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राष्ट्रीय वेबिनार में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू हुईं शामिल, जनजातीय भाषाओं को लेकर हुई विशेष रूप से चर्चा - झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू

रांची में स्कोप एंड प्रोस्पेक्ट्स ऑफ ट्रांसलेशन ट्राइबल लैंग्वेज एंड लिटरेचर इन रिसर्च विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस ऑनलाइन संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू शामिल हुई.

draupadi murmu attended webinar on tribal language in ranchi, वेबिनार में शामिल हुई द्रौपदी मुर्मू
वेबिनार में बात करतीं द्रौपदी मुर्मू

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Published : Aug 31, 2020, 4:07 PM IST

रांचीः जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज के तत्वाधान में स्कोप एंड प्रोस्पेक्ट्स ऑफ ट्रांसलेशन ट्राइबल लैंग्वेज एंड लिटरेचर इन रिसर्च विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस संगोष्ठी में मुख्य रूप से राज्यपाल सह झारखंड राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति द्रौपदी मुर्मू शामिल हुई. मौके पर उन्होंने शिक्षाविदों के साथ इस विषय को लेकर विशेष रूप से चर्चा की.

वेबिनार में बात करतीं राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू
क्षेत्रीय जनजातीय भाषाओं के उत्थान से ही देश का विकास संभव

कोरोना के प्रकोप से इन दिनों देशभर में ऑनलाइन ही शिक्षण संस्थान संचालित हो रही है. कई मीटिंग्स के अलावा पठन-पाठन भी वेबिनार के माध्यम से आयोजित की जा रही है. इसी कड़ी में जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज की ओर से स्कोप एंड प्रोस्पेक्ट ऑफ ट्रांसलेशन ऑफ ट्राइबल लैंग्वेज एंड लिटरेचर इन रिसर्च विषय को लेकर एक वेबीनार संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस संगोष्ठी में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू भी शामिल हुईं. उन्होंने कहा कि ज्ञान आधारित इस युग में मातृभाषा को अहम स्थान दिया गया है. ऐसे में कहा जा सकता है कि जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा में निहित ज्ञान परंपरा से अन्य भाषा साहित्य के बीच संवाद आवश्यक है, तभी लोग एक दूसरे की संस्कृति और संवेदना को समझ सकेंगे, संवाद से विवाद समाप्त होते हैं, प्रेम और मेलजोल बढ़ता है, यह भाईचारा और मेलजोल लोगों को मजबूत करता है. राज्यपाल ने कहा कि क्षेत्रीय भाषा समाज, राज्य, राष्ट्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सशक्त बनाता है. इसलिए जनजाति और क्षेत्रीय भाषाएं हमारे जीवन के लिए उतना ही जरूरी है जैसा कि अन्य भाषाएं.

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कई शिक्षाविद हुए शामिल

इस विशेष वेबिनार के दौरान कई शिक्षाविद भी शामिल हुए और सभी ने अपना अनुभव साझा किया. वहीं अधिकतर गणमान्य लोगों ने कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं के बिना कुछ भी संभव नहीं है. राष्ट्र और राज्य के विकास के लिए जनजातिय और क्षेत्रीय भाषाओं को भी अन्य भाषाओं के साथ बढ़ाना होगा. आदिवासी समाज प्रकृति पूजा पर आधारित है और जनजातीय भाषाओं को संजोने में इनकी अहम भूमिका भी है. इसलिए इनकी भावनाओं को समझते हुए जनजाति और क्षेत्रीय भाषाओं को भी एक साथ अन्य भाषाओं के तर्ज पर विकसित करना होगा.

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