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झारखंड में कोरोना का दुष्प्रभावः आमदनी घटने से अभिभावक बच्चों को छोटे स्कूलों में कर रहे शिफ्ट, ड्रॉप आउट का भी संकट

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Published : Dec 1, 2021, 4:30 PM IST

Updated : Dec 1, 2021, 8:05 PM IST

झारखंड में कोरोना का दुष्प्रभाव साफ नजर आ रहा है. झारखंड में कोरोना ने शिक्षा व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है. अभिभावकों की आमदनी घटने से कई अभिभावक बच्चों को बड़े स्कूलों से छोटे स्कूलों में शिफ्ट कर रहे हैं तो झारखंड में ड्रॉप आउट का भी संकट बढ़ गया है. Drop out बालक-बालिका की समस्या शिक्षा विभाग के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरी है.

Effect of Corona in Jharkhand parents are shifting children to small schools drop out crisis also
आमदनी घटने से अभिभावक बच्चों को छोटे स्कूलों में कर रहे शिफ्ट, ड्रॉप आउट का भी संकट

रांचीः झारखंड में कोरोना ने शिक्षा व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है. एक तरफ तो इससे अभिभावकों की आमदनी प्रभावित हुई है तो दूसरी तरफ कई निजी स्कूलों की भी आर्थिक स्थिति खराब कर दी है. अब जबकि झारखंड में कोरोना की रफ्तार कम होने पर सरकार जूनियर लेवल के School Reopen करने की कवायद कर रही है तो इन दोनों समस्याओं के कारण Drop out बालक-बालिका की समस्या एक बार फिर सामने खड़ी हो गई है. झारखंड के कई जिलों में देखने को मिल रहा है कि कई अभिभावक बड़े निजी स्कूलों से बच्चों का नाम कटाकर छोटे या सरकारी स्कूलों में दाखिला करा रहे हैं तो कई अभिभावक सरकारी स्कूलों से बच्चों का नाम कटा रहे हैं.

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एक सरकारी रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक सेकेंडरी स्कूलों में बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की संख्या देशभर में 17 फीसदी से अधिक है. जबकि अपर प्राइमरी कक्षा 6 से 8 में 1.8 फीसदी, प्राइमरी स्कूलों में कक्षा एक से पांच तक में 1.5 प्रतिशत है. कोरोना के कारण यह आंकड़ा और बढ़ गया है. वहीं कोरोना की वजह से झारखंड में अब तक 300 से अधिक निजी स्कूल बंद हो चुके हैं.

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दक्षिणी छोटा नागपुर निदेशालय से मिली जानकारी के मुताबिक 2019-20 में ड्रॉप आउट रेट झारखंड में 12 फीसदी है. निदेशालय में उप निदेशक अरविंद विजय विलुग का कहना है कि 2020-21 का डेटा अभी एकत्र नहीं हो पाया है, लेकिन जो जानकारियां मिल रहीं हैं. उससे झारखंड में डॉप आउट की समस्या रहने की आशंका है, जिसके निदान की तैयारी की जा रही है. अफसरों का मानना है कि कोरोना के दुष्प्रभावों के चलते अभी ड्राप आउट की समस्या खत्म होने की उम्मीद नहीं है. इसलिए शहरी क्षेत्रों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में ड्राप आउट की समस्या पर नजर रखी जा रही है.

लड़कों का ड्रॉप आउट रेट ज्यादा

जानकार बताते हैं कि सेकेंडरी लेवल में लड़कों का ड्रॉप आउट रेट प्राइमरी लेवल की तुलना में ज्यादा है. यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफॉर्मेशन सिस्टम 2019-20 की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 30 फीसदी बच्चे सेकेंडरी से सीनियर सेकेंडरी लेवल पार नहीं कर पाते हैं. देश में ऐसे कई राज्य जहां सेकेंडरी लेवल पर ड्रॉप आउट रेट 25 फीसदी से ज्यादा है. इसमें त्रिपुरा, सिक्किम, नगालैंड, झारखंड, मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं.

आमदनी घटने से अभिभावक बच्चों को छोटे स्कूलों में कर रहे शिफ्ट, ड्रॉप आउट का भी संकट

आर्थिक तंगी के कारण स्कूल बदल रहे अभिभावक

Parents association Ranchi की सदस्य सुजाता कुमारी का कहना है कि कोरोना के कारण आर्थिक तंगी की वजह से अभिभावक अपने बच्चों को बड़े निजी स्कूलों से हटाकर छोटे निजी स्कूलों में शिफ्ट कर रहे हैं और इसका सबसे बड़ा कारण निजी स्कूलों की मनमानी है. दूसरी ओर Private school association jharkhand का कहना है कि अभिभावकों की ओर से स्कूलों को फीस नहीं मिलने के कारण ऐसे कई निजी स्कूल हैं, जो आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. सैकड़ों ऐसे स्कूल बंदी के कगार पर हैं और कई स्कूल बंद हो चुके हैं. अभिभावक एसोसिएशन निजी स्कूलों को इसका जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. जबकि प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि अभिभावक और प्राइवेट स्कूलों के बीच सामंजस नहीं होने के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न होने हो रही है.

Last Updated : Dec 1, 2021, 8:05 PM IST

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