रांचीः झारखंड राज्य स्थापना के 22 साल पूरे हो रहे हैं. इतने वर्षों में युवा झारखंड विकास की दिशा में कितना आगे जा रहा है. किन-किन क्षेत्रों में कितना विकास हुआ है, इस विषय में ईटीवी भारत लगातार विशेष रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहा है. इसी कड़ी में आपको बताने जा रहे हैं, झारखंड का मानसिक रोग अस्पताल रांची इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एंड एलाइड साइंस (RINPAS) के बारे (Condition of Institute of Mental Diseases RINPAS) में.
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RINPAS की स्थापना हुए 97 साल हो रहे हैं. रिनपास की पहचान और ख्याति देश दुनिया में हुआ करता था. लेकिन राज्य बनने के 22 वर्ष में यह मानसिक रोग संस्थान विकास के दो कदम बढ़ा तो 22 कदम पीछे हो गया. झारखंड की बेपटरी स्वास्थ्य व्यवस्था के बीच यह संस्थान भी खुद बीमार होता चला गया. लेकिन इन सबके बीच एक सुखद पहलू है कि ये भी है कि रिम्स में भर्ती 550 इंडोर मानसिक रोगियों और हर दिन 300 से 350 मरीजों का ओपीडी में इलाज कर उपलब्धि हासिल की. यहां ओपीडी के मरीजों को भी दो माह की दवा निशुल्क दी जाती है. वहीं क्लीनिकल साइकोलॉजी से लेकर आज DNB तक की पढ़ाई हो रही है. लेकिन यह रिनपास एक पक्ष है, इसका एक दूसरा चेहरा भी है, जिसे रिनपास प्रबंधन, यहां के डॉक्टर्स और स्टाफ सब छुपा जाते हैं. ईटीवी भारत की तहकीकात के अनुसार रिनपास की व्यवस्था पिछले 22 वर्षों में बेपटरी (Condition of RINPAS after 22 years) ही हुई है. आइये, एक नजर डालें उन कमियों पर जो राज्य बनने के साथ लगातार बढ़ती गयी और नीति नियंताओं ने उसपर ध्यान ही नहीं दिया.
डॉक्टर्स और स्टाफ की घोर कमी से गुणवत्तापूर्ण इलाज पर प्रश्नचिन्हः झारखंड के सबसे बड़ा मानसिक रोग अस्पताल रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एंड एलाइड साइंसेज (Ranchi Institute of Neuro Psychiatry and Allied Sciences, RINPAS) यानी रिनपास में डॉक्टरों की कमी लगातार होती रही है. राज्य में भर्ती मरीजों और हर दिन इलाज के लिए ओपीडी में आने वाले राज्य और राज्य के बाहर के मरीजों की संख्या बढ़ती गयी और डॉक्टरों की संख्या कम होती गयी. आपको यह जानकर हैरत होगी कि 550 से अधिक भर्ती मानसिक रोगियों और हर दिन ओपीडी में पहुंचने वाले लगभग 300 से 350 मानसिक रोगियों के इलाज के लिए सिर्फ 08 मनो चिकित्सक है. जबकि इनकी संख्या 20 से अधिक होनी चाहिए. रिनपास के सिर्फ दो चिकित्सक ही हैं, जिसमें डॉय जयति सिमलाई अभी एक्टिंग डायरेक्टर हैं और डॉ सुभाष सोरेन पूर्व डायरेक्टर हैं. जो 08 मनो चिकित्सक रिनपास में हैं उनमें 06 झारखंड स्वास्थ्य सेवा से रिनपास में पदस्थापित हैं जबकि दो पीजी स्टूडेंट्स हैं. पारा मेडिकल स्टाफ और नर्सों की भी घोर कमी लगातार बढ़ती जा रही है और नियुक्ति की प्रक्रिया विवादों में ही फंसकर रह जाती है.
रिनपास में दवाइयों की भी कमीः सरकारी मानसिक अस्पताल RINPAS में कई दफा ऐसा होता है कि मानसिक रोगियों को निशुल्क दवा नहीं मिलती. उन्हें निजी दवाई दुकान से महंगी दवा लेने को मजबूर होना पड़ता है. रिनपास के ओपीडी में इलाज के लिए आने वाले मानसिक रोगियों को मिलने वाली दो महीने की निशुल्क नहीं मिल रही है. इससे मानसिक रोगियों और उनके परिजनों की परेशानी बढ़ गयी है और रोगी के परिजन महंगी दवा निजी दुकान से लेने को मजबूर हैं. रिनपास के निदेशकों (पुराने और नए निदेशक) के बीच अक्सर विवाद की स्थिति बनी रहती है. कभी दवाइयों के टेंडर को लेकर उभरे विवाद तो कभी नियमों को ताकपर रखकर की गई. वहीं बहाली के मामले अदालत तक गए और इससे मरीजों का इलाज प्रभावित होता रहा.