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BAU Research on Apple: झारखंड में सेब की खेती संभव! बीएयू में हो रहे रिसर्च के प्रारंभिक नतीजे सकारात्मक

झारखंड में सेब की खेती को लेकर रांची के बिरसा कृषि यूनिवर्सिटी में रिसर्च के उत्साहवर्धक परिणाम सामने आ रहे हैं. सेब के पौधों में फल लगने से उत्साहित वैज्ञानिकों ने कहा कि आने वाले दिनों में झारखंड में सेब की खेती संभव होगा.

Encouraging results of research at Birsa Agricultural University of Ranchi on apple cultivation in Jharkhand
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Published : Apr 25, 2023, 11:49 AM IST

Updated : Apr 25, 2023, 12:55 PM IST

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रांचीः सेब को ठंडे प्रदेशों में उत्पादित होने वाला फल माना जाता है. सेब का नाम लेते ही मन में कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के सेब के बगीचे का दृश्य सामने आने लगता है. अभी तक यह माना जाता था कि सेब के फूल से फल बनने के समय बर्फबारी होना जरूरी होता है.

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ऐसे में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के उद्यान विभाग में सेब को लेकर एक रिसर्च चल रहा है. गर्म प्रदेश में सेब की खेती की संभावना को लेकर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के प्रारंभिक नतीजा उत्साहवर्धक रहा है. एक सवा साल के पौधे में फूल के बाद फल आने से वैज्ञानिक बेहद उत्साहित हैं. बीएयू के कृषि वैज्ञानिक डॉ पवन कुमार झा ने कहा कि सेब के पौधों में जिस तरह से पहले फूल लगे और अब फ्रूटिंग हुई है वह उत्साहवर्धक है. उन्होंने कहा कि अभी आगे इसके फलों की क्वालिटी और मिठास को लेकर रिसर्च होना है. लेकिन अभी तक के नतीजे पॉजिटिव रहे हैं.

BAU को क्यों करना पड़ रहा सेब पर रिसर्चः पिछले कई वर्षों से हिमाचल प्रदेश की एक प्रजाति हरमन 99 को गर्म प्रदेश में फल देने वाला सेब की प्रजाति बताकर खूब प्रसिद्धि प्राप्त हुई है. ऐसे में बीएयू रिसर्च के आधार पर यह सुनिश्चित करना चाहता है कि क्या वास्तव में झारखंड जैसे प्रदेश में जहां उच्चतम तापमान 40-45 डिग्री सेल्सियस तक जाता है और वर्षा भी खूब होती है वहां सेब का उत्पादन संभव है?

इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के उद्यानिकी विभाग ने गर्म जलवायु में होने वाले सेब को लेकर एक रिसर्च शुरू किया है. पहले चरण में हिमाचल से लो चिलिंग वैरायटी के चार प्रजातियों जिसमें अन्ना और हरमन 99 के 150 पौधे बीएयू के मुख्य बगान और वेटनरी कॉलेज के बगीचे में लगाया गया है. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के उद्यान विभाग के कर्मचारी और कृषि वैज्ञानिक यह देखकर उत्साहित हैं कि एक साल में ही सेब के पौधों में फ्लावरिंग के बाद फल भी लगे हैं.

कृषि वैज्ञानिक के अनुसार ज्यादातर फूलों को फल लगने से पहले ही तोड़ दिया गया ताकि पौधों का ग्रोथ प्रभावित नहीं हो और वह पूर्ण आकार ले सके. दिन-रात इन पौधों की सेवा करने वाले कर्मचारी ललकू महतो फल देखकर बहुत खुश नजर आ रहे हैं. उन्होंने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि उन्हें भरोसा था कि जब फूल आया है तो फल भी आएगा. आज उनका भरोसा सही साबित हुआ है, हर दिन सेब के फल को उन्होंने बढ़ते हुए देखा है, जो उनके लिए एक सुखद एहसास है.

अब स्वाद और गुणवत्ता पर होगा रिसर्चः बीएयू के बागवानी विभाग के वैज्ञानिक डॉ पवन कुमार झा कहते हैं कि आने वाले दिनों में नाशपाती की तरह झारखंड में बड़े पैमाने पर सेब का उत्पादन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. वहीं उद्यान विभाग के हेड डॉ संयत मिश्रा ने कहा कि फल लगना निश्चित रूप से उत्साहवर्धक है लेकिन अब यह देखा जाएगा कि तैयार सेब की गुणवत्ता कैसी है, उसमें पोषक तत्व कितने हैं, उसका स्वाद कैसा है. जो सेब के फल हमें प्राप्त होंगे, उसकी संख्या प्रति पौधा कितनी होती है और यह किसानों के लिए कितना लाभप्रद होगा. डॉ संयत मिश्रा के अनुसार इसके बाद ही बीएयू अधिकृत रूप से इसकी खेती राज्य में करने की अनुशंसा करने में सक्षम हो सकेगा.

प्रगतिशील किसानों ने सेब की खेती को लेकर रूझानः वर्तमान समय में राज्य के कुछ प्रगतिशील किसान सीधे हिमाचल प्रदेश से गर्म प्रदेश में लगने वाले सेब के पौधों को लाकर लगा रहे हैं. किसान सेब का पौधा तो लगा रहे हैं लेकिन झारखंड की जलवायु में सेब की खेती को लेकर कोई प्रामाणिक आंकड़ा या रिपोर्ट अभी तक उपलब्ध नहीं है. ऐसे में अगर प्रगतिशील किसान पैसे लगाकर अपने खेतों में सेब की ये वैराइटी लगाएं और तीन-चार साल बाद उसमें फल न आये या फिर उसकी क्वालिटी खराब निकल गयी तो किसानों को काफी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय पहले अपने यहां गर्म जलवायु में सेब की खेती की संभावना और अनुशंसित प्रजाति विषय पर शोध कर यह सुनिश्चित करना चाहता है कि झारखंड में सेब की खेती की क्या संभावनाएं है. अब तक इस प्रयोग के प्रारंभिक नतीजे सकारात्मक रहे हैं.

Last Updated : Apr 25, 2023, 12:55 PM IST

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