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झारखंड में दम तोड़ रही है उज्ज्वला योजना! महज 21 प्रतिशत परिवार ही उठा पा रहे हैं लाभ, प्रोजेक्ट की हकीकत चौंकाने वाली - Jharkhand News

झारखंड में उज्ज्वला योजना की हालत दयनीय है. यहां पर मात्र 21 प्रतिशत परिवार ही इस योजना का लाभ उठा रहे हैं.

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Published : Jul 12, 2022, 7:29 PM IST

रांची:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 मई 2016 को मजदूर दिवस के दिन उत्तर प्रदेश के बलिया से बीपीएल परिवार की महिला सदस्यों को एलपीजी कनेक्शन देने की योजना का शुभारंभ किया था. उस योजना का नाम था प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना. इसका मुख्य मकसद था गरीब महिलाओं को मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाने के दौरान निकलने वाले धुएं से आजादी दिलाना.

लेकिन झारखंड में यह योजना उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाई. आपको जानकार हैरानी होगी कि इस योजना के करीब 21 प्रतिशत लाभुक ही नियमित रूप से एलपीजी रिफिल करा पा रहे हैं. अब सवाल है कि शेष 79 प्रतिशत लाभुक इसका फायदा क्यों नहीं उठा पा रहे हैं. जबकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में इसका शानदार रिस्पांस देखने को मिला है. इसकी सबसे बड़ी वजह है घरेलू एलपीजी की बढ़ती कीमत. आज एक घरेलू एलपीजी की कीमत 1,110 रुपए है. इसपर उज्ज्वला कनेक्शन धारी को 200 रुपए की सब्सिडी मिलती है. हालांकि उसे पहले 1,110 रुपए चुकाने पड़ते हैं. एक गरीब परिवार के लिए सिर्फ इंधन मद में हर माह इतनी राशि जुटा पाना मुश्किल हो रहा है. जबकि इससे बहुत कम कीमत पर लकड़ी और कोयला मिल जाता है. इस कमी को देखते हुए पेट्रोलियम मंत्रालय ने 14.2 किलो की जगह 5 किलो वाले स्पेशल सिलिंडर देने की व्यवस्था की ताकि गरीबों को कम पैसे पर सुविधा मिल जाए. फिर भी रिस्पांस नहीं मिला.

लॉक डाउन में भी करनी पड़ी मशक्कत:साल 2020 में कोविड की वजह से लॉकडाउन लगा तो 1 अप्रैल 2020 को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत लाभुकों को मुफ्त में तीन सिलेंडर देने का फैसला लिया गया. लेकिन आश्चर्य की बात है कि झारखंड के लाभुकों को इसका लाभ पहुंचाने के लिए दिसंबर माह तक मशक्कत करनी पड़ी.

योजना में किसका कितना सहयोग:झारखंड के लिए इस योजना का शुभारंभ 1 नवंबर 2016 को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुमका में किया था. इसका व्यापक असर भी दिखा. पांच साल और सात माह के भीतर झारखंड में साढ़े पैंतीस लाख परिवारों को उज्ज्वला कनेक्शन से जोड़ा गया. इंडियन ऑयल, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम के संयुक्त प्रयास से 582 वितरकों ने लाभुकों को कनेक्शन देने में अहम भूमिका निभाई. पूर्ववर्ती रघुवर सरकार की वजह से देश में झारखंड पहला राज्य बना जहां के लाभुकों को मुफ्त में कनेक्शन मिला. केंद्र ने सिलेंडर, रेगुलेटर, पाइप, पासबुक और सर्विस चार्ज के मद में प्रति कनेक्शन 1800 रुपए की सब्सिडी दी तो राज्य सरकार ने दो बर्नर वाला चूल्हा (990 रुपए) और पहला सिलिंडर रिफिल (करीब 750 से 770) कराकर दिया. केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग को जोड़कर देखें तो झारखंड के साढ़े 35 लाख कनेक्शन के बदले 12 अरब 63 करोड़ 80 लाख रुपए खर्च किए गये.

चार फेज में आगे बढ़ी उज्ज्वला योजना:झारखंड में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के नाम से 1 नवंबर 2016 को शुरूआत हुई जो 31 मार्च 2018 तक चली. पहले फेज में 2011 की जनगणना पर आधारित एसईसीसी यानी सोशियो इकोनॉमिक कास्ट सेंसस को आधार को बनाकर लाभुकों का चयन हुआ.

दूसरे फेज की शुरूआत 1 अप्रैल 2018 को हुई जो 20 दिसंबर 2018 तक चली. इसका नाम एक्सटेंडेट पीएमयूवाई रखा गया. इस दौरान लाभुकों की संख्या बढ़ाने के लिए सात कैटेगरी जोड़ा गया. इसमें एसटी, एससी, बैकवर्ड, चाय बगान मजदूर, अंत्योदय योजना के लाभुक शामिल किए गये.

तीसरे फेज की शुरूआत 21 दिसंबर 2018 को हुई जो 31 अगस्त 2019 तक चली. इसको एक्सटेंडेट प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना 2.0 नाम दिया गया. इसमें एसईसीसी, सात कैटेगरी के अलावा सामान्य और पिछड़ा वर्ग की महिलाओं को जोड़ा गया. उनको 14 प्वाइंट का डिक्लरेशन देना होता था.

चौथे फेज की शुरूआत 10 अगस्त 2021 में हुई. इसको उज्ज्वला 2.0 नाम दिया गया. इसमें प्रवासी मजदूरों को जोड़ा गया. इस फेज की पूरी सब्सिडी केंद्र सरकार ने वहन किया. इस फेज में झारखंड में 1.80 लाख कनेक्शन दिए गये. यह योजना आज भी चल रही है.

झारखंड में तीनों कंपनियों के नोडल अफसर मो. अमीन ने ईटीवी भारत को बताया कि तीसरे फेज और चौथे फेज में जोड़े गये लोग इस योजना का भरपूर लाभ उठा रहे हैं. प्रथम फेज वाले लाभुक साल में बमुश्किल एक या दो सिलिंडर ले पाते हैं. हालाकि लोगों को जागरूक करने के लिए समय समय पर एलपीजी पंचायत का आयोजन किया जा रहा है.

एलपीजी कनेक्शन का हिसाब-किताब:झारखंड में 2015 में सिर्फ 25 प्रतिशत परिवारों के पास एलपीजी कनेक्शन था. वर्तमान में 79 प्रतिशत परिवारों यानी तकरीबन 65 लाख परिवारों के पास गैस का कनेक्शन है. इसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ा है. ईंधन के लिए पेड़ों की कटाई में कमी आई है.

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