रांची: झारखंड एक बार फिर संवैधानिक संकट के मुहाने पर खड़ा दिख रहा है. इसकी वजह है तथाकथित लैंड स्कैम मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी का एक के बाद एक छह समन. सीएम के ईडी दफ्तर नहीं जाने की वजह से चर्चा तेज हो गई है कि झारखंड में कुछ बड़ा होने वाला है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक ईडी के रांची स्थित रीजनल ऑफिस में हलचल बढ़ी हुई है. एडिशनल डायरेक्टर कपिल राज रांची आए हुए हैं.
झारखंड की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले सरयू राय सरीखे नेता अपने अनुभव के हवाले से कह चुके हैं कि हेमंत सरकार का चार साल पूरा होना मुश्किल दिख रहा है. उन्होंने महाभारत के एक प्रसंग का उदाहरण देते हुए कहा था कि कृष्ण ने शिशुपाल के वध के लिए 99 गालियां पूरा होने तक इंतजार किया था. अब सवाल है कि ईडी कब तक उनसे पूछताछ के लिए इंतजार करेगी. उन्होंने यह भी कहा था कि इसमें कोई शक नहीं कि मुख्यमंत्री महाभारत के कर्ण की तरह परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं. दूसरी तरफ सदन में तीन विधायकों के निलंबन पर भाजपा के नेता प्रतिपक्ष कह चुके हैं कि इस सरकार को बर्खास्त कर देने की जरूरत है.
इन घटनाक्रमों को देखने से साफ झलक रहा है कि झारखंड में कुछ बड़ा होने वाला है. सबसे पहले यह समझना होगा कि ईडी के पास क्या-क्या ऑप्शन है. एक बात तो सभी जानते हैं कि ईडी अपने समन के तामिला के लिए पीएमएलए कोर्ट जा सकती है. वहां से पूछताछ का ऑर्डर ले सकती है. ईडी को लगे तो गिरफ्तारी का वारंट भी ले सकती है. लेकिन क्या आप जानते है कि ईडी के पास एक और विकल्प है.
प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के सेक्शन 19(1) के मुताबिक If the Director, Deputy Director, Assistant Director or any other officer authorized in this behalf by the Central Government by general or special order has on the basis of material in his possession reason to believe (the reason for such to be recorded in writing) that any person has been guilty of an offence punishable under this Act, he may arrest such person and shall, as soon as may be, informed him of the ground for such arrest . इसका हिन्दी में मतलब है कि " यदि निदेशक, उप निदेशक, सहायक निदेशक या केंद्र सरकार द्वारा सामान्य या विशेष आदेश द्वारा इस संबंध में अधिकृत किसी अन्य अधिकारी के पास अपने पास मौजूद सामग्री के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है (ऐसा करने का कारण लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए) कि कोई भी व्यक्ति इस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध का दोषी है, वह ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है और जितनी जल्दी हो सके, उसे ऐसी गिरफ्तारी के लिए आधार के बारे में सूचित करेगा ".
सरकार बचेगी या राष्ट्रपति शासन लगेगा: इस संभावना पर खुद सीएम हेमंत सोरेन पिछले कई दिनों से बल दे रहे हैं. सरकार आपके द्वार कार्यक्रम के दौरान वह कई बार कह चुके हैं कि हम लोग जेल जाने से डरने वालों में नहीं हैं. अब सवाल है कि अगर ईडी कोई बड़ा एक्शन लेती है (जिसकी प्रबल संभावना दिख रही है) तो झारखंड में क्या कुछ हो सकता है. वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा का कहना है कि सबसे पहले यह समझना होगा कि जो कुछ होगा ईडी के माध्यम से होगा. एक तो कोर्ट से गिरफ्तारी का वारंट ले सकती है. दूसरा विकल्प है कि चार्जशीट फाइल करे. तीसरा विकल्प है कि डीजीपी को बताकर इनके अधिकारी सीएम आवास पहुंचें और कहें कि आप चलें.
अब सवाल है कि अगर सीएम की गिरफ्तारी होती है तो क्या वह जेल से सरकार चला सकते हैं. इसका जवाब है नहीं. अगर सीएम इस्तीफा देंगे तो झामुमो विधायक दल नया नेता चुनेगा. इसमें कई उलझने आ सकती हैं. नये नेता को सदन में बहुमत साबित करना होगा. रही बात कांग्रेस की तो ऐसे हालात में एकजुटता उसकी मजबूरी होगी. वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा ने कहा कि उनकी समझ से पीएम नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति शासन की तरफ नहीं जाना चाहेंगे. वह अपयश के कभी भागीदार नहीं बनना चाहेंगे. अगर ऐसा करना होता तो कई राज्यों में वह कर सकते थे. यह काम कांग्रेस किया करती थी. लेकिन परिस्थिति बता रही है कि झारखंड में कृष्ण जन्मभूमि का दर्शन होने वाला है.
राज्य में अब तक तीन बार लग चुका है राष्ट्रपति शासन: साल 2000 में राज्य बनने के बाद से साल 2014 तक झारखंड राजनीतिक अस्थिरता से गुजर चुका है. बहुमत के अभाव में सरकारें गिरती और बनती रहीं हैं. पहली बार साल 2009 में, दूसरी बार साल 2010 में और तीसरी बार झामुमो के भाजपा से समर्थन वापस लेने पर मुंडा सरकार के गिरने से राष्ट्रपति शासन लगा था. हालांकि 2014 में जेवीएम के पांच विधायकों को मिलाकर रघुवर दास के नेतृत्व में मजबूत सरकार बनी थी, जो पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाली पहली सरकार बनी. 2019 में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन की बहुमत वाली सरकार जरुर बनी लेकिन कई मसलों को लेकर विवादों में रही. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से अवैध खनन लीज मामले में पिछले साल नवंबर में ईडी करीब 9 घंटे तक पूछताछ कर चुकी है. अब तस्वीर बदल चुकी है. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट का रास्ता बंद हो चुका है. सिर्फ इस बात का इंतजार हो रहा है कि स्टेप कब और कैसे लिया जाने वाला है.