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थानेदार लालजी यादव की मौत मामले में सनसनीखेज खुलासा, दो साल से नहीं मिला था वेतन

2012 बैच के दारोगा लालजी यादव की मौत मामला में पलामू से लेकर साहेबगंज तक हंगामा मचा हुआ है. इसी बीच एक बड़ा खुलासा हुआ है. दारोगा लालजी यादव को पिछले दो साल से वेतन नहीं मिला था. बंद वेतन को नियमित करवाने के लिए लालजी यादव लगातार रांची दौड़ रहे थे. लालजी यादव की मौत के बाद झारखंड पुलिस एसोसिएशन की एक टीम पलामू गई थी. एसोसिएशन की पड़ताल में यह बात सामने आयी है.

Inspector Lalji Yadav death case
Inspector Lalji Yadav death case

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Published : Jan 14, 2022, 11:09 PM IST

रांची: पलामू के नावानगर के निलंबित थानेदार लालजी यादव की मौत मामला में एक सनसनीखेज खुलासा हुआ है. लालजी यादव दो साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी बिना वेतन के ही नौकरी करने पर मजबूर थे. मिली जानकारी के अनुसार रांची के बुढमू थाने में अक्तूबर 2019 तक लालजी यादव थानेदार के पद पर थे. नियम के अनुसार थाना प्रभारी ही माल खाना के चार्ज में होता है. इसी बीच लालजी यादव का तबादला पलामू कर दिया गया. मालखाना का चार्ज लालजी यादव के पास ही रह जाने की वजह से उनका रांची जिला से एलपीसी यानि लास्ट पे सर्टिफिकेट जारी नहीं हो पाया था. मैनुअल के मुताबिक, जिला से तबादले के बाद नन गजटेड रैंक के अधिकारियों को एलपीसी सर्टिफिकेट जमा करना होता है. एलपीसी जमा नहीं होने के कारण दो साल से लालजी यादव पलामू जिला बल में काम तो कर रहे थे, लेकिन उनके वेतन की निकासी नहीं हो रही थी. गौरतलब है कि लालजी यादव के परिजनों ने पूरे मामले में पहले ही पलामू एसपी, एसडीपीओ और डीटीओ पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है.

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निलंबन के नियमों का नहीं होता पालन, छोटे छोटे मामलों में होता है निलंबन:झारखंड पुलिस एसोसिएशन के महामंत्री अक्षय कुमार राम ने पूरे मामले को लेकर झारखंड के डीजीपी को पत्र लिखा है. पत्र लिखकर उन्होंने डीजीपी को यह जानकारी दी है कि किस कदर वेतन नहीं मिलने की वजह से लालजी यादव तनाव से गुजर रहे थे. अक्षय राम के अनुसार झारखण्ड पुलिस ने बिहार पुलिस मैनुअल को साल 2000 में अंगीकृत किया था. झारखंड पुलिस के द्वारा अंगीकृत मैनुअल में निलंबन के सारे प्रावधानों का बहुत ही स्पष्ट वर्णन है. लेकिन जिलों में एसपी व डीआईजी रैंक के अधिकारियों के द्वारा कई बार छोटे छोटे मामलों में कनीय पुलिस अफसरों को निलंबित कर दिया जाता है. जिससे कनीय पुलिस अफसर तनाव से गुजरते हैं. मैनुअल के मुताबिक, निलंबन सिर्फ उन्हीं केस में किया जा सकता है, जिसमें संबंधित अधिकारी के कर्तव्यस्थ होने पर लोकहित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े. यहां तक कि किसी केस में अगर जांच पदाधिकारी ने अनुसंधान में गलत करता है तब भी उसके वेतन को रोके बिना दूसरे जगह ट्रांसफर करने की बात मैनुअल में है. लेकिन लालजी यादव के मामले में पुलिस एसोसिएशन ने पाया है कि सिर्फ डीटीओ से विवाद के बाद ही उन्हें एसपी पलामू ने निलंबित कर दिया था. पुलिस एसोसिएशन ने यह मांग की है कि मालखाना से जुड़े मामले में थाना प्रभारी को मुक्त रखा जाए. इसके लिए एक विशेष अफसर को तैनात किया जाए जो सिर्फ मलखाना का काम देखें.

दंडस्वरूप नहीं किया जा सकता निलंबन:पुलिस मैनुअल में स्पष्ट है कि दंडस्वरूप किसी पुलिस पदाधिकारी को निलंबित नहीं किया जा सकता है. निलंबित किए जाने के दौरान संबंधित पुलिस पदाधिकारी पर लगे आरोप की गंभीरता जानने का निर्देश मैनुअल में दिया गया है. मैनुअल के मुताबिक, ऐसे मामलों में ही पुलिस पदाधिकारी को निलंबित किया जाना चाहिए, जिसमें जांच होने पर संबंधित पदाधिकारी के बर्खास्तगी का मामला बनता हो. साथ ही किसी मामले में गिरफ्तारी होने पर पुलिस पदाधिकारी को निलंबित किया जाता है.

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