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बगैर अधिकार किस काम का पंचायत चुनाव, समिति सदस्य बोले-असहाय रहते हैं हम

गांवों को सशक्त बनाने के लिए किए गए 73वें संविधान संशोधन का मकसद पूरा होता नजर नहीं आ रहा है. त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना के बाद भी पंचायतों के पास कोई खास अधिकार नहीं होने से पंचायतों के सदस्यों में निराशा है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट

three-tier panchayat system
त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था

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Published : Apr 3, 2022, 7:39 PM IST

Updated : Apr 3, 2022, 8:22 PM IST

रांची: गांवों को सशक्त बनाने के लिए संविधान संशोधन कर पंचायत चुनाव तो कराया जाने लगा लेकिन पंचायतों को अधिकार देने में हाथ खींच लिए गए. नतीजतन बिना अधिकार के पंचायत प्रतिनिधि 'शोपीस' भर रह गए हैं. इस टीस इन प्रतिनिधियों को भी है. अब तो तमाम पंचायत प्रतिनिधि अपने मतदाताओं का सामना करने से भी घबराते हैं और कहते हैं कि पंचायतों के पास अधिकार ही नहीं तो इनके चुनाव की क्या जरूरत.


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झारखंड में अब तक दो बार पंचायत चुनाव हो चुके हैं मगर आज भी पंचायत चुनाव जीत कर आने वाले जनप्रतिनिधियों को कोई खास अधिकार नहीं मिले हैं. उनका कहना है कि यदि फैसलों में भागीदारी करानी हो तभी चुनाव कराया जाए. वर्ना दिखावे के लिए पंचायत चुनाव न कराया जाए. एक तो इससे संबंध बिगड़ते हैं, दूसरे न वित्तीय अधिकार और न प्रशासनिक अधिकार होने से हम ग्रामीणों की कोई मदद भी नहीं कर पाते. इसलिए असहाय महसूस करते हैं.

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बता दें कि संविधान के 73 वें संशोधन के अनुसार त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की गई है. इसके तहत ग्राम पंचायतों को सहभागिता पर आधारित शासन व्यवस्था का अधिकार प्रदान किया गया है. इसके तहत 29 अधिकार पंचायतों को दिए गए हैं, जिसमें से 14 विषयों पर आंशिक अधिकार ही झारखंड में पंचायतों को दिए गए हैं. इन अधिकारों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल,20 सूत्री कमिटी,मनरेगा आदि शामिल हैं.

बगैर अधिकार किस काम का पंचायत चुनाव

न जाने क्यों कराते हैं चुनावः त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था का मकसद हर गांव की जरूरत के मुताबिक वहां की पंचायत ही योजना बनाए, लेकिन हकीकात में अभी तक ऐसा नहीं हो पाया. इसलिए पंचायत समिति और जिला परिषद सदस्य ही इस पर सवाल उठा रहे हैं. पुंडरी चान्हो के पंचायत समिति सदस्य मो.इस्तियाक और मांडर पंचायत समिति सदस्य उसु उरांव का कहना है कि मुखिया को तो कुछ हद तक अधिकार मिले हैं, लेकिन बाकी प्रतिनिधियों की कोई वैल्यू ही नहीं है. न जाने क्यों चुनाव कराया जाता है.

पहली बार 2010 में हुए पंचायत चुनावः राज्य में पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना काफी जद्दोजहद के बाद 2010 में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के बाद हुई. तत्पश्चात 2015 में भी चुनाव कराकर गांव की सरकार बनाई गई. उस समय से अब तक पंचायतों के निर्वाचित प्रतिनिधि अधिकारों की मांग को लेकर आंदोलन करते रहे हैं. सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा अब तक जो अधिकार पंचायतों को दिए भी गए हैं वो भी औपचारिक अधिक हैं.

बगैर अधिकार किस काम का पंचायत चुनाव
संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची के तहत इन विषयों पर काम का मिला है अधिकार
1.कृषि एवं कृषि विस्तार
2.भूमि विकास, भूमि सुधार का कार्यान्वयन, चकबंदी और भूमि संरक्षण
3.लघु सिंचाई, जल प्रबंध और जल विभाजक क्षेत्र का विकास
4.पशुपालन, डेयरी उद्योग और कुकुटपालन
5.मत्स्य उद्योग
6.सामाजिक वानिकी और फार्म वानिकी
7.लघु वन उपज
8.लघु उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग
9.खादी ,ग्रामोद्योग और कुटीर उद्योग
10.ग्रामीण आवासन
11. पेयजल ईंधन
12.ईंधन और चारा
13.सड़कें, पुलिया, पुल, फेरी, जलमार्ग और अन्य संचार साधन
14.ग्रामीण विद्युतीकरण जिसके अंतर्गत विद्युत का वितरण है
15.पारंपरिक ऊर्जा स्रोत
16.गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
17.शिक्षा- प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय सहित
18.तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा
19.प्रौढ़ और अनौपचारिक शिक्षा
20.पुस्तकालय
21.सांस्कृतिक क्रियाकलाप
22. बाजार और मेले
23.स्वास्थ्य और स्वच्छता, अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और औषधालय
24.परिवार कल्याण
25.महिला और बाल विकास
26.समाज कल्याण, विकलांगों और मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों का कल्याण
27.अनुसूचित जातियों और जनजातियों तथा कमजोर वर्गों का कल्याण
28.सार्वजनिक वितरण प्रणाली
29.सामुदायिक आस्तियों का अनुरक्षण
बगैर अधिकार किस काम का पंचायत चुनाव
बिहार में पंचायती राज व्यवस्था से गांव हुए सशक्तः सुधीर पॉल
वर्तमान समय में झारखंड में कुल 32660 गांव हैं और पंचायतों की संख्या 4402 है. 2015 में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में राज्यभर में 4402 मुखिया,545 जिला परिषद सदस्य,5423 पंचायत समिति सदस्य, 54330 ग्राम पंचायत सदस्यों का निर्वाचन हुआ था. जिनका कार्यकाल दिसंबर 2020 में समाप्त हो चुका है. पंचायती राज व्यवस्था पर लंबे समय से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर पॉल के अनुसार झारखंड की तुलना में बिहार पंचायतों को सशक्त करने में आगे है.


सुधीर पॉल के अनुसार जब तक पंचायत सचिवालय को सशक्त नहीं किया जाएगा तब तक इसका लाभ नहीं मिलेगा. पंचायत सचिवालय को सशक्त करने के लिए अधिकारों के साथ-साथ मैनपावर मुहैया कराना होगा. गांव की योजना गांव में बने, इसकी बात भले की जाती हो मगर उसका मॉनिटरिंग और योजना में गड़बड़ी पर कारवाई का अधिकार पंचायतों को नहीं दिया गया है. हालांकि सरकार कई अधिकार पंचायतों को देने का दावा करती है मगर इसमें ईमानदारी की कमी है.


पंचायतों को सशक्त करेगी सरकारः आलमगीर आलम

ग्रामीण विकास सह पंचायती राज मंत्री आलमगीर आलम ने कहा है कि सरकार पंचायतों को सशक्त करने के लिए कृतसंकल्पित है.उन्होंने कहा कि कुछ अधिकार दिए गए हैं, जिसके माध्यम से मुखिया गांव की योजना गांव में ही ग्रामसभा आदि के माध्यम से बनाकर तय करते हैं. मुखिया को वित्तीय पावर भी दिया गया है मगर अन्य पंचायत प्रतिनिधि को भी पावरफुल बनाने के लिए सरकार सोच रही है और जो भी खामियां हैं उसे दूर कर लिया जाएगा.

Last Updated : Apr 3, 2022, 8:22 PM IST

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