रांची: झारखंड में नियमित डीजीपी की नियुक्ति का मामला यूपीएससी के पेच में लंबे समय से फंसा है. यूपीएससी ने इस मामले में सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाकर पैनल भेजे जाने को लेकर दिशा-निर्देश लेने की बात कही थी पर राज्य सरकार अब तक सुप्रीम कोर्ट जाने को लेकर असमंजस में है. राज्य सरकार के अधिकारियों के मुताबिक, सरकार ने अब तक इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला नहीं लिया है.
क्यों फंसा है पेच
मार्च में 9 महीने के टर्म के बाद तत्कालीन डीजीपी केएन चौबे को राज्य सरकार ने हटा दिया था, तब प्रभारी डीजीपी के तौर पर एमवी राव की तैनाती की गई थी. हालांकि तब राज्य सरकार ने केएन चौबे को डीजीपी के पद से हटाने की वजह का जिक्र अधिसूचना में नहीं किया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, राज्य की सरकार दो साल का टर्म पूरा करने की स्थिति में ही डीजीपी को हटा सकती है. हटाने के लिए विभागीय मामले में दोषी पाया जाना, किसी आपराधिक मामले में न्यायालय से सजा या स्थायी तौर पर शारीरिक अकर्मण्यता में से किसी एक परिस्थिति का होना जरूरी है.
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तीन बार पैनल भेज चुकी है सरकार
राज्य सरकार तीन बार डीजीपी की नियुक्ति के लिए पैनल भेज चुकी है. पहली बार यूपीएससी ने आपत्तियों के साथ डीजीपी की नियुक्ति संबंधी पैनल को वापस लौटा दिया था. दूसरी बार राज्य सरकार ने यूपीएससी के कार्यक्षेत्र का हवाला देते हुए पैनल भेजा था, तब यूपीएससी ने यह कहते हुए पैनल वापस कर दिया था कि राज्य की सरकार पैनल भेजने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट जाकर यूपीएससी के लिए गाइडलाइन जारी कराए.
चौबे के इनकार के बाद भी नहीं बनी बात
राज्य सरकार को बीते माह पूर्व डीजीपी केएन चौबे ने लिख कर दिया था कि वह दोबारा डीजीपी के पद पर वापस नहीं आना चाहते. वर्तमान में डीजी आधुनिकीकरण कैंप आफिस दिल्ली में उनकी तैनाती है. केएन चौबे के इनकार के बाद राज्य सरकार ने तीसरी बार यूपीएससी को पैनल भेजा था, लेकिन तीसरी बार भी यूपीएससी ने आपत्तियों के साथ पैनल वापस भेज दिया है. ऐसे में राज्य सरकार नियमित डीजीपी को लेकर असमंजस में फंस गई है.
सुप्रीम कोर्ट में मिली थी राहत
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में झारखंड में प्रभारी डीजीपी की नियुक्ति को लेकर जनहित याचिका दायर हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने प्रभारी डीजीपी के पदस्थापना को लेकर दर्ज याचिका को निष्पादित कर दिया था. कोर्ट ने पूरे मामले को सर्विस मैटर माना था.