजुट करने वाले शिबू सोरेन को क्या-क्या दिन नहीं देखने पड़े. जवानी जेल और जंगलों में बीती. संघर्ष के दौर को किताब की शक्ल देने वाले वरिष्ठ पत्रकार अनुज कुमार सिन्हा से हमारे ब्यूरो चीफ राजेश कुमार सिंह ने बात की.
वरिष्ठ पत्रकार अनुज कुमार सिन्हा से एक्सक्लूसिव बातचीत गुरूजी के संघर्षों पर किताब
जाहिर है हमारा सबसे पहला सवाल वही था कि गुरूजी के संघर्षों के बारे में लिखने का ख्याल कब आया और पुस्तक के अंतिम पन्ने तक पहुंचने में कितना वक्त लगा. अनुज कुमार सिन्हा ने कहा कि आमतौर पर लोग गुरूजी के राजनीतिक जीवन के बारे में ज्यादा जानते हैं, लोग यह नहीं जानते कि उन्होंने झारखंड में कौन-कौन से आंदोलन खड़े किए, कैसे लोगों में चेतना भरी, उन्हें कितना त्याग करना पड़ा, यह काम बेहद चुनौती भरा था, जब झारखंड बना तब से ही उनपर पुस्तक लिखने की चाहत पैदा हुई, बीस वर्षों तक उनके संघर्ष से जुड़े तथ्यों को समेटता रहा, उनके दौर के लोगों से मिलता रहा, तथ्यों को कागज पर उकेरने और पुस्तक की शक्ल देने में करीब दो साल लग गये.
गुरुजी की हत्या की साजिश रची गई
अनुज कुमार सिन्हा ने कहा कि गुरूजी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने जिनके खिलाफ आंदोलन किया, उनके साथ दुश्मन जैसा व्यवहार कभी नहीं किया, यह ऐसे शख्स हैं, जिनकी छवि को दिल्ली दरबार में गलत तरीके से पेश किया गया, इनकी हत्या की साजिश रची गई, लेकिन ऐसी मंशा रखने वालों ने जब इनको करीब से देखा तब सच्चाई समझ पाए. अनुज सिन्हा ने कहा कि गुरूजी हमेशा से हड़िया-शराब सेवन के घोर विरोधी रहे हैं, वह जानते थे कि इसी बुरी आदत की वजह से भोले-भाले आदिवासियों की जमीन हड़प ली जाती है, इसलिए उन्होंने नशा के खिलाफ भी आंदोलन चलाया, गांव का कोई नशे में धुत मिलता था तो उसे दंड दिया जाता था. राजनीति के प्लेटफॉर्म पर कुछ मामलों को लेकर गुरूजी विवादों में भी रहे. इस सवाल का भी अनुज कुमार सिन्हा ने जवाब दिया. उन्होंने कहा कि पुस्तक में सभी बातों का जिक्र है, यह भी जिक्र है कि ज्यादातर आरोप झूठे साबित हुए.
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शिबू सोरेन के संघर्षों पर अंग्रेजी में भी पुस्तक प्रकाशित
अनुज कुमार सिन्हा ने कहा कि उन्होंने किताबें लिखी हैं, एक का नाम है दिशोम गुरू - शिबू सोरेन. यह हिन्दी भाषा में है. ट्राइबल हीरो - शिबू सोरेन के नाम से अंग्रेजी में भी प्रकाशित किया गया है. एक पुस्तक बच्चों के लिए है. नाम है - सुनो बच्चों - आदिवासी संघर्ष के नायक शिबू सोरेन की गाथा. अनुज कुमार सिन्हा को उम्मीद है कि उनकी पुस्तक से आने वाली पीढ़ी को गुरूजी के संघर्षों से प्रेरणा मिलेगी.