रांची: जनवरी का महीना आते ही तिलकुट की खुशबू बाजारों में महकने लगती है. चौक चौराहों पर तिलकुट से जुड़े व्यापार करने में लोग जुट जाते हैं. राजधानी रांची में भी तिलकुट को लेकर बाजार सज गया है. पांच दिनों के बाद मकर संक्रांति का पर्व है, जिसको लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है. दूर-दराज क्षेत्रों में रहने वाले लोग तिलकुट खरीदने रांची के खास दुकानों में पहुंच रहे हैं. कोई दो किलो तो कोई चार किलो तिलकुट खरीदते नजर आ रहा है.
मकर संक्रांति के मौके पर तिलकुट की बढ़ती मांग को देखते हुए व्यापारी भी तिलकुट बनाने में जुटे हुए हैं. राजधानी के अपर बाजार, किशोरगंज और धुर्वा के इलाकों में विभिन्न तरह के तिलकुट मिल रहे हैं. कोई गुड़ के तिलकुट की फरमाइश कर रहा है तो कोई चीनी से बने तिलकुट की फरमाइश कर रहा है. तिलकुट व्यापारी भोलू भाई कुशवाहा बताते हैं कि पिछले पांच दशक से वह तिलकुट का व्यापार कर रहे हैं. इस वर्ष भी उन्होंने तिलकुट का बाजार लगाया है. इस वर्ष सबसे ज्यादा गुड़ के तिलकुट की मांग देखी जा रही है.
तिलकुट व्यापारी भोलू भाई कुशवाहा बताते हैं कि मकर संक्रांति आने के दो माह पहले से ही वे लोग तैयारी में जुट जाते हैं. तिलकुट में सबसे महत्वपूर्ण तिल होता है. इसीलिए तिल के उच्चतम क्वालिटी को उत्तर प्रदेश के कानपुर और मध्य प्रदेश के ग्वालियर से मंगवाते हैं. झारखंड और आसपास के इलाकों में मिलने वाले तिल में कंकड़ पाए जाते हैं जो लोगों को पसंद नहीं आते.
गौरतलब है कि मकर संक्रांति के मौके पर तिलकुट की मांग चरम पर होती है. ऐसे में बाहर से आए कारीगरों को भी तिलकुट बनाने का काम मिलता है. गोपालगंज से आए तिलकुट बनाने वाले जगदीश नाम के एक कारीगर ने कहा कि मकर संक्रांति के मौके पर डेढ़ से दो महीने तक के लिए उन्हें व्यापार मिल जाता है. क्योंकि तिलकुट बनाने में कारीगरों की आवश्यकता होती है. ऐसे में तिलकुट से जुड़े व्यापार करने वाले व्यवासायी ग्राहकों के ऑर्डर पूरा करने के लिए बाहर से कारीगरों को बुलाते हैं.