संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम रांचीः अलग राज्य बनने के बाद झारखंड में नियोजन नीति हमेशा से राजनीति और कानूनी लड़ाई के भंवरजाल में फंसकर रह गई. विडंबना यह है कि राज्य गठन के शुरुआती दौर से अब तक यानी 22 वर्ष में जितनी भी सरकारें बनीं नियोजन नीति को संवैधानिक रुप से बनाने में सफल नहीं हुई है. इसका खामियाजा यहां के छात्र आज तक उठा रहे हैं. एक बार फिर हेमंत सरकार की नियोजन नीति 2021 हाई कोर्ट से खारिज होने के बाद प्रदेश के युवा दोराहे पर खड़े हैं कि आखिर उन्हें नौकरी कब तक मिलेगी.
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सर्वप्रथम बाबूलाल के समय बनी स्थानीय और नियोजन नीतिः राज्य गठन के बाद सर्वप्रथम झारखंड की कुर्सी पर बैठे बाबूलाल मरांडी ने स्थानीय लोगों को रोजगार देने और आरक्षण की नई कहानी लिखने की कोशिश की. डोमिसाइल को लेकर उठा विवाद आज भी झारखंड में रहने वाले लोग याद करके सहम जाते हैं. बाबूलाल की सरकार ने भी 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू की थी. जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद उसे संवैधानिक बताते हुए नई नीति बनाने का निर्देश दिया था. इसी तरह नियोजन नीति बनाते हुए बाबूलाल मरांडी सरकार ने 73 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की थी. मामला जब हाई कोर्ट में गया तो उसने इसे असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया था.
रघुवर की नियोजन नीति भी असंवैधानिकः बाबूलाल मरांडी की स्थानीय और नियोजन नीति कानूनी रुप से खारिज होने के बाद लंबे समय तक राज्य में जैसे तैसे नियुक्ति की प्रक्रिया चलती रही. इस दौरान नियुक्ति प्रक्रिया में बरती गई अनियमितता का दंश झारखंड के युवा आज तक झेल रहे हैं. रघुवर दास की नेतृत्व में बनी सरकार ने स्थानीय नीति के साथ नियोजन नीति भी बनी. 14 जुलाई 2016 को रघुवर सरकार की ओर से नियोजन नीति लागू की गई. नियोजन नीति के अंतर्गत 13 जिलों को अनुसूचित और 11 जिलों को गैर अनुसूचित जिला घोषित कर दिया गया.
इस नियोजन नीति के अंतर्गत अनुसूचित जिलों की ग्रुप सी और डी की नौकरियों में उसी जिला के निवासियों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया. यह प्रावधान 10 वर्षों के लिए किया गया. इस नियोजन नीति के तहत जैसे ही राज्य सरकार की ओर से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गई यह विवादों में आने लगी. प्रार्थी सोनी कुमारी ने हाई कोर्ट में चुनौती देकर इसे समानता के अधिकार के खिलाफ बताते हुए न्याय की गुहार लगाई.
आरक्षण के हवाले से नीति रद्दः झारखंड हाई कोर्ट ने सोनी कुमारी की याचिका की सुनवाई करते हुए इंदिरा साहनी और चेबरु लीला प्रसाद राव के मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए रघुवर सरकार की नियोजन नीति को रद्द कर दिया. कोर्ट का मानना था कि किसी भी स्थिति में कोई भी पद शत प्रतिशत आरक्षित नहीं किया जा सकता है. आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत ही हो सकती है जबकि नियोजन नीति के चलते अनुसूचित जिलों में यह 100 फीसदी हो गई थी. झारखंड हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ रघुवर सरकार सुप्रीम कोर्ट तक गई मगर कोई राहत नहीं मिली.
हेमंत सरकार की नियोजन नीतिः 2019 के विधानसभा चुनाव में सफलता मिलने के बाद झारखंड की गद्दी पर आसीन होते ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 3 फरवरी 2021 को रघुवर सरकार की नियोजन नीति को रद्द कर नई नीति लाने की घोषणा की. रघुवर सरकार की नियोजन नीति को रद्द करने के पीछे हेमंत सरकार का तर्क राज्यस्तरीय नियोजन नीति बनाना था. पिछली सरकार के नियोजन नीति में झारखंड को 11 और 13 जिलों में बांटने को अनुचित बताया गया.
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हेमंत सोरेन के नेतृत्व में राज्य में बनी यूपीए की सरकार ने 2021 में एक नई नियोजन नीति बनाया. जिसके तहत सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए झारखंड से मैट्रिक-इंटर पास को अनिवार्य किया गया. इसके अलावा हिंदी और अंग्रेजी को किनारे करते हुए प्रत्येक जिला में उर्दू एवं क्षेत्रीय भाषाओं की मान्यता दी गई. जिसके खिलाफ झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. झारखंड हाई कोर्ट ने हेमंत सरकार की नियोजन नीति 2021 को असंवैधानिक मानते हुए कहा कि यह समानता के अधिकार के खिलाफ बताया. 17 दिसंबर 2022 को हाई कोर्ट का यह फैसला आने के बाद हेमंत सोरेन सरकार की नियोजन नीति रद्द हो गई, जिसके परिणाम स्वरूप जेएसएससी द्वारा आयोजित होने वाली सभी परीक्षाएं अधर में लटक गई.
झारखंड में नियोजन नीति पर विवाद
नियोजन नीति को फिर से तैयारी में हेमंत सरकारः हेमंत सरकार के लिए गले की हड्डी बनी नियोजन नीति एक बार फिर नये सिरे से तैयार की जा रही है. हाई कोर्ट से नियोजन नीति रद्द हो जाने के बाद सरकार बीच का रास्ता निकालने में जुट गई है, जिससे छात्रों की नाराजगी को कम किया जा सके. सरकार के आला अधिकारी नये सिरे से नियोजन नीति तैयार करने में जुटे हैं.
मुख्य सचिव के साथ कई राउंड मीटिंगः मुख्य सचिव सुखदेव सिंह के नेतृत्व में राज्य के आला अधिकारियों की कई राउंड बैठक हो चुकी है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी अधिकारियों को हाई कोर्ट के फैसले का अध्ययन कर नया नियोजन नीति जल्द से जल्द तैयार करने को कहा है. संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने उम्मीद जताते हुए कहा है कि एक महीने के अंदर नई नियोजन नीति तैयार कर ली जाएगी. उन्होंने कहा कि पूर्व में बनी नियोजन नीति में यहां के सामान्य वर्ग के लिए झारखंड से मैट्रिक-इंटर पास होने की अनिवार्यता थी, हाई कोर्ट की टिप्पणी का भी अध्ययन किया जा रहा है. उन्होंने छात्रों से निराश नहीं होने की अपील करते हुए कहा है कि हर हाल में बजट सत्र से पहले नया नियोजन नीति ले आया जाएगा.
खत्म होगी झारखंड से 10वीं-12वीं पास की बाध्यता! हाई कोर्ट ने हेमंत सरकार की जिस नियोजन नीति को खारिज किया, उसमें यह था कि झारखंड में सरकारी नौकरी पाने के लिए अभ्यर्थी को झारखंड से 10वीं और 12वीं की परीक्षा पास करना अनिवार्य होगा. इसे हाई कोर्ट ने असंवैधानिक माना. राज्य सरकार इसी के आधार पर बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्ति करने वाली थी. लेकिन अब राज्य सरकार इस प्रावधान को खत्म करने जा रही है. स्थानीय रीति से रिवाज, भाषा और परिवेश की शर्तें भी सरकार शिथिल करने की तैयारी हो रही है. प्रस्तावित नियोजन नीति के तहत कोई भी कहीं से भी पढ़ाई करके झारखंड में नौकरी पा सकता है.
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क्यों रद्द होती रही झारखंड की नियोजन नीतिः झारखंड हाई कोर्ट ने 16 दिसंबर 2022 को हेमंत सोरेन सरकार की नियोजन नीति रद्द कर दी. इससे 13 हजार 968 पदों पर होने वाली नियुक्ति भी रद्द हो गयी. नियुक्तियों के लिए प्रकाशित विज्ञापन में कहा गया था कि सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों का झारखंड से 10वीं और 12वीं की परीक्षा पास करना अनिवार्य है. झारखंड के निवासियों के लिए इसकी बाध्यता खत्म कर दी गयी थी. हाई कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना और नियोजन नीति को रद्द कर दिया था. हाई कोर्ट की दलील थी कि यह संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार के खिलाफ है, कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन माना. नियोजन नीति में क्षेत्रीय भाषा की सूची से हिंदी को हटाकर उर्दू को शामिल किया. जिस पर अदालत ने कहा कि ऐसा करने का कोई आधार नहीं है क्योंकि सभी स्कूलों में हिंदी माध्यम से ही पढ़ाई होती है. कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की थी कि यह नियम एक खास वर्ग के लिए बनाया गया है.
22 साल में तीन बार बनी है नियोजन नीति: झारखंड में स्थानीय नीति और नियोजन नीति हमेशा विवादों रहा है. राज्य गठन से अब तक कुल तीन बार नियोजन नीति बनी. राज्य बनने के बाद सर्वप्रथम बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी सरकार ने स्थानीय और नियोजन नीति बनाकर राज्य में नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश की. स्थानीय और नियोजन नीति में खामियों की वजह से झारखंड हाई कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया. फिर 2016 में रघुवर सरकार ने नियोजन नीति को फिर से पारिभाषित किया. जिसके तहत राज्य के 13 जिलों को अनुसूचित क्षेत्र और 11 जिलों को गैर-अनुसूचित श्रेणी में बांटकर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की. यह नियोजन नीति भी लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रद्द कर दी गयी. साल 2019 में हेमंत सरकार ने रघुवर शासनकाल में बनी नियोजन नीति को खारिज करते हुए वर्ष 2021 में एक नई नियोजन नीति बनाई. जिसके तहत झारखंड से मैट्रिक-इंटर पास की अनिवार्यता और प्रत्येक जिला में उर्दू एवं क्षेत्रीय भाषाओं की मान्यता दी गई. झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल होने के बाद कोर्ट ने इसे भी रद्द कर दिया.
रघुवर की नियोजन नीतिः 2016 की 14 जुलाई को रघुवर सरकार की ओर से अधिसूचना जारी कर नियोजन नीति लागू की गई. इस नीति के तहत 13 जिलों को अनुसूचित और 11 जिलों को गैर अनुसूचित जिला घोषित किया गया. इस नियोजन नीति के अंतर्गत अनुसूचित जिलों की ग्रुप C और D की नौकरियों में उसी जिला के निवासियों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया. यानी कि अनुसूचित जिलों की नौकरियों के लिए वही लोग आवेदन कर सकते थे जो इन जिलों के निवासी थे. इन जिलों की नौकरियों को यहीं के निवासियों के लिए शत प्रतिशत आरक्षित कर दिया गया, जबकि गैर अनुसूचित जिलों की नौकरियों के लिए सभी आवेदन दे सकते थे. राज्य सरकार ने यह नीति दस साल के लिए बनाई.
अनुसूचित और गैर-अनुसूचित श्रेणी में बांटने पर विवादः 2016 में रघुवर सरकार की ओर से शिक्षक भर्ती के लिए 17 हजार 572 पदों पर आवेदन मांगे गए. इस भर्ती के 8 हजार 423 पद अनुसूचित जिलों में जबकि 9 हजार 149 पद गैर-अनुसूचित जिलों में थे. इस नियोजन नीति के कारण गैर-अनुसूचित जिलों के अभ्यर्थी अनुसूचित जिलों के लिए आवेदन नहीं कर पाए. इसे समानता के अधिकार के खिलाफ बताते हुए प्रार्थी सोनी कुमारी ने झारखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट ने इस नीति को रद्द कर दिया.