रांची: झारखंड की राजधानी रांची सहित विभिन्न शहरों से हर दिन औसतन 20 से ज्यादा मोबाइल गायब कर दिए जाते हैं. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मोबाइल गायब करने के लिए बच्चों का एक बड़ा गिरोह पूरे झारखंड में एक्टिव किया गया है. इन बच्चों को बकायदा मोबाइल पलक झपकते गायब करने की ट्रेनिंग दी जाती है. इस ट्रेनिंग के दौरान मासूम बच्चों को बेहद प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है, क्योंकि उन्हें हर हाल में मोबाइल गायब करने का गुर सीखना ही होता है. इस नेटवर्क में एक बड़ा गिरोह शामिल है, जो बच्चों के जरिए मोबाइल चोरी की घटनाओं को अंजाम दिलाता है.
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काउंसलिंग के दौरान हुआ खुलासा:मोबाइल चोरी के अधिकांश मामलों में नाबालिग पकड़े जाते हैं और उन्हें बाल सुधार गृह भेजा जाता है. बाल सुधार गृह में जब मोबाइल चोरी के आरोप में पकड़े गए नाबालिगों की काउंसलिंग हुई तो कई चौंकाने वाले खुलासे हुए. नाबालिगों ने जो खुलासे किए हैं, वह बेहद गंभीर है. दरअसल, नाबालिगों को चोरी की कला में ट्रेंड कर उनसे मोबाइल चोरी करवाने के पीछे एक बड़ा गिरोह काम कर रहा है. पकड़े गए नाबालिगों ने यह खुलासा किया है कि उनके गरीब मां बाप को झांसा देकर गिरोह के सदस्य उन्हें अपने साथ ले आते हैं. उनसे कहा जाता है कि शहर में कपड़ा दुकान या फिर दूसरे कामों में उन्हें लगा देंगे, लेकिन हकीकत में जैसे ही वे गिरोह के चंगुल में फंसते हैं, उन्हें चोरी के काम में लगा दिया जाता है.
9 दिन में ट्रेंड कर दिए जाते है बच्चे:झारखंड राज्य संप्रेषण गृह के नोडल अफसर कर्नल जेके सिंह के अनुसार, बच्चों से चोरी करवाने वाला गिरोह सबसे पहले अनाथ, लाचार और लावारिस बच्चों को टारगेट करता है. ऐसे बच्चों के मां-बाप या फिर परवरिश करने वाले लोगों को यह गिरोह कुछ पैसे देकर बच्चों को अपने साथ लेकर चले जाता है. गिरोह के सदस्य बच्चों को अपने पास लाने के बाद उन्हें यह बताते हैं कि उन्हें भीड़-भाड़ वाले जगहों में मोबाइल चोरी की वारदातों को अंजाम देना है.
जो बच्चे इससे इनकार करते हैं, उनको यातनाएं दी जाती हैं, उनके साथ मारपीट की जाती है. यातना इतनी दी जाती है कि वह चोरी करने के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके बाद शुरू होता है गिरोह के द्वारा बच्चों को चोरी करने की ट्रेनिंग, 9 दिनों तक की ट्रेनिंग में ही बच्चे एक काबिल चोर बन जाते हैं, जो पलक झपकते ही किसी के भी पॉकेट से मोबाइल गायब कर देते हैं. ट्रेनिंग के दौरान जो बच्चे बेहतर तरीके से चोरी की वारदात को अंजाम नहीं दे पाते हैं, उनके साथ काफी मारपीट की जाती है.
बाजार और हाट में फिक्स किया जाता है टारगेट: बच्चे जब चोरी की कला में माहिर हो जाते हैं, तब उन्हें बाजार में उतारा जाता है. भीड़भाड़ वाली जगह पर बच्चों को ले जाकर छोड़ दिया जाता है. वहीं गिरोह के सदस्य बच्चों के आस पास ही खड़े रहते हैं. जो लोग अपने ऊपर के पॉकेट में या फिर नीचे वाले पॉकेट में दिखता हुआ मोबाइल रखते हैं, वही बच्चों के आसान टारगेट होते हैं. पलक झपकते ही बच्चे उनके पॉकेट से मोबाइल गायब कर गिरोह के सदस्यों तक पहुंचा देते हैं. इस दौरान अगर बच्चे पकड़े भी जाते हैं तो उनके पास मोबाइल ही नहीं मिलता है और वह बच कर निकल जाते हैं.
एक मोबाइल के बदले मात्र 50 रुपये: जो बच्चे मोबाइल चोरी की घटनाओं को अंजाम देते हैं, उन्हें एक मोबाइल चोरी के एवज में मात्र 50 रुपए गिरोह के द्वारा दिया जाता है. काउंसलिंग में बच्चों ने यह भी बताया है कि उन्हें गिरोह के द्वारा दो टाइम का खाना भी दिया जाता है, जो बच्चे जितना मोबाइल चोरी करते हैं, उसके हिसाब से उन्हें हर मोबाइल का 50 रुपए मिलता है.
गिरोह में सबसे ज्यादा बंगाल और साहिबगंज के बच्चे:जांच में यह बात भी सामने आई है कि बच्चों से मोबाइल चोरी करने वाला गिरोह मूलतः बंगाल और झारखंड के साहिबगंज से ताल्लुक रखता है. झारखंड के साहिबगंज जिले में तीन पहाड़ी नाम का एक कस्बा है, मोबाइल चोरी के लिए यह कस्बा बेहद बदनाम है. इस गिरोह के सदस्य और दर्जनों बच्चे राजधानी रांची से कई बार पकड़े गए हैं. राजधानी ही नहीं देश के कई बड़े शहरों में तीन पहाड़ी गिरोह के सदस्य सक्रिय हैं, जिनका काम सिर्फ और सिर्फ मोबाइल चोरी करवाना ही है और इसके लिए वे सिर्फ और सिर्फ बच्चों का इस्तेमाल करते हैं.
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गिरोह के खुलासे के लिए बड़े प्रयास की जरूरत:ऐसा नहीं है कि गिरोह के सदस्य पुलिस के द्वारा गिरफ्तार नहीं किए जाते हैं आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पिछले एक साल के दौरान सिर्फ राजधानी रांची से ही 50 से ज्यादा नाबालिगों को मोबाइल चोरी में निरुद्ध किया गया है. गिरोह के कई बालिग सदस्य भी पकड़े गए हैं, जिनकी निशानदेही पर सैकड़ों मोबाइल भी बरामद हुए. लेकिन चोरी की वारदातें कम नहीं हुई, क्योंकि गिरोह के सरगना तक अब तक पुलिस नहीं पहुंच पाई है. बंगाल और साहिबगंज में बैठकर यह गिरोह बच्चों के जरिए हजारों की संख्या में मोबाइल गायब करवा रहा है और फिर उन्हें बांग्लादेश भेज देता है.
रांची रेंज के डीआईजी अनूप बिरथरे के अनुसार, यह एक बेहद गंभीर मामला है. इसके लिए एक बड़ा प्रयास पुलिस के द्वारा शुरू किया गया है. बच्चों के काउंसलिंग के जरिए यह जानकारी जुटाई जा रही है कि गिरोह के लोग कैसे उन्हें फंसाते हैं और वह कहां-कहां रहते हैं. असल में गिरोह के बच्चे खौफ की वजह से बहुत ज्यादा कुछ नहीं बता पाते हैं, लेकिन पुलिस को उम्मीद है कि बेहतर काउंसलिंग के जरिए उनसे कई तरह की जानकारियां इकट्ठा की जा सकती है, जिससे कि इस गिरोह पर काबू पाया जा सकता है.