रांचीः पांचवीं विधानसभा के आखिरी शीतकालीन सत्र के तीसरे दिन तीन विधायकों के निलंबन मामले को लेकर भाजपा के सभी विधायक राजभवन पहुंचे. मंगलवार को सत्र के दौरान विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा विधायक बिरंची नारायण, विधायक भानु प्रताप शाही और विधायक जयप्रकाश भाई पटेल को निलंबन किए जाने को लेकर भाजपा विधायकों ने खूब विरोध जताया.
भाजपा विधायकों के निलंबन के बाद देर शाम बाबूलाल मरांडी और अमर बाउरी के नेतृत्व में बीजेपी के कई विधायक राजभवन पहुंचे. लगभग एक घंटे तक राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन से मुलाकात के बाद राजभवन से बाहर निकले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि राज्य में जिस तरह से विधि व्यवस्था चरमरा गई है, उन सभी मुद्दों को लेकर राज्यपाल को अवगत कराया गया. उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर निशाना साधते हुए कहा कि उनके द्वारा जिस तरह से कानून को ठेंगा दिखाया जा रहा है. ऐसे में राज्य के अपराधियों और असामाजिक तत्वों का मनोबल और भी ऊंचा होगा. जिसके बाद राज्य की विधि व्यवस्था और भी खराब होगी.
वहीं उन्होंने कहा कि जिस तरह से विधानसभा अध्यक्ष ने भाजपा के तीन विधायकों को विधानसभा के शीतकालीन सत्र से निलंबित किया है, वह गलत है. उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय को देखकर ऐसा लग रहा था कि मानो वह पहले से ही सोच कर आए थे कि भाजपा के विधायकों को निलंबित करना है. वहीं नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा भाजपा के विधायकों पर की गई कार्रवाई कहीं से भी जायज नहीं है. भाजपा के विधायक कार्य स्थगन प्रस्ताव को पढ़ना चाहते थे लेकिन इसकी अनुमति विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा नहीं दी गई.
उन्होंने कहा कि भाजपा के विधायक यह चाहते थे कि कार्य स्थगन प्रस्ताव को पढ़ दिया जाए ताकि लाखों लोग जो विभिन्न मांगों को लेकर सड़क पर हैं उनकी बातें विधानसभा के शीतकालीन सत्र में रिकॉर्ड हो सके. वहीं राजमहल विधानसभा से भाजपा विधायक अनंत ओझा ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष, विधानसभा में सर्वमान्य हैं. उनके द्वारा जो भी निर्णय लिया जाता है उसे मानना विधायकों का कर्तव्य है लेकिन जिस तरह से आज भाजपा के विधायकों को अध्यक्ष द्वारा निलंबित किया गया है उस पर कहीं ना कहीं कई सवाल खड़े हो रहे हैं.
वहीं निलंबित किए गए विधायकों की सूची में शामिल बोकारो से विधायक बिरंची नारायण ने बताया कि यदि विपक्ष यह कहता है कि लोकसभा में सांसदों को निलंबित किया गया है, उस पर भाजपा क्यों नहीं सवाल उठाती है तो दोनों परिस्थितियां अलग-अलग हैं. लोकसभा में गृह मंत्री विपक्ष को अपनी बात सुनाना चाहते हैं लेकिन विपक्ष सुनने के लिए तैयार नहीं है और झारखंड में ठीक इसके उलट है. यहां पर विपक्ष सुनना चाहती है लेकिन सरकार कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं है.