रांची: झारखंड में भाषा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. हालात यह है कि सड़क पर चल रहे भाषा विवाद की आंच अब सदन तक पहुंच गई है. झारखंड विधानसभा बजट सत्र के तीसरे दिन सदन के बाहर उर्दू को क्षेत्रीय भाषा में शामिल करने के मुद्दे के खिलाफ विपक्ष का प्रदर्शन हुआ. झारखंड में उर्दू को हर जिले में मान्यता देने के खिलाफ भाजपा ने बुधवार को सत्र शुरू होने से पहले विधानसभा परिसर में जमकर नारेबाजी की. भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने सरकार पर उर्दू को हर जिले में मान्यता दिए जाने पर नाराजगी जताते हुए सरकार पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया.
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बीजेपी विधायक अनंत ओझा ने हेमंत सरकार पर हिंदी और संस्कृत की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए संथाल में कुरमाली जैसी भाषाओं को झारखंड की क्षेत्रीय भाषा से हटाकर उर्दू को शामिल किए जाने पर नाराजगी जताई. जिसपर सत्तारूढ़ जेएमएम ने बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा है की झारखंड में उर्दू को मान्यता बाबूलाल मरांडी के शासनकाल में भाजपा के द्वारा ही दी गई थी. जेएमएम विधायक सुदीप्तो सोनू ने भाजपा पर राजनीति करने का आरोप लगाया है.
जेएसएससी परीक्षा में मिली है इन भाषाओं को मान्यता: झारखंड में भाषा को लेकर जारी विवाद बढ़ता देख पिछले दिनों हेमंत सरकार ने कार्मिक विभाग की ओर से पहले जारी जिलावार भाषाओं के मान्यता में संशोधन करते हुए जहां भोजपुरी और मगही को धनबाद और बोकारो से हटा दिया है. वहीं, सभी जिलों में उर्दू भाषा की मान्यता बहाल की है. झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (Jharkhand Staff Selection Commission JSSC) ने मैट्रिक और इंटरमीडिएट स्तर की प्रतियोगिता परीक्षाओं में इन भाषाओं की मान्यता दे दी है. कार्मिक, प्रशासनिक सुधार और राजभाषा विभाग की ओर से इस संबंध में जारी अधिसूचना के तहत क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं की सूची जारी की गई है. जिसके तहत रांची में नागपुरी, पंचपरगनिया, उर्दू, कुरमाली, बंगला, कुडुख, खड़िया, मुंडारी, हो और संथाली भाषाओं को मान्यता दी गई है. वहीं, लोहरदगा में कुडुख, असुर, बिरजिया, नागपुरी और उर्दू को मान्यता दी गई है. खास बात यह है कि हेमंत सरकार ने उर्दू को राज्य के हर जिले में क्षेत्रीय भाषाओं में शामिल करने का निर्णय लिया है. विपक्ष लगातार इसका विरोध कर सरकार पर तुष्टिकरण का आरोप लगा रहे हैं.
स्थानीय नियोजन नीति की मांग
सदन के बाहर 1932 के आधार पर स्थानीय नियोजन नीति बनाने और पिछड़ा वर्ग आयोग के द्वारा की गई 2014 में अनुशंसा के आधार पर आरक्षण की मांग को लेकर आज विधायक लंबोदर महतो ने सदन के बाहर प्रोटेस्ट किया. उन्होंने कहा कि राज्य को बने आज 21 साल हो गए हैं, लेकिन दुर्भाग्य है कि यहां पर स्थानीय नियोजन नीति को परिभाषित नहीं किया गया है. सरकार में शामिल कांग्रेस की विधायक का दीपिका सिंह पांडे ने कहा कि स्थानीय नियोजन नीति को लेकर सरकार का सदन के अंदर जवाब आया है कि जल्द से जल्द इस पर विचार किया जाएगा. उन्होंने कहा कि तमाम मुद्दों को लेकर सरकार विचार कर रही है. जल्दी राज्य की जनता को इसकी सौगात मिलेगी.