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विस्थापित परिवारों का सहारा बना केज कल्चर, मत्स्य पालन कर बन रहे हैं आत्मनिर्भर

झारखंड में माइनिंग की वजह से लोग विस्थापित होते रहते हैं. ऐसे परिवारों को कई आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे लोगों के लिए बालेश्वर गंझू एक आइकॉन हो सकते हैं. सरकारी सहायता और फिश कॉपरेटिव की सहायता से मछली पालन का प्रशिक्षण लिया और आज अपनी आजीविका बेहतर तरीके से चला रहे हैं.

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मछली पालन

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Published : Feb 11, 2021, 4:17 PM IST

रांची:विस्थापन एक ऐसा दंश है जो परिवार को तोड़ कर रख देता है. झारखंड में माइनिंग की वजह से लोग विस्थापित होते रहते हैं. ऐसे परिवारों को जीवन यापन में कोई दिक्कत ना आए इसके लिए जरूरी है कि उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जाए. जिला प्रशासन और विभागों के आपसी तालमेल व सक्रियता से कैसे लोगों की जिंदगी में गुणात्मक परिवर्तन आ सकता है, इसकी बानगी रांची में देखने को मिल रही है.

बालेश्वर गंझू उन विस्थापित परिवारों में एक परिवार के मुखिया हैं, जिनकी जिंदगी कुछ साल पहले तक आसान नहीं थी. सिलोनगोडा माइंस परियोजना की वजह से विस्थापित, ये परिवार खेतीबाड़ी और मजदूरी कर अपनी आजीविका चला रहे थे. अब ये विस्थापित परिवार रांची जिला प्रशासन और मत्स्य विभाग की योजना से जुड़कर मछली पालन कर जीवन को खुशहाल बना रहे हैं.

केज कल्चर के जरिये मछली पालन का प्रशिक्षण

सरकारी सहायता और फिश कॉपरेटिव की सहायता से इन परिवारों को केज कल्चर के जरिये मछली पालन का प्रशिक्षण दिया गया. बालेश्वर गंझू खलारी प्रखंड मत्स्य जीव सहयोग समिति लिमिटेड के अध्यक्ष भी हैं. वो बताते हैं कि समिति में कई विस्थापित परिवार हैं. इन सभी को रांची जिला प्रशासन की ओर से पांच केज कल्चर उपलब्ध कराया गया है. इसमें मछली पालन किया जा रहा है. इसके अलावा पांच लाइफ जैकेट, एक नाव, शेड हाउस, चारा और मछली का बीज भी प्रशासन की ओर से उपलब्ध कराया गया है.

क्या है केज कल्चर

केज मत्स्य पालन की एक नई तकनीक है. कोल फील्ड माइंस व स्टोन माइंस के जलाशयों में लोगों की सहभागिता से मछली पालन किया जा रहा है. इससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है. खलारी में मत्स्य पालन के लिए जलस्रोत है, लेकिन यहां बंद खदान के जलस्रोत हैं, जिसका पहले कोई उपयोग नहीं हुआ. अब यहां केज कल्चर योजना के जरिए मछली पालन किया जा रहा है और रोजगार के नए अवसर प्रदान किए जा रहे हैं. केज कल्चर से उत्पादित मछलियां बाजारों में उपलब्ध कराई जा रही है. इसमें समिति को एक लाख 10 हजार रुपये की आमदनी हुई है. आनेवाले दस से पंद्रह सालों तक बंद पड़े खदानों के जलाशयों में मत्स्य उत्पादन की यह प्रक्रिया चलती रहेगी.

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डीएमएफटी योजना के तहत केज विधि से मत्स्य पालन

रांची जिला मत्स्य पदाधिकारी डॉ अरूप कुमार चौधरी ने बताया कि जिला प्रशासन के ओर से वित्त वर्ष 2019-20 में मछली पालन के लिए सिलोनगोडा तालाब कोल फील्ड माइंस सी के लिए डिस्ट्रिक माइनिंग फाउंडेशन ट्रस्ट (डीएमएफटी योजना) के तहत केज विधि से मत्स्य पालन की स्वीकृति दी गई. इस योजना का संचालन सिलोनगोडा माइंस के विस्थापितों के लिए किया गया. कॉपरेटिव सोसायटी का भी गठन किया गया. सोसायटी का संचालन उन्हीं के ओर से किया जा रहा है. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हुई इस योजना में 25 से 30 टन मछली का उत्पादन किया जा सकता है. कोरोना की वजह से प्रोजेक्ट देर से शुरू हुआ, फिर भी अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं. सरकार के निर्देश पर योजना के उचित क्रियान्वयन पर जोर दिया जा रहा है. आकलन है कि केज के माध्यम से यहां पांच सौ लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सकता है. इससे क्षेत्र में पलायन पर अंकुश लगेगा. इससे तीन तरह से लोगों को फायदा होगा. पहला रोजगार उपलब्ध होगा, दूसरा स्थानीय बाजारों में मछली की उपलब्धता होगी और तीसरा मछली यानी प्रोटीन की वजह से कुपोषण की समस्या भी दूर होगी.

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