रांची: हर क्षेत्र में तरक्की के बावजूद सिंचाई व्यवस्था के मामले में भारत आज भी पीछे है. जिसका खामियाजा किसानों को उठाना पड़ता है. खरीफ फसल का मौसम आ गया है. करीब एक सप्ताह की लेटलतीफी के बाद जून के अंतिम सप्ताह में हुई बारिश से खेतों में रौनक लौटने लगी है. ज्यादातर किसान बिचड़ा डालने की कवायद में जुट चुके हैं. इस मामले में गुमला के किसान सबसे आगे हैं. अब सवाल है कि क्या बिचड़ा डालने का यह सही समय है या कुछ और बारिश का इंतजार करना चाहिए. मौसम का रुख कैसा रहेगा.
ये भी पढ़ें-झारखंड में औसत से 56 फीसदी कम हुई बारिश, जानिए खेती को लेकर क्या है विशेषज्ञों की राय
इस मसले पर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक डॉ रमेश ने ईटीवी भारत को बताया कि बेशक, एक सप्ताह का विलंब हुआ है लेकिन इसको चिंता के नजरिए से नहीं देखा जा सकता. उन्होंने कहा कि किसानों को सिर्फ धान की पैदावार की ही फिक्र नहीं होती है. उन्हें अपने पशुओं के चारे की भी चिंता होती है. उन्होंने सुझाव दिया है कि पिछले एक सप्ताह में हुई बारिश को देखते हुए किसानों को खेत की ऊपरी भूमि की जुताई कर बिचड़ा डालना शुरू कर देना चाहिए. ताकि दो सप्ताह बाद रोपाई का काम शुरू किया जा सके. जो किसान बीज या अन्य कमी की वजह से तैयारी नहीं कर पाए हैं, उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है. उन्होंने सुझाव दिया कि 15 जुलाई तक भी बिचड़ा डाला जा सकता है. इस दौरान अच्छी बारिश की भी संभावना रहती है.
रांची मौसम केंद्र की वैज्ञानिक प्रीति कुमारी ने बताया कि इस साल अच्छी बारिश की उम्मीद की जा रही है. क्योंकि अभी तक बारिश के लिए फेवरेबल कंडिशन बना हुआ है. उन्होंने कहा कि मानसून को पहुंचने में एक सप्ताह का विलंब जरूर हुआ है लेकिन पिछले साल जून माह में औसत 95.7 मिमी की तुलना में इस साल जून माह में 108.5 मिमी बारिश हुई है. बारिश के लिहाज से पिछला एक सप्ताह काफी अच्छा रहा है.
कृषि विभाग के नजरिए से देखे तो किसानों के लिए साल 2022 अच्छा नहीं था. इसकी वजह से सिमडेगा और पूर्वी सिंहभूम जिला को छोड़कर 22 जिलों के 226 प्रखंडों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया था. पिछले साल 11 जुलाई तक 28.27 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसल लगाने की लक्ष्य था. इसमें सबसे ज्यादा 18 लाख हेक्टेयर में धान लगना था. शेष में मक्का, दलहन, बाजरा और तिलहन की खेती की तैयारी थी. लेकिन कम बारिश की वजह से 11 जुलाई 2022 तक आधी भी बुआई नहीं हो पाई थी. इसका उत्पादन पर भी असर पड़ा.
कृषि विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक इस साल 50 फीसदी अनुदान पर बीज वितरण किया जा रहा है. अलग-अलग कंपनियों को 68 हजार क्विंटल बीज आपूर्ति का आदेश दिया गया है. इसकी तुलना में 37 हजार क्विंटर बीज खरीदा जा चुका है. वहीं 18 हजार क्विंटल से ज्यादा बीच किसानों के बीच बांटा जा चुका है.
हालांकि कृषि विभाग की तमाम तैयारियों के बावजूद पिछले साल मानसून की दगाबाजी से किसानों के कमर टूटे हुए हैं. उन्हें डर सता रहा है कि अगर जुलाई में बारिश नहीं हुई थी, जून के अंतिम सप्ताह में बारिश की वजह से की गई मेहनत बर्बाद जाएगी. लेकिन उनके पास रिस्क लेने के सिवा कोई उपाय नहीं है. उनके साथ सिर्फ उम्मीद है.