रांचीःबिजली मद में डीवीसी की बकाया राशि की कटौती के बाद झारखंड और केंद्र सरकार के रिश्तों में खटास पैदा हो गई है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विस्तार से पूरे मामले का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. उनका कहना है कि राज्य सरकार, केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच हुए त्रिपक्षीय समझौते के आधार पर राज्य सरकार के खाते से 1,417 करोड़ रुपए की कटौती कर ली गई, जबकि महामारी के मौजूदा दौर में ऐसा करना कहीं से भी न तो न्याय संगत है और न संवैधानिक. मुख्यमंत्री का कहना है कि महामारी के दौर में उन्होंने किसी भी क्षेत्र में राजस्व वसूली के लिए कठोर कदम नहीं उठाए ताकि आम जनों पर इसका प्रभाव ना पड़े.
वर्तमान सरकार पर 1,313 करोड़ की थी देनदारी
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पत्र में लिखा है कि इसी साल जनवरी में उनकी सरकार बनी है. इस सरकार पर डीवीसी की देनदारी महज 1,313 करोड़ रुपए थी. इसमें से 741 करोड़ का भुगतान भी कर दिया गया था. करीब 5514 करोड की देनदारी पूर्वर्ती रघुवर सरकार के 5 वर्ष के कार्यकाल में लंबित थी, उसी सरकार के कार्यकाल में हुए त्रिपक्षीय समझौते में स्पष्ट था कि 90 दिन बकाए का भुगतान नहीं होने पर पैसे काटने का प्रावधान था लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ.
त्रिपक्षीय समझौते का मुख्य उद्देश्य विद्युत उत्पादक केंद्रीय कंपनियों के बकाए का ससमय भुगतान से जुड़ा था, जबकि ये संस्थान कोयला आधारित हैं और इनके विद्युत उत्पादन में 70% लागत कोयले से जुड़ा हुआ है. यानी बकाया राशि का करीब 70% अंश उत्पादन कंपनियों के माध्यम से कोयला मंत्रालय के उपक्रमों को जाता है, जबकि सच यह है कि कोयला उपक्रमों पर राज्य सरकार की बड़ी राशि बकाया है. ऐसे में त्रिपक्षीय समझौते में कोयला मंत्रालय को भी चौथे पक्ष के रूप में जोड़ा जाना चाहिए, ताकि कोयला मंत्रालय के उपक्रमों पर बकाया राज्य सरकार की प्राप्तियों को ध्यान में रखकर देयता का निष्पादन हो सके.