रांची: श्रावण मास की दूसरी सोमवारी को लेकर राजधानी रांची के पहाड़ी बाबा मंदिर के अलावा हिनू, अरगोड़ा, पुंदाग, नामकुम, चुटिया, कमड़े, धुर्वा सहित राजधानी रांची के सभी शिवालयों में अहले सुबह से ही शिव भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी. मंदिरों में भक्तों की लंबी-लंबी कतारें नजर आईं. भक्तों ने बेलपत्र, दूब घास, गंगाजल, दूध, भांग, धतूरे, मधु, फल और सफेद फूल से भोलेनाथ की पूजा की. इस दौरान सभी शिवालयों में हर-हर महादेव और बोल बम के जयकारे गुंजायमान रहे.
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सोमवारी के दिन भोलेनाथ की पूजा करने से बनी रहती है कृपाः इस वर्ष श्रावण मास की 17 जुलाई को दूसरी सोमवारी है. सनातन धर्म के जानकार पंडित धर्मेंद्र तिवारी के अनुसार आज के दिन भगवान भास्कर मिथुन राशि से निकल कर कर्क राशि में प्रवेश कर रहे हैं. इसके बाद ही भगवान भास्कर उत्तरायण से दक्षिणायन होंगे. इसे कर्क संक्रांति भी कहा जाता है. ऐसे में आज के दिन भोलेनाथ की सोमवारी के दिन पूजा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है.
स्वर्णरेखा नदी से पहाड़ी मंदिर तक सुरक्षा के खास प्रबंधः रांची के पहाड़ी मंदिर में सोमवारी के दिन कांवरिए और आम श्रद्धालु स्वर्णरेखा नदी से जल लेकर पहाड़ी बाबा पर अर्पण करते हैं. वहीं सोमवारी को श्रद्धालुओं की भीड़ को ध्यान में रखते हुए प्रशासन की ओर से स्वर्णरेखा नदी से लेकर पहाड़ी मंदिर तक सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. शिव भक्तों को कोई परेशानी न हो इसके लिए मंदिर प्रबंधन समिति के सदस्य और स्वयंसेवक भी सेवा दे रहे हैं.
श्रावण मास की सोमवारी का क्या है महत्वः सनातन धर्म के जानकार बताते हैं कि भगवान भोलेनाथ को श्रावण का महीना बेहद पसंद है. ऐसी भी मान्यता है कि श्रावण महीने में भगवान भोलेनाथ अपने ससुराल प्रवास के लिए जब धरती पर आए थे, तब उनका जलाभिषेक से स्वागत किया गया था.
भक्ति भाव से शिव की आराधना करने से होती है मनोवांछित फल की प्राप्तिः एक मान्यता यह भी है कि श्रावण मास की सोमवारी का व्रत करने से कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर की प्राप्ति होती है. साथ ही सुहागिन महिलाएं अपने पति के निरोगी और दीर्घायु जीवन के लिए पूरे भक्ति भाव से सोमवारी का व्रत करती हैं. भगवान भोलेनाथ तो वैसे भी बहुत दयालु हैं, ऐसे में उनके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है.
धीरे से नंदी के कान में अपनी बात कहने की है परंपराःएक परंपरा यह भी है कि भगवान भोलेनाथ की आराधना और उनका जलाभिषेक करने के बाद श्रद्धालु अपने मन की इच्छा नंदी के कान में धीरे से कहते हैं और उसे भगवान शिव तक पहुंचाने का आग्रह करते हैं. इसके पीछे की मान्यता यह है कि भगवान भोलेनाथ नन्दी की कही बात को कभी टालते नहीं हैं. ऐसे में भक्त अपनी इच्छा, चाहत नन्दी के माध्यम से भगवान भोलेनाथ तक पहुंचाते हैं, ताकि उनकी मनोकामना भोले बाबा पूर्ण करें.