रांचीः ज्योतिष शास्त्र में राहु ग्रह का कोई अस्तित्व नहीं है और इसे छाया ग्रह माना गया है. हालांकि वैदिक ज्योतिष में राहु का बहुत महत्व है. राहु को क्रूर ग्रह माना गया है. यह कठोर वाणी, जुआ, बुरे कर्म, चर्म रोग और धार्मिक यात्रा का कारक है. राहु राक्षस का सिर है, जिसमें मस्तिष्क होता है. इसलिए राहु का हमारे मस्तिष्क पर नियंत्रण रहता है.
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ज्योतिषाचार्य पंडित पीएस त्रिपाठी के अनुसार राहु ग्रह की अपनी कोई राशि नहीं होती है. यह मिथुन राशि में उच्च और धनु में निम्न भाव में होता है. राहु को आद्रा, स्वाति और शतभिषा नक्षत्रों का स्वामी माना जाता है. यदि कुंडली में राहु अशुभ स्थान पर हो, कमजोर या किसी अन्य ग्रह से पीड़ित हो तो जातक को बुरे परिणाम देता है.
राहु का प्रभाव
कुंडली में यदि राहु लग्न भाव में हो तो जातक सुंदर और आकर्षक होता है. उसकी जोखिम उठाने वाली प्रवृति होती है. वह व्यक्ति समाज में प्रभावशाली और सम्मानित होता है. लेकिन ये प्रभाव और परिणाम लग्न में राशि पर निर्भर करता है. लग्न भाव का राहु दांपत्य जीवन में परेशानी का कारण बनता है.
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति तीक्ष्ण बुद्धि वाला होता है और समाज में मान-सम्मान पाता है. यदि कुंडली में राहु कमजोर हो तो नकारात्मक परिणाम मिलते हैं. जातक धर्म के मार्ग से भटक जाता है और गलत कार्यों में संलिप्त रहने लगता है. जातक के बनते काम बिगड़ने लगते हैं.