रांची:झारखंड में मौजूदा हेमंत सोरेन सरकार का चार साल का कार्यकाल पूरा हो गया है, तो साल 2023 की विदाई भी करीब है. ऐसे में अगर हम स्वास्थ्य के क्षेत्र में साल 2023 की बात करें तो हम कह सकते हैं कि यह साल स्वास्थ्य के क्षेत्र में मिलाजुला रहा. जहां प्रदेश को 206 नई 108 एंबुलेंस मिलीं. वहीं इसमें हुई अनियमितता की चर्चा भी विधानसभा में हुई. आरोप था कि राज्य में 108 एंबुलेंस की खरीद में मानकों का पालन नहीं किया गया. ऐसे ही साल 2023 में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई घटनाएं हुईं, जिनके बारे में विस्तार से जानते हैं.
राज्य को मिली 206 नई एम्बुलेंस:राज्य में बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए हेमंत सोरेन की सरकार ने 206 नये एंबुलेंस की सौगात दी. इसमें बेसिक लाइफ सपोर्ट सिस्टम (बीएलएस), एडवांस्ड लाइफ सपोर्ट सिस्टम (एएलएस) और नियो नेटल एम्बुलेंस शामिल हैं. लेकिन दुखद बात यह है कि पहले से चल रही 334 में से अधिकांश पुरानी 108 एंबुलेंस का संचालन बंद हो गया.
मेडिकल कॉलेजों में नामांकन की मिली अनुमति:सरकार के शपथ पत्र देने के बाद नेशनल मेडिकल काउंसिल ने राज्य के हजारीबाग, दुमका और पलामू में नये मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में 100-100 एमबीबीएस सीटों पर सशर्त नामांकन की अनुमति दे दी, जबकि एनएमसी में सरकार के शपथ पत्र देने के बावजूद आज भी तीनों मेडिकल कॉलेजों में कई संकाय खाली हैं. तमाम कोशिशों के बावजूद सरकार धनबाद पीएमसीएच की एमबीबीएस सीटें नहीं बढ़ा सकी, वहीं शिक्षकों की कमी के कारण राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स की पीजी सीटों की भी मान्यता खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है.
टाटा ट्रस्ट द्वारा संचालित कैंसर सेंटर का उद्घाटन:वर्ष 2023 झारखंड में स्वास्थ्य के क्षेत्र में इसलिए भी महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि इसी वर्ष राज्य में टाटा ट्रस्ट कैंसर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का उद्घाटन हुआ और राज्य में ही कैंसर के इलाज की बेहतरीन सुविधाएं मिलनी शुरू हो गयीं. रांची सदर अस्पताल के नये भवन में इस वर्ष सभी फैकल्टी ने पूरी तरह से काम करना शुरू कर दिया. वहीं, राज्य में 08 नये मेडिकल कॉलेज खोलने की योजना में से इस साल एक भी कॉलेज नहीं खोला जा सका.
डॉक्टर मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट नहीं हुआ लागू:मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट झारखंड के डॉक्टरों की लंबे समय से चली आ रही मांग है. यह एक्ट कई बार विधानसभा में आया, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी सदन में पेश होने के बाद कुछ विधायकों के विरोध के बाद बिल पास कर स्वास्थ्य मंत्री की अध्यक्षता में बनी कमेटी को सौंप दिया गया. इसी तरह, क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट में संशोधन नहीं किया गया.