रांची:सदन में सरकार के जवाब से एक बात तो स्पष्ट हो गया है कि सिर्फ 1932 का खतियान ही झारखंड के लिए स्थानीयता का आधार नहीं बनेगा. झारखंड में स्थानीयता नीति बनाने के दौरान 1964 और 1974 के सर्वे का भी ख्याल रखा जाएगा. प्रभारी मंत्री के तौर पर आलमगीर आलम ने सरयू राय के सवाल के जवाब में कहा कि इस राज्य के अलग-अलग जिलों में अलग-अलग समय पर सर्वेक्षण हुआ है. इसलिए थोड़ा वक्त जरूर लगेगा लेकिन यहां के लोगों की बेहतरी का ख्याल रखते हुए ही स्थानीयता नीति बनेगी.
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दरअसल, प्रश्नकाल के दौरान निर्दलीय विधायक सरयू राय ने इस सवाल को उठाया था. उन्होंने सरकार से पूछा था कि क्या सरकार स्थानीयता तय करने के लिए 1932 के खतियान को आधार बनाना चाहती है. क्या तत्कालीन सरकार के द्वारा बनाई गई स्थानीय नीति वर्तमान सरकार को स्वीकार नहीं है. जवाब में प्रभारी मंत्री आलमगीर आलम ने बताया कि नियोजन में स्थानीय व्यक्ति की परिभाषा के संबंध में बनी सरकार की नीति को 27 नवंबर 2002 को मुख्य न्यायाधीश, झारखंड हाईकोर्ट की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय खंडपीठ ने निरस्त कर दिया था. इसके बाद 28 अप्रैल 2016 को तत्कालीन सरकार ने झारखंड में स्थानीय निवासी की परिभाषा एवं पहचान संबंधी नीति बनायी थी.
फिलहाल, इसके लिए त्रिस्तरीय मंत्रिमंडलीय उप समिति के गठन का मामला सरकार के पास विचाराधीन है. सरकार इसको लेकर गंभीर है. वैसे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद सत्र के दौरान इस सवाल का जवाब दे चुके हैं कि झारखंड के लिए जो बेहतर होगा उसी पर आधारित नीति को लागू की जाएगी. इस पर कटाक्ष करते हुए आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने कहा कि अगर सरकार ऐसी सोच रखती है तो इसी सरकार में शामिल शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो और मंत्री चंपई सोरेन सदन के बाहर क्यों कहते हैं कि 1932 के आधार पर ही राज्य में स्थानीयता तय होगी.