रांची: बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि नेकी कभी खाली नहीं जाती. यह बात राज्य के दिवंगत जगरनाथ महतो उर्फ टाइगर दा पर बिल्कुल फिट बैठती है. बेहद सरल इंसान थे. कम शब्दों में बड़ी बातें कह जाते थे. विवादों को पाटने में महारथ हासिल थी. उनके भरोसे पर भरोसा करते थे लोग. तभी तो उनके श्राद्धकर्म में जनसैलाब उमड़ पड़ा. पैतृक गांव अलारगो में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत कई मंत्री, विधायक और गणमान्य पहुंचे. डुमरी विधानसभा क्षेत्र के हीरो थे जगरनाथ महतो जी. खेतों में किसानी करने का कभी मौका नहीं चूकते थे. द्वार पर कोई जरूरतमंद आ गया तो बिना वक्त गंवाए समस्या सुलझाने निकल जाया करते थे. आज उनके लिए लोग निकले हैं. आलम यह है कि अप्रत्याशित भीड़ को संभालने के लिए प्रशासन को ट्रैफिक चार्ट बनाना पड़ा है.
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लोग कहते हैं कि कमबख्त कोरोना न आया होता तो शायद जगरनाथ महतो जी सकुशल जनसेवा कर रहे होते. लेकिन नीयती ने कुछ और लिख रखा था. 28 सितंबर 2020 को पहली बार पता चला कि वह कोरोना संक्रिमित हो गये हैं. एक जनसेवक के रूप में खुद चलकर रिम्स गये थे. लेकिन हालत बिगड़ती गई. बाद में मेडिका ले जाए गये. कुछ दिन के भीतर ही उन्हें वेंटिलेटर पर ले जाना पड़ा. फेफड़ा खराब हो चुका था. आनन फानन में चेन्नई भेजे गये. लंग्स का ट्रांसप्लांट भी हुआ. जून 2021 में सकुशल रांची लौटे. काम भी करने लगे. लेकिन मार्च माह में बजट सत्र के दौरान अचानक तबीयत बिगड़ गई. फिर चेन्नई ले जाए गये लेकिन 6 अप्रैल को मनहूस खबर आ गई.
'टाइगर दा' का राजनीतिक सफर:अलग झारखंड के आंदोलन में उन्होंने खूब पसीना बहाया. राज्य बनने से पहले समता पार्टी की टिकट पर 1999 में चुनाव मैदान में उतरे लेकिन हार गये. इसके बाद जैसे ही झारखंड अलग राज्य बना, उनकी राजनीति परवान चढ़ने लगी. झामुमो की टिकट पर 2005 में मैदान में उतरे. तब से अबतक हुए चार चुनावों में उनको कोई भी मात नहीं दे पाया. इसकी वजह थी उनकी ग्रामीणों में पकड़. सबसे साथ जुड़ाव. भेदभाव वाला चश्मा नहीं था इनके पास. बोकारो और गिरिडीह में इनकी तूती बोलती थी. यही वजह है कि झामुमो ने दो बार गिरिडीह लोकसभा की जिम्मेदारी दी. हालांकि मोदी लहर और राजनीतिक समीकरण के आगे वह नहीं टिक पाए. लेकिन चार विस चुनाव जीतने के बाद हेमंत सोरेन भी समझ गये थे कि मूलवासी और सदान नेता के रूप में टाइगर दा से बड़ा कोई नेता उनकी पार्टी में नहीं था. इसलिए उन्हें शिक्षा और मद्य निषेद्य जैसे दो अहम विभाग मिले. उन्होंने ही पारा शिक्षकों की समस्या का हल निकाला था. बड़े स्तर पर शिक्षकों की बहाली की तैयारी करवा रहे थे. लेकिन स्थानीयता और नियोजन नीति के पचड़े में उनके सपने अधूरे रह गये.
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जगरनाथ महतो ने 2005 के चुनाव में तब के कद्दावर नेता लालचंद महतो को 18 हजार से ज्यादा वोट के अंतर से हराया था. तब लालचंद महतो राजद की टिकट पर मैदान में थे. 2009 में उन्होंने जदयू के दामोदर प्रसाद महतो को 13,668 वोट के अंतर से हराया था. 2014 के चुनाव में जगरनाथ महतो का कद इतना बड़ा हो गया कि भाजपा की टिकट पर मैदान में आए कद्दावर लालचंद महतो करीब 35 हजार वोट के अंतर से हार गये. 2019 के चुनाव में उनकी सीधी लड़ाई आजसू की यशोदी देवी से हुई जो 34 हजार से ज्यादा वोट से हार गईं.
झारखंड में छठी सीट पर होगा उपचुनाव:जगरनाथ महतो जी के असमय निधन की वजह से डुमरी विधानसभा सीट के लिए बहुत जल्द चुनाव की तारीख का ऐलान हो जाएगा. 2019 के विधानस चुनाव के बाद राज्य में छठा उपचुनाव होगा. पहली बार सीएम हेमंत सोरेन के दुमका सीट छोड़ने पर उपचुनाव हुआ था. इसके बाद हाजी हुसैन अंसारी के निधन पर मधुपुर, राजेंद्र सिंह के निधन पर बेरमो, बंधु तिर्की को आय से अधिक संपत्ति मामले में सजा मिलने पर मंडर और रामगढ़ की ममता देवी को फायरिंग मामले में सजा मिलने की वजह से उपचुनाव हुआ था. रामगढ़ को छोड़कर सभी उपचुनाव में पहले से जीतने वाली पार्टियों की ही जीत हुई थी. अब डुमरी में उपचुनाव होना है. चर्चा है कि जगरनाथ महतो की पत्नी को झामुमो मैदान में उतारेगी. यह पहला उपचुनाव होगा जिसके नतीजे को लेकर कोई शक सुबहा नहीं है. एनडीए के लिहाज से डुमरी में आजसू अपना कैंडिडेट देता है. अब सवाल है कि क्या सहानुभूति की लहर में आजसू का मैजिक चल पाएगा. इस जवाब के लिए इंतजार करना होगा.