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राज्यपाल और सरकार के बीच दो महीने से चल रही रस्साकशी, आगे क्या होगा अंजाम?

झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार और राज्यपाल रमेश बैस के बीच रस्साकशी चल रही है (dispute between governor and government). ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में चुनाव आयोग की चिट्ठी में क्या है इसका खुलासा अब तक राज्यपाल ने नहीं किया है. वहीं दूसरी और सीएम हेमंत सोरेन बार बार ये आग्रह कर रहे हैं कि उस चिट्ठी में क्या है उन्हें बताया जाए.

dispute between governor and government in Jharkhand
dispute between governor and government in Jharkhand

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Published : Oct 23, 2022, 5:30 PM IST

रांची:हेमंत सोरेन सरकार और राज्यपाल रमेश बैस के बीच मतभेद कई बार सामने आए हैं (dispute between governor and government ).तकरीबन 22 साल 11 महीने पहले राज्य के तौर पर अस्तित्व में आए झारखंड में अब तक दस राज्यपाल नियुक्त हुए हैं. इनमें से वर्ष 2004 से 2009 के बीच राज्यपाल रहे सैयद सिब्ते रजी और अब दसवें राज्यपाल के रूप में कार्यरत रमेश बैस का कार्यकाल राजनीतिक विवादों के लिए याद किया जाएगा.

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पूर्व राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी की भूमिका पर वर्ष 2005 में उस वक्त तीव्र विवाद खड़ा हुआ था, जब उन्होंने विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के नेता के बजाय यूपीए के लीडर शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी. बहुमत साबित न कर पाने के कारण नौ दिनों बाद ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था और तब अर्जुन मुंडा ने सीएम पद की शपथ ली थी.

मौजूदा राज्यपाल रमेश बैस का कार्यकाल 7 जुलाई 2021 से शुरू हुआ है. इनके अब तक के लगभग सवा वर्षों के कार्यकाल में राजभवन और राज्य सरकार के बीच कम से कम तीन-चार मौकों पर मतभेद-तनाव और असहमति की खबरें सामने आ चुकी हैं. बीते दो महीने से राज्य में भारत के निर्वाचन आयोग की एक चिट्ठी को लेकर सियासी रस्साकशी चल रही है. इसमें एक सिरे पर राज्यपाल रमेश बैस हैं तो दूसरे सिरे पर राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन.

यह सीलबंद चिट्ठी बीते 25 अगस्त को नई दिल्ली से रांची स्थित राजभवन पहुंची. चुनाव आयोग की यह चिट्ठी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की योग्यता-अयोग्यता तय किये जाने के संबंध में है, लेकिन 59 दिन बाद भी इसका आधिकारिक तौर पर खुलासा नहीं हुआ है कि इस चिट्ठी का मजमून क्या है? मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्य के सत्ताधारी गठबंधन का आरोप है कि इस चिट्ठी का खुलासा न किये जाने से राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता और भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है. दूसरी तरफ राज्यपाल ने सार्वजनिक तौर पर कह दिया है कि यह उनका अधिकार क्षेत्र है कि वह इस चिट्ठी पर कब और क्या निर्णय लेंगे? इसपर किसी को सवाल नहीं उठाना चाहिए.

यह चिट्ठी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के ऑफिस ऑफ प्रॉफिट और जन प्रतिनिधित्व कानून के कथित तौर पर उल्लंघन से जुड़े केस से संबंधित है. मामला यह है कि हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री रहते हुए रांची के अनगड़ा में अपने नाम 88 डिसमिल के क्षेत्रफल वाली पत्थर खदान लीज पर ली थी. हालांकि इस खदान में खनन का कोई काम नहीं हुआ और बाद में सोरेन ने इस लीज को सरेंडर कर दिया. भाजपा ने इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट (लाभ का पद) और जन प्रतिनिधित्व कानून के उल्लंघन का मामला बताते हुए राज्यपाल के पास शिकायत की थी. राज्यपाल ने इसपर चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा था. आयोग ने शिकायतकर्ता और हेमंत सोरेन को नोटिस जारी कर इस मामले में उनसे जवाब मांगा. दोनों के पक्ष सुनने के बाद चुनाव आयोग ने बीते 25 अगस्त को राजभवन को सीलबंद लिफाफे में अपना मंतव्य भेज दिया था.

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इसे लेकर अनऑफिशियली ऐसी खबरें तैरती रहीं हैं कि चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन को दोषी मानते हुए उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की है और इस वजह से उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी जानी तय है. ऐसी खबरों से राज्य में बने सियासी सस्पेंस और भ्रम के बीच सत्तारूढ़ गठबंधन को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रति एकजुटता जताने के लिए डिनर डिप्लोमेसी और रिजॉर्ट प्रवास तक के उपक्रमों से गुजरना पड़ा. इतना ही नहीं, विधानसभा के विशेष सत्र में सत्तारूढ़ गठबंधन ने उनके पक्ष में विश्वास मत का प्रस्ताव तक पारित किया.

इतने सब के बावजूद राज्यपाल ने अब तक चिट्ठी का रहस्य नहीं खोला है और इस वजह से राज्य की हेमंत सोरेन सरकार अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बीते 15 सितंबर को राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात कर चुनाव आयोग की चिट्ठी को लेकर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की. उन्होंने राज्यपाल से कहा कि राज्य में अनिश्चितता का वातावरण बना हुआ है. ऐसे में राज्य का संवैधानिक प्रमुख होने के नाते लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए वह उचित कदम उठायें. मुख्यमंत्री ने उनसे लिखित तौर पर आग्रह भी किया उनकी विधानसभा सदस्यता को लेकर भारत के निर्वाचन आयोग का जो मंतव्य प्राप्त हुआ है, उसकी कॉपी उन्हें उपलब्ध कराई जाये और इस मामले में जल्द से जल्द सुनवाई की जाये. मुख्यमंत्री के इस आग्रह पर राज्यपाल की ओर से अब तक कोई रिस्पांस नहीं मिला. इसके बाद बीते 8 अक्टूबर को सत्ताधारी पार्टी झामुमो के महासचिव विनोद पांडेय ने राजभवन में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत एक आवेदन देकर चुनाव आयोग के पत्र की कॉपी मांगी है. आवेदन के साथ उन्होंने 10 रुपए का पोस्टल ऑर्डर भी जमा किया है. जाहिर है, इसपर भी अब तक कोई जवाब नहीं मिला है.

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चुनाव आयोग के लिफाफे में क्या है और यह कब खुलेगा? यह सवाल करीब एक माह पहले पत्रकारों ने भी राज्यपाल से एक कार्यक्रम के दौरान पूछा था तो हल्के-फुल्के अंदाज में सवाल टालते हुए उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग से जो लिफाफा आया है, वह इतनी जोर से चिपका है कि खुल ही नहीं रहा.

बीते 15 अक्टूबर को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सीएम हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए कहा, 'मैं पूरे देश का पहला मुख्यमंत्री हूं, जो चुनाव आयोग से लेकर राज्यपाल तक के दरवाजे पर जाकर, उनके सामने हाथ जोड़कर यह बताने का आग्रह कर रहा है कि अगर मेरा कोई गुनाह है तो इसके लिए मेरी क्या सजा मुकर्रर की गई है? मैं उनसे बार-बार पूछ रहा हूं कि उनके अनुसार मैं वाकई गुनहगार हूं तो मुख्यमंत्री के पद पर मैं कैसे बना हुआ हूं?'

हेमंत सोरेन ने इसी प्रेस कांफ्रेंस के दौरान राज्यपाल का नाम लिए संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि केंद्रीय एजेंसियां जिस ढर्रे पर काम कर रही हैं, उससे यही लगता है कि उनके पीछे कोई शक्ति है जिनके इशारे पर चलने को वो मजबूर हैं.

इधर, राज्यपाल रमेश बैस ने सरकार के निर्णयों से लेकर सरकार की ओर से विधानसभा में पारित किए गए विधेयकों पर पिछले आठ-दस महीने में कई बार सवाल उठाये हैं. बीते फरवरी महीने में राज्यपाल ने राज्य में जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) के गठन को लेकर राज्य सरकार द्वारा बनायी गयी नियमावली पर कई सवाल उठाये थे. राज्यपाल रमेश बैस ने राज्य सरकार की ओर से जून 2021 में बनाई गई नियमावली को संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत और राज्यपाल के अधिकारों का अतिक्रमण बताते हुए केंद्र के पास शिकायत की थी. उन्होंने टीएसी की नियमावली और इसके गठन से संबिधत फाइल राज्य सरकार को वापस करते हुए इसमें बदलाव करने को कहा था. महीनों बाद भी इस मामले पर राजभवन और सरकार में गतिरोध बरकरार है.

राज्यपाल बीते महीनों में राज्य सरकार की ओर से विधानसभा में पारित एंटी मॉब लिंचिंग बिल, कृषि मंडी बिल सहित आधा दर्जन बिल अलग-अलग वजहों से लौटा चुके हैं. हाल में उन्होंने सरकार की ओर से कोर्ट फीस वृद्धि को लेकर पारित विधेयक को भी पुनर्विचार के लिए लौटाया है. पिछले हफ्ते राज्य के पर्यटन, सांस्कृतिक विकास, खेलकूद और युवा मामलों विभाग के कामकाज के रिव्यू के दौरान राज्यपाल ने असंतोष जताते हुए यहां तक टिप्पणी की थी कि राज्य में विजन की कमी साफ दिखती है. कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि झारखंड में राजभवन और राज्य सरकार के बीच तनाव और टकराव की पटकथा में आगे कई अध्याय लिखे जाने बाकी हैं.

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