रांचीः अस्पतालों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों का सही तरीके से निवारण करना आवश्यक होता है. क्योंकि यह कई प्रकार के संक्रमण और असंक्रामक रोग फैला सकता है. अस्पताल से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों से अगर सबसे ज्यादा किसी को संक्रमण फैलने का खतरा रहता है तो वह अस्पताल कर्मचारी ही होते हैं. आज के समय में जहां कोरोना जैसी खतरनाक महामारी से लड़ने के लिए युद्ध स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है. लेकिन क्या टीकाकरण में उपयोग होने वाले मेडिकल बायो वेस्ट के डिस्पोजल की भी प्रक्रिया को सही तरीके से अंजाम दिया जा पा रहा है?
कर्मचारियों को जानकारी का अभाव
झारखंड में भी लगभग सभी निजी अस्पतालों में जिला प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से कई महत्त्वपूर्ण दिशा निर्देश दिए गए हैं ताकि अस्पताल से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों का सही तरीके से निष्पादन हो सके. समुचित प्रशिक्षण नहीं मिलने की वजह से कई बार यह भी देखने को मिलता है कि अस्पताल में काम करने वाले कर्मचारियों को बायो मेडिकल वेस्ट के निष्पादन के प्रक्रिया की जानकारी भी नहीं होती है. जिस वजह बायो मेडिकल वेस्ट का सही तरीके से निष्पादन नहीं हो पाता है.
प्रदेश में 5 मेडिकल वेस्ट के निष्पादन की मशीन
झारखंड की बात करें तो प्रदेश में कुल 5 जिला में मेडिकल वेस्ट के निष्पादन मशीन लगी है. जिसमें धनबाद, रामगढ़, जमशेदपुर, लोहरदगा और रांची शामिल है. बायो मेडिकल वेस्ट के निष्पादन की बात करें तो झारखंड में इसको लेकर कोई वृहद तैयारी नहीं की गई है.क्योंकि राज्य में लगभग ढाई हजार से ज्यादा निजी और सरकारी अस्पताल है. इससे निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट के निष्पादन के लिए मात्र राज्य में 5 से 6 बायो मेडिकल वेस्ट प्लांट लगाए गए हैं, जिससे कई बार राज्य के पूर्ण बायो मेडिकल वेस्ट का निष्पादन नहीं हो पाता है.
नियम के मुताबिक अस्पताल को निर्देश
इसको लेकर रिम्स के प्रीवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. मिथिलेश कुमार बताते हैं कि बायो मेडिकल वेस्ट पदार्थों के निष्पादन को लेकर बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग रूल्स 2016 के नियमों के आधार पर अस्पतालों को दिशा निर्देश दिया गया है, जिसमें यह स्पष्ट बताया गया है कि सभी तरह के बायो वेस्ट मटेरियल को कलर कोटेड डस्टबिन में कैसे रखा जाए ताकि फिर उसी के हिसाब से उसका निष्पादन हो सके.
4 अलग-अलग रंग के होते हैं डस्टबिन
बायो मेडिकल वेस्ट रखने के लिए 4 अलग-अलग रंग के डस्टबिन बनाए गए हैं. पीला, लाल, ब्लू ट्रांसलूसेंट डस्टबिन, उजला ट्रांसलूसेंट डस्टबिन और दो खाद्य पदार्थ के वेस्ट को डिस्पोज करने के लिए डस्टबिन अस्पताल में रखे जाते हैं. जैसे पीले डस्टबिन में जितने भी चीजें हैं, वह सभी इंसीनरेटर मशीन में जाती है और उसे जलाना अनिवार्य होता है. वहीं लाल डस्टबिन में रखने वाले बायो वेस्ट को डीप बरियर किया जाता है. ब्लू ट्रांसलूसेंट डस्टबिन के पदार्थों को जमीन की गहराई में गाड़ दिया जाता है ताकि उससे निकलने वाले इन्फेक्शन लोगों को संक्रमित ना कर सके. इन मेडिकल वेस्ट जैसे सीरिंज, ग्लब्स, इंजेक्शन वाइल का शीशी, निडिल सहित अन्य सभी सामानों का डिस्पोजल अनिवार्य है.
इसको लेकर रिम्स के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. प्रदीप भट्टाचार्य बताते हैं कि बायो मेडिकल वेस्ट का निष्पादन होना बहुत ही जरूरी है, कई बार इसका सही तरीके से निष्पादन नहीं होने के कारण अस्पताल में काम करने वाले सफाई कर्मचारी संक्रमित हो जाते हैं और उनकी मौत भी हो जाती है.