रांची:सदियों से की जा रही छठ पूजा में धीरे-धीरे बदलाव होने लगा है (Chhath Puja Mahaparv Vrat). अपने-अपने ढंग से किए जा रहे बदलाव को पूजा पाठ कराने के जानकार ठीक नहीं मानते. इसके पीछे वे कुछ तर्क भी देते हैं. जानिए जानकारों को छठ पूजा महापर्व में बदलाव पर क्या है आपत्ति.
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यह हो रहा है बदलावःछठ पूजा 2022 को लेकर रांची समेत पूरे झारखंड में उत्साह चरम पर है. राजधानी रांची में सौ से ज्यादा छठ घाट बनाए गए हैं, जहां भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जाएगा. इन सबके बीच इस बार छठ पूजा के दौरान मूर्ति और तस्वीर का अधिक इस्तेमाल दिख सकता है. इसकी खरीद बिक्री भी होती दिख रही है. इस व्रत को लेकर पिछले दिनों की तुलना में अब कई और बदलाव नजर आ रहा है. इस बार छठ पूजा के लिए मूर्ति और तस्वीर का चलन पिछले वर्षों की तुलना में बढ़ता दिख रहा है. छठ घाटों और घरों में होने वाले पूजा में छठी मईया की फोटो का अब धड़ल्ले से इस्तेमाल होने की उम्मीद है.
अब पूजा समिति बनाकर लोग छठ घाटों के आसपास सूर्य भगवान की प्रतिमा भी स्थापित कर रहे हैं. इसके अलावा छठी मईया की फ्रेम फोटो की भी पूजा भी हो रही है. पिछले साल इसकी कम संख्या थी, लेकिन इस साल जिस तरह पूजा की फोटो बिक रही है. उससे इस साल छठ पूजा महापर्व 2022 में इसका चलन और बढ़ने की उम्मीद है.
शहीद चौक के पास पिछले 28 वर्षों से फोटो फ्रेम बनाकर बेचने वाले अब्दुल सलाम बताते हैं कि हाल के वर्षों में छठी मईया की तश्वीर वाले फोटो फ्रेम की डिमांड काफी बढ़ी है. अब्दुल सलाम कहते हैं कि वे हर साल करीब तीन सौ फोटो छठ के मौके पर बेचते हैं. इस बार ज्यादा बिकने की उम्मीद है. छठी मईया की तश्वीर वाले फोटो फ्रेम की कीमत डेढ़ सौ से चार सौ रुपये तक का है. वहीं छठी मूर्ति को अंतिम रूप देने में जुटे कारीगर रामपाल कहते हैं कि इस बार बड़ी मूर्ति बन रही है जिसमें सूर्यदेव सात घोड़े पर विराजमान रहेंगे.
पं. गया दत्त मिश्र का कहना है कि सूर्यदेव की मूर्ति पूजा उचित नहींः छठ पूजा 2022 के मौके पर पूजा समितियों की ओर से शुरू की गई सूर्य प्रतिमा पूजन पर पं. गया दत्त मिश्र आपत्ति जताते हैं. सूर्य मंदिर बड़ा तालाब के मुख्य पुजारी पं. गया दत्त मिश्र कहते हैं कि साक्षात देवता के रहते हुए भी उसकी प्रतिमा का पूजन उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि सूर्य एकमात्र देवता हैं, जिनकी साकार और निराकार दोनों रूप में पूजा होती है. सदियों से प्रतिष्ठित मंदिर में ही सूर्य की पूजा होती थी, मगर ऐसे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के साथ उनको स्थापित किया गया है.
जानकारों को यह आपत्तिः जिन मूर्ति का विसर्जन कर दिया जाता है. इसलिए सूर्य देव की मूर्ति बनाकर पूजा करना उचित नहीं है. सूर्य सतयुग में भी थे, त्रेता में भी थे, द्वापर युग में भी थे और कलियुग में भी हैं. हमने शिव को नहीं देखा, दुर्गा को नहीं देखा जबकि एकमात्र सूर्यदेव को हमलोग साक्षात सदियों से देखते आ रहे हैं, ऐसे में उनकी मूर्ति पूजा की जरूरत नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि जहां कहीं भी सूर्य का स्थापित मंदिर है, वह जलाशय किनारे होना चाहिए मगर आज छठ के मौके पर मूर्ति और फोटो जहां तहां रखकर पूजा की जाने लगी है जो कहीं से भी उचित नहीं है.