रांचीः झारखंड में सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए तमाम प्रयास कर रही है. इस कड़ी में हेमंत सरकार ने मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना शुरू की है, जिसके तहत लाभुकों को सुकर, कुक्कुट, गाय, बतख बांटा जा रहा है. योजना के तहत शेड निर्माण की भी व्यवस्था है. लेकिन हकीकत योजनाओं से अलग है.
न शेड बनिहें न कुकुड़ु कू होइहें... सरकारी पेंच से पटरी से उतर गई मुख्यमंत्री कुक्कुट मुर्गी पालन योजना, जानें क्या है अड़चन
दो विभागों के पेंच से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बहुप्रतिक्षित योजना पटरी से उतर गई. तामझाम के साथ प्रचारित मुख्यमंत्री कुक्कुट मुर्गी पालन योजना में शेड का अड़ंगा आ गया है. योजना के क्रियान्वयन के लिए सरकारी बाबुओं ने ऐसा नियम बनाया कि योजना का लाभ लेने के इच्छुक लोग घनचक्कर हो जाएं. सवाल यह है कि नियम बनाते समय कोई समझ ही नहीं थी, या जानबूझकर पेंच फंसा दिया गया.
ये भी पढ़ें-एक पान सौ जायकाः फर्स्ट नाइट पान का जायका बना देगा हर लम्हे को यादगार, ₹2100 का पान चख भी कहें हूं...
कहां आ रही है समस्या
दरअसल, राज्य में पशुधन विकास योजना चलाई जा रही है. इस योजना के तहत पशु-पक्षियों का वितरण पशुपालन विभाग की ओर से किया जाना है ओर मुर्गियों के लिए शेड ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत मनरेगा योजना से कराया जाना है. अब समस्या यह है कि मनरेगा के तहत अधिक से अधिक 96 वर्गफीट का ही शेड बन सकता है जबकि योजना के तहत मिलने वाले 500 चूजों के लिए कम से कम 500 वर्गफीट का शेड चाहिए. इसलिए मनरेगा के तहत यह काम नहीं हो सकता. इससे यहां कुक्कुट पालन योजना धरातल पर नहीं उतर पा रही है.