रांची:किसानों की आय दोगुनी करने के लिए झारखंड में कई योजनाएं चल रही है. मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में झारखंड आत्मनिर्भर बन चुका है. अब किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पशुपालन पर जोर दिया जा रहा है. आदिवासी बहुल झारखंड के लोगों में पशुपालन की वर्षों से परंपरा रही है, लेकिन इसको कभी व्यवसाय के रूप में नहीं अपनाया गया था. इस पृष्ठभूमि में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना का शुभारंभ किया. योजना में पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की सुविधाओं और अनुदान के प्रावधानों का समावेश किया गया, ताकि पशुपालन के क्षेत्र में झारखण्ड और राज्यवासी आगे बढ़ सकें.
मुख्यमंत्री सोरेन का कहना है कि झारखंड के पशुपालकों के लिए उनका पशु ही धन है, जिसे और मजबूती देने की आवश्यकता है. मत्स्य उत्पादन में झारखंड आगे निकल चुका है. आने वाले वर्षों में झारखंड मत्स्य निर्यातक राज्यों में शामिल होगा.
झारखंड में पलायन एक बड़ी समस्या
कोरोना संक्रमण काल में लाखों की संख्या में प्रवासी श्रमिक अपने गांव लौटे, जिन्हें रोजगार देना सरकार के लिए चुनौती थी. मुख्यमंत्री की पहल पर गांव में ही स्वयं का रोजगार देने की पहल की गई, जिसका उद्देश्य है राज्य में दूध, मांस और अंडा के उत्पादन में वृद्धि लाकर राज्य को आत्मनिर्भर बनाना. ग्रामीण क्षेत्र में पशुपालन के माध्यम से स्वरोजगार और अतिरिक्त घरेलू आमदनी का सृजन और ग्रामीण पशुपालकों की आय में वृद्धि करना है. इसके लिए विभिन्न विभागों के ओर से पशुधन विकास से संबंधित समान प्रकृति की योजनाओं को एक पटल पर क्रियान्वित करने के लिए पशुपालन प्रभाग, कल्याण विभाग एवं ग्रामीण विकास विभाग अंतर्गत पूर्व से संचालित योजनाओं को समायोजित करते हुए मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना का संचालन शुरू किया गया.
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लाभुकों को दिया जा रहा लाभ
मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना के तहत पशुपालन क्षेत्र में बकरा विकास योजना, शुकर विकास योजना, बैकयार्ड लेयर कुकुट योजना, बॉयलर कुकुट पालन योजना, बत्तख चूजा वितरण योजना एवं गव्य विकास क्षेत्र में दो दुधारू गाय का वितरण, कामधेनु डेयरी फार्मिंग अंतर्गत मिनी डेयरी के तहत 5 से 10 गाय वितरण की योजना, हस्त एवं विद्युत चलित चैफ कटर का वितरण, प्रगतिशील डेयरी कृषकों को सहायता, तकनीकी इनपुट सामग्रियों का वितरण के तहत लाभुकों को लाभान्वित किया जा रहा है.