रांची:ईडी की पूछताछ में शराब कारोबारी योगेंद्र तिवारी ने शराब के खेल में शामिल सिंडिकेट की परी पोल खोल कर रख दी है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, शराब का कारोबार हासिल करने के लिए योगेन्द्र तिवारी और उनके सिंडिकेट ने 19 कंपनियों के खातों में 58 करोड़ रुपये जमा किये थे. जिन 19 कंपनियों के खातों में पैसा जमा किया गया था, उनके खाते ज्यादातर तीन बैंकों, पंजाब नेशनल बैंक, जामताड़ा, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, महिजाम और पंजाब नेशनल बैंक, दुमका में थे.
योगेंद्र ने 38 कंपनियों से जुटाए 58 करोड़, ईडी की पूछताछ में आरोपी ने उगले कई राज - ed raid in ranchi
ईडी के सामने योगेन्द्र तिवारी ने शराब के खेल में शामिल सिंडिकेट की पूरी पोल खोल दी है. ईडी की जांच में पता चला है कि झारखंड में शराब के थोक कारोबार पर कब्जा करने के लिए राजनेताओं और कारोबारियों की 38 कंपनियों के जरिए 58 कंपनियां बनाई गईं. करोड़ों की उगाही हुई. सारा पैसा योगेन्द्र तिवारी के माध्यम से ही जमा किया गया था. Yogendra Tiwari exposed liquor syndicate
Published : Oct 22, 2023, 10:53 PM IST
ईडी को मिले तथ्यों के मुताबिक ज्यादातर रकम जून 2021 में कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने वाली कंपनियों के खातों में ट्रांसफर की गई. योगेन्द्र को सबसे ज्यादा 10.50 करोड़ रुपये कोलकाता के डालमिया ग्रुप ने 15 जून और 24 जून 2021 को भेजे. 23 अगस्त को ईडी ने डालमिया ग्रुप के मनीष कॉर्पोरेशन प्राइवेट लिमिटेड के ठिकानों पर भी छापेमारी की थी. जिन लोगों से पैसे जमा कराए गए थे, उनमें 22 कंपनियां और 16 व्यक्ति शामिल हैं. कई कंपनियां राज्य के कुछ विधायकों और बड़े राजनेताओं से सीधे तौर पर जुड़ी हुई हैं. ये पैसे उन कंपनियों को लाइसेंस हासिल करने के लिए ट्रांसफर किए गए थे, जिन्हें शराब का थोक कारोबार हासिल हुआ था.
योगेंद्र और प्रेम प्रकाश बड़े खिलाड़ी:झारखंड में शराब के थोक कारोबार के लिए 11 जून 2021 को विज्ञापन जारी किया गया था. विज्ञापन जारी होने के बाद ही योगेंद्र तिवारी और प्रेम प्रकाश के नेतृत्व में सिंडिकेट ने सभी जिलों के लिए अलग-अलग नामों से भी आवेदन डाले. आवेदन राशि 25 लाख रुपये थी, ऐसे में सिर्फ 9 अन्य लोगों ने आवेदन डाले, जिन कंपनियों को थोक कारोबार का ठेका मिला, उसमें से अधिकांश के सभी के बैंक खाते जामताड़ा और दुमका में थे. धनबाद और रांची के पते पर रजिस्टर्ड कंपनियों के खाते भी इन्हीं बैंकों में थे, इससे ही मनी लाउंड्रिंग का संदेह बढ़ा. ईडी ने जांच में पाया है कि ठेका हासिल करने के लिए पूरा पैसा अलग-अलग वैध और अवैध स्रोत से कंपनियों के खाते में डाले गए.