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साल 2022 की सबसे बड़ी सफलता 'ऑपरेशन ऑक्टोपस', बूढ़ापहाड़ में 1990 से बने माओवादियों के गढ़ को किया ध्वस्त

साल 2022 खत्म होने को है. इस साल में कुछ बुरी घटनाएं हुईं तो पुलिस कर्मियों को कुछ बड़ी सफलता भी मिली. इसी में से एक है बूढ़ापहाड़ को फतह करना. यह साल की सबसे बड़ी सफलता मानी जा रही है (Capturing Budhapahar is biggest success of 2022). बूढ़ा पहाड़ 1990 से माओवादियों का गढ़ रहा है. जिसे 'ऑपरेशन ऑक्टोपस' के तहत पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया है.

Capturing Budhapahar is biggest success of 2022
Capturing Budhapahar is biggest success of 2022

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Published : Dec 27, 2022, 6:35 PM IST

रांची:साल 2022 में वैसे तो झारखंड पुलिस ने नक्सलियों के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई कर कई बड़ी सफलताएं हासिल की, लेकिन साल 2022 को झारखंड पुलिस के लिए हमेशा यादगार रहेगा, क्योंकि इसी वर्ष डीजीपी नीरज सिन्हा-आईजी अभियान, अमोल वी होमकर की कारगर रणनीति पर काम करते हुए लातेहार और गढ़वा पुलिस ने वह काम कर दिखाया जो पिछले 22 वर्षों में झारखंड पुलिस के लिए नामुमकिन बना हुआ था. झारखंड पुलिस के लिए चुनौती बने बूढ़ापहाड़ पर साल 2022 में ही पुलिस ने नक्सलियो को खदेड़ कर बूढ़ापहाड़ पर कब्जा किया (Capturing Budhapahar is biggest success of 2022).

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तीन दशक से था कब्जा:झारखंड समेत तीन राज्यों में नक्सलियों के मुख्यालय के तौर पर बूढ़ापहाड़ का इस्तेमाल पिछले तीन दशक से हो रहा था. 1990 से ही घोर नक्सल प्रभाव वाला इलाका रहा बूढ़ापहाड़ झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ के माओवादियों के लिए बड़ा आश्रय स्थल था. केंद्रीय गृह मंत्रालय के टास्क पर काम करते हुए झारखंड पुलिस ने 32 साल से माओवादी गतिविधियों के केंद्र रहे बूढ़ापहाड़ को साल 2022 में नक्सल मुक्त करा लिया. ऑपरेशन बूढ़ापहाड़ को नक्सलमुक्त कराने के लिए अंतिम चरण में पुलिस और सीआरपीएफ ने ऑपरेशन ऑक्टोपस चलाया था.

90 के दशक से 100 की संख्या में हथियारबंद दस्ता होता था:1990 में माओवादी संगठन के उभार के बाद बूढ़ापहाड़ पर हमेशा ही पोलित ब्यूरो या सेंट्रल कमेटी मेंबर कैंप करते थे. बड़े माओवादियों के साथ 100 की संख्या में हथियारबंद दस्ता होता था. बूढ़ापहाड़ अरविंद उर्फ देवकुमार सिंह, सुधाकरण, मिथलेश महतो, विवेक आर्या, प्रमोद मिश्रा और विमल यादव जैसे शीर्ष माओवादियों का कार्यक्षेत्र रहा. साल 2019 में देवकुमार की मौत के बाद सुधाकरण को जिम्मेदारी मिली, लेकिन सुधाकरण के तेलंगाना में सरेंडर के बाद विमल यादव को यहां की कमान सौंपी गई.


सुरक्षाबलों ने मिला माओवादियों की आपसी कलह का फायदा:सुरक्षाबलों ने यहां माओवादियों के आपसी कलह का फायदा उठाया. बिरसाई समेत कई माओवादी या तो सरेंडर किए या गिरफ्तार हुए. साल 2021 में माओवादियों ने मिथलेश को यहां भेजा, लेकिन बाद में माओवादियों के बीच आपसी कलह के कारण मिथलेश बूढ़ापहाड़ से निकलकर बिहार चला गया, जहां वह गिरफ्तार हो गया. इसके बाद बूढ़ापहाड़ पर सैक कमांडर मारकुस बाबा उर्फ सौरभ, सर्वजीत यादव, नवीन यादव अपने दस्ते के साथ कैंप कर रहे थे. पुलिस अभियान के बाद दस्ता बूढ़ापहाड़ से जा चुका है.

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लेवी की भारी रकम बूढ़ापहाड़ तक पहुंचायी जाती थी:झारखंड में लातेहार, लोहरदगा, गुमला में कोयल शंख जोन के जरिए बड़े पैमाने पर लेवी की वसूली होती थी. सरकारी ठेकों, बीड़ी पत्ता कारोबारियों से लेवी वसूली कर भारी रकम बूढ़ापहाड़ के नक्सलियों तक पहुंचायी जाती थी. माओवादियों को पैसे झारखंड के इलाके से मिलते थे, जबकि छत्तीसगढ़ के रास्ते वहां रहने वाले माओवादियों तक रसद पहुंचायी जाती थी. झारखंड पुलिस के आईजी ऑपरेशन अमोल वी होमकर के मुताबिक, पुलिस ने पहले माओवादियों के लेवी तंत्र पर रोक लगाने की योजना बनायी.



बुद्धेश्वर उरांव का काम था लेवी वसूलकर पहुंचाना:लेवी वसूलकर माओवादी शीर्ष तक पहुंचाने का काम रीजनल कमांडर बुद्धेश्वर उरांव का था, लेकिन, सुरक्षा बलों ने बुद्धेश्वर को 15 जुलाई 2021 को कुरूमगढ़ में मार गिराया था. इसके बाद लेवी वसूली की जिम्मेदारी रवींद्र गंझू को मिली. फरवरी 2022 में पुलिस ने रवींद्र गंझू के दस्ते के खिलाफ ऑपरेशन डबल बुल शुरू किया था. तब रवींद्र दस्ते के एक दर्जन से अधिक माओवादी पकड़े गए, भारी पैमाने पर हथियार भी बरामद किए गए थे. इसके बाद से बूढ़ापहाड़ तक पहुंचने वाली लेवी पूरी तरह बंद हो गई.

रणनीति के तहत आगे बढ़ते हुए कैंप बनाती रही पुलिस:पुलिस ने 3 सितंबर से बूढ़ापहाड़ पर चढ़ने की शुरुआत की थी. इस दौरान माओवादियों के कई ठिकानों पर शेलिंग कर आगे बढ़ती रही. इस दौरान महत्वपूर्ण इलाकों में कैंप बनाया. छत्तीसगढ़ के इलाके पुंदाग और पीपराढीपा में भी कैंप स्थापित कर सुरक्षाबलों की तैनाती की. बूढ़ा नदी पर पुल बनाया. अब हेलीकॉप्टर पहुंचने से सुरक्षाबलों को रसद पहुंचाने में आसानी होगी. पूर्व में माओवादियों ने बढ़ापहाड़ में आईईडी लगा रखा था. इस वजह से पुलिस को भारी नुकसान हुआ. 2018 में यहां छह जवान शहीद भी हो गए थे.

छह किरदार, जिनकी वजह से मुक्त हुआ बूढ़ापहाड़:बूढ़ापहाड़ को मुक्त कराने की जिम्मेदारी डीजीपी नीरज सिन्हा ने खुद उठायी थी. बेहद शांत रहकर अपने रणनीति को अंजाम देने वाले डीजीपी नीरज सिन्हा ने अपनी टीम में मुख्यालय से आईजी अभियान अमोल वी होमकर को अपना सेनापति बनाया था, जबकि बूढ़ा पहाड़ की तमाम खुफिया जानकारी के साथ दसूरी सभी जानकारी डीआईजी स्पेसल ब्रांच अनूप बिरथरे और स्पेशल ब्रांच और एसआईबी की एसपी शिवानी तिवारी की भूमिका अहम रही. लातेहार में इस अभियान की जिम्मेदारी लातेहार के पुलिस अधीक्षक अंजनी अंजन संभाली, अंजनी ऐसे पहले आईपीएस अधिकारी होंगे जो दो महीने के भीतर दो दर्जन बार बूढ़ा पहाड़ चढ़े थे, वहीं गढ़वा एसपी अंजनी झा ने गढ़वा की तरफ से बेहतरीन अभियान चलाया जिसकी वजह से बूढ़ा पहाड़ पर माओवादी चारों तरफ से गिरे और उनके पास पहाड़ छोड़कर भागने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.


बड़ी है सफलता:आईजी अभियान अमोल होमकर के अनुसार नक्सलवाद के खिलाफ वे अपना शत प्रतिशत काम कर रहे हैं. यह सही है कि साल 2022 में बड़ी सफलताएं पुलिस को हाथ लगी हैं, लेकिन इन सभी सफलताओं को कायम रखना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है. आईजी के अनुसार बूढ़ापहाड़ का नक्सल मुक्त होना पुलिस के लिए बड़ी सफलता है. पुलिस ने पूरे बूढ़ापहाड़ को अपने कब्जे में ले लिया है अब पुलिस रणनीतिक लिहाज से यहां कैंप बना रही है, साथ ही सरकार की योजनाओं को बूढ़ा पहाड़ पर लागू करने के लिए सुरक्षित माहौल भी तैयार कर रही है.


दो महीने के अभियान में भारी मात्रा में विस्फोटक जब्त:बूढ़ा पहाड़ से निकले को खदेड़ने के बाद वहां से जितना हथियारों और विस्फोटक मिला उसे देखकर यह अंदाजा लग गया कि अगर वे गोला बारूद का इस्तेमाल नक्सली कर लेते तो वह बड़ी तबाही मचाते.

पुलिस मुख्यालय से मिले आंकड़ों के अनुसार बूढ़ा पहाड़ से कुल 39 हथियार, (एके 47, इंसास सहित) 1588 कारतूस, 558 केन बम, 110 ग्रेनेडस , 22 अलग अलग गन के मैगजीन और लगभग 2 हजार केजी विस्फोटक बरामद हो चुके है। पुलिस का तलाशी अभियान अभी भी बूढ़ा पहाड़ पर जारी है और हर दिन कोई न कोई हथियार और विस्फोटक अब भी मिलना जारी है.

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