रांची:कोरोना काल में शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र बचा हो जिसकी कमर नहीं टूटी हो. हर तरफ हालात भयावह हैं. स्कूल बस संचालक और स्कूल बसों के ऑपरेटरों के सामने भी बड़ा संकट आ गया है. जब से कोरोना ने दस्तक दी और स्कूल बंद हो गए, तब से ही बस ड्राइवर और कंडक्टर को पैसे नहीं मिल रहे हैं. स्कूल प्रबंधन का तर्क है कि जब वे बच्चों से बस का किराया नहीं ले रहे हैं तो पैसे कहां से दें.
राजधानी रांची में सीबीएसई और आईसीएसई मिलाकर 100 से अधिक स्कूल संचालित हैं. यहां 600 से अधिक बसों का परिचालन होता है लेकिन बसों का पहिया फिलहाल थमा हुआ है. इनसे जुड़े लोग आर्थिक रूप से पूरी तरह कमजोर हो चुके हैं. बस ड्राइवर और कंडक्टर तो भुखमरी के कगार पर हैं. स्कूल बस के ऑपरेटरों की हालत भी ठीक नहीं है. किसी ऑपरेटर ने अपनी एक बस किसी निजी स्कूल में करार के तहत दी है तो उस पर भारी असर पड़ रहा है.
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हर साल 7.5 लाख रुपए चुकाना जरूरी
इंश्योरेंस के रूप में हर साल के हिसाब से सालाना एक लाख रुपये देना पड़ता है. हर 3 महीने में रोड टैक्स के रूप में 8,288 रुपये देने पड़ते हैं. यानी 12 महीने में 33,152 रुपये. ऑपरेटर लोन पर बस लेते हैं तो उसकी ईएमआई अलग से है. बैंक लोन की ईएमआई प्रतिमाह करीब 50 हजार रुपये होती है. यानी 12 महीने में 6 लाख रुपये बस ऑपरेटरों को देना पड़ता है. यह रकम उन्हें हर हाल में उन्हें चुकानी पड़ती है. कुल मिलाकर इन्हें साढ़े सात लाख रुपये चुकाना पड़ता है. बस की सर्विसिंग और अन्य खर्चे इसमें शामिल नहीं हैं. ड्राइवर और कंडक्टर का मानदेय अलग से है.