पलामूः एक दो बार नहीं हर दूसरे साल सुखाड़ का ग्रहण पलामू की धरती पर जरूर लगता है. हवा में बादल तो नजर आते हैं लेकिन वो किसी छलावे की तरह आसमान में ही हवा हो जाते हैं. बारिश की राह ताकते किसान बस आसमान में टकटकी लगाए ही रह जाते हैं. मानसून का करीब महीना गुजरने को है, अब तक पलामू को अच्छा बारिश मयस्सर नहीं (low rain in Monsoon) हो पाई है. कड़ी धूप और तपती चट्टान ने किसानों की उम्मीदों को धुआं-धुआं कर दिया है.
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जिला एक बार फिर सुखाड़ के मुहाने पर खड़ा (Drought like situation) है. पलामू में सुखाड़ होना कोई नई बात नहीं है, यहां प्रत्येक दूसरे वर्ष सुखाड़ होती है. इस बार भी पलामू में मानसून की बारिश औसत से 64 फीसदी कम हुई है. जुलाई का दूसरा सप्ताह पूरा हुआ है लेकिन अपेक्षाकृत बारिश नहीं हुई है. बारिश नहीं होने से धान समेत कई फसल प्रभावित हुई है. लक्ष्य के 20 प्रतिशत भी धनरोपनी नहीं हुई है. कई इलाकों से धान के बिचड़ों के सूखने की खबर निकलकर सामने आ रही है. पलामू में किसानों के लिए बारिश के पानी पर निर्भरता ने एक बात संकट पैदा किया है.
उतर और पश्चिम के बादलों पर निर्भरताः पलामू में मानसूनी की बारिश के कम (low rain in Monsoon) होने का सबसे बड़ा कारण है कि यह इलाका रेन शैडो एरिया (rain shadow area) में है. बंगाल की खाड़ी और उत्तर दिशा से आने वाले बादल कमजोर पड़ जाते हैं. पर्यावरणविद कौशल किशोर जायसवाल बताते है कि पलामू में दक्षिण और पश्चिम के तरफ से आने वाले बदल से ही बारिश हो पाती है. जबकि बंगाल की खाड़ी की तरफ से आने वाले बादल कमजोर हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि पलामू का इलाका निचले भाग में है, बंगाल की खाड़ी की तरफ से आने वाले बादल ऊंचाई पर चली जाती है. उन्होंने बताया कि पलामू के इलाके में चट्टानों के गर्म होने के कारण भी बारिश कम होती है.