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BJP Jharkhand Mission 2024: बाबूलाल भाजपा के खेवनहार, क्या है मरांडी की ताकत और कौन सी चुनौतियां, कमान देने के पीछे क्या है पार्टी का मकसद - झारखंड मिशन 2024

Jharkhand Mission 2024 के फतह को लेकर भाजपा सड़क से संगठन तक खुद को मजबूत करने में जुटी है. झारखंड में बीजेपी ने मिशन को जीतने के लिए बाबूलाल मरांडी को अपने लिए नए खेवनहार के तौर पर तैयार किया है. झारखंड में बाबूलाल मरांडी भाजपा के खाते में क्या डालते हैं यह भविष्य के गर्त में है लेकिन बाबूलाल मरांडी के लिए झारखंड में किन-किन चुनौतियों से निपटना है यह बड़ी बात है. बाबूलाल मरांडी की ताकत क्या है और कहां कहां उन्हें चुनौतियां मिलेंगी- पढ़े रिपोर्ट

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Published : Jul 8, 2023, 7:12 PM IST

Updated : Jul 9, 2023, 11:00 AM IST

रांची:अलग राज्य बनने के बाद से ही झारखंड की राजनीति आदिवासी चेहरों के इर्द गिर्द घूमती रही है. भाजपा ने 2019 में रघुवर दास के नाम पर अलग नैरेटिव सेट करने की कोशिश जरूर की लेकिन एक्सपेरिमेंट काम नहीं आया. इसका सबसे ज्यादा असर आदिवासी वोट बैंक पर पड़ा. 2014 के विधानसभा चुनाव में 28 एसटी सीटों में से 11 सीटें जीतने वाली भाजपा 2019 में सिर्फ दो सीटों पर सिमट गई. 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद 5 एसटी सीटों में से तीन सीट पर जीत जरूर मिली थी लेकिन मार्जिन बहुत कम था. अर्जुन मुंडा जैसे नेता किसी तरह खूंटी सीट निकाल पाए.

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मिशन-2024:लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है. अब फिर से भाजपा चुनावी मोड आ गई है. साल 2014 और 2019 में मोदी लहर का भाजपा को जबरदस्त फायदा मिला लेकिन इस बार विपक्षी एकजुटता की कवायद भी चल रही है, इसलिए भाजपा किसी भी सूरत में एक्सपेरिमेंट का जोखिम नहीं उठाना चाहती. इसी का नतीजा है कि संथाल आदिवासी पर पकड़ रखने वाले सोरेन परिवार के काट के रूप में संथाल समाज से आने वाले बाबूलाल मरांडी को बड़ी जिम्मेदारी दी गई है.

दरअसल,बाबूलाल मरांडी पूर्व में भी साबित कर चुके हैं कि वह संगठन को बेहतर तरीके से चला सकते हैं. राज्य में भाजपा के आदिवासी चेहरा के रूप में सिर्फ वही एक ऐसे नेता हैं जो सीधे तौर पर सोरेन परिवार पर हमला बोलते हैं. जहां तक अर्जुन मुंडा की बात है तो वे झामुमो से ही निकल कर भाजपा में आए और राजनीतिक परिस्थिति ने उन्हें सीएम की कुर्सी पर बिठाने का अवसर दे दिया. सीएम बनने के बाद ही अर्जुन मुंडा को पहचान मिली लेकिन संगठन में उनकी कभी पकड़ नहीं रही.

वरिष्ठ पत्रकार मधुकर का मानना है कि भाजपा के पास अब कोई ऑप्शन नहीं बचा है. पार्टी जानती है कि आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए बाबूलाल मरांडी का कोई विकल्प नहीं है. उनकी आदिवासी व्यवसाइयों में अच्छी पकड़ है जो वोट के ध्रुवीकरण में अहम भूमिका निभा सकते हैं. दूसरी बात यह है कि वह कड़िया मुंडा के बाद एकमात्र ऐसे नेता हैं जो गैर आदिवासियों में भी पकड़ रखते हैं. प्रथम मुख्यमंत्री रहते उनका प्रोजेक्शन एंटी नक्सल नेता के रूप में हुआ था. नक्सलियों ने उनके बेटे की हत्या भी की थी. इसको लेकर उनकी पहचान आज भी बरकरार है. लेकिन उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं. काम नहीं मिलने के कारण आदिवासी नौजवान भटक रहे हैं. उनको नक्सलवाद के चंगुल से निकालना एक बड़ी चुनौती होगी.

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वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्र का मानना है कि आज वाले बाबूलाल मरांडी वो बाबूलाल मरांडी नहीं हैं जो हुआ करते थे. अभी भी उनके साथ वहीं हैं जो पहले थे. इनका मानना है कि आंतरिक झगड़ा सलटाने के लिए जिम्मेदारी दी गई है. रघुवर दास को राष्ट्रीय नेतृत्व में जगह मिल चुकी है. अर्जुन मुंडा अब झारखंड की राजनीति में दिलचस्पी लेते नहीं दिखते. दल छोड़ने के बाद बाबूलाल मरांडी ने भाजपा को क्या कुछ कहा था, यह बताने की जरूरत नहीं.

दोस्ती और दुश्मनी को राजनीति में हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. अब देखना है कि बाबूलाल मरांडी एक साल के भीतर क्या कर पाते हैं. वैसे संथाल में सबसे ज्यादा इनके समाज के लोग हैं. कोल्हान में भी संथाल की अच्छी खासी संख्या है. मेरे हिसाब से फिलहाल यही वजह दिखाई दे रही है. बैजनाथ मिश्र ने कहा कि फिलहाल पार्टी में कोई चेहरा भी नहीं दिख रहा है. भाजपा नया चेहरा नहीं खड़ा कर पाई. बाहर से आकर कई लोग पार्टी में सेट हो गये.

नॉन ट्राईबल में भी है बाबूलाल की स्वीकार्यता: बाबूलाल मरांडी को लेकर राजनीति के अन्य जानकारों की अपनी अपनी दलील है. बाबूलाल मरांडी एक मात्र ऐसे आदिवासी नेता हैं जिनकी स्वीकार्यता न सिर्फ आदिवासियों के बीच बल्कि गैर आदिवासियों में भी है. अबतक के राजनीतिक करियर में उन्होंने चार बार लोकसभा और दो बार विधानसभा चुनाव जीते हैं. इनमें दो बार दुमका रिजर्व सीट पर जीत को छोड़ दें तो शेष चार जीत गैर आरक्षित कोडरमा, रामगढ़ और धनवार में हुई है. वह ऐसे नेता हैं जो दिशोम गुरू शिबू सोरेन और उनकी पत्नी रूपी सोरेन को भी हरा चुके हैं.

साल 2006 में भाजपा से अलग होकर जेवीएम के जरिए वह साबित कर चुके हैं कि झारखंड में संगठन चलाने की ताकत उनसे ज्यादा किसी में नहीं है. उनके नाम की घोषणा होते ही इसका असर भी दिखने लगा है. अलग-अलग वजहों से पार्टी से दूरी बना चुके पुराने कार्यकर्ता अब भाजपा ऑफिस पहुंचने लगे हैं. उन्हें भरोसा है कि बाबूलाल मरांडी ही एक मात्र ऐसे नेता हैं जो कोई करिश्मा दिखा सकते हैं.

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बाबूलाल मरांडी की रही है बेदाग छवि: राज्य के पहले मुख्यमंत्री बनने के बाद कई बार विधायकों की दगाबाजी की वजह से अनकहे किंगमेकर की भूमिका अदा कर चुके बाबूलाल मरांडी पर कभी भी भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे. प्रदेश में भाजपा के लिए वह इसलिए भी जरूरत बन गये हैं क्योंकि वह एक मात्र शख्स हैं तो सोरेन परिवार से सीधा टकराने की ताकत रखते हैं.

सदन में भाजपा विधायक दल के नेता का दर्जा नहीं मिलने के बावजूद वह सोशल मीडिया के जरिए सोरेन परिवार पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ते. झामुमो के पास उनको घेरने के लिए सिर्फ पुराना जुमला बचा है. कभी जेवीएम के दौर के उनके बयान को सामने रखा जाता है तो कभी उन्हें खाली कारतूस की संज्ञा दी जाती है. लेकिन झामुमो के नेता जानते हैं कि भाजपा ने किस मकसद से बाबूलाल मरांडी को उनके सामने खड़ा किया है.

बाबूलाल मरांडी के सामने चुनौतियां: झारखंड में भाजपा के पास बाबूलाल मरांडी के बाद रघुवर दास और अर्जुन मुंडा सरीखे दो बड़े नेता हैं. जाहिर है बाबूलाल मरांडी को आंतरिक राजनीति से जूझना होगा. लेकिन सभी जानते हैं कि आज की भाजपा बिल्कुल अलग है. शीर्ष नेतृत्व ने जो फैसला ले लिया, उसमें सेंधमारी करने का मतलब है मुसीबत मोल लेना. वैसे बाबूलाल मरांडी के नाम की घोषणा के साथ ही भाजपा दफ्तर में चहल-पहल बढ़ गयी है. निवर्तमान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश उनके पीछे चलने वालों में हुआ करते थे. उन्होंने भी जेवीएम के गठन के वक्त भाजपा छोड़ा था. इसके अलावा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र राय और बिहार के विधान पार्षद रहे प्रवीण सिंह बाबूलाल मरांडी के बेहद करीबी माने जाते हैं. इन सभी के पास संगठन की अच्छी समझ है. इसका फायदा बाबूलाल मरांडी को मिलेगा.

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बाबूलाल मरांडी को एक माह के भीतर कमेटी का गठन कर लेना है. इसके अलावा आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज से सभी को तैयार करना है. इसके अलावा डुमरी में होने वाले विधानसभा उपचुनाव को भी उनके लिटमस टेस्ट के रूप में देखा जा रहा है. हालांकि अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि डुमरी में भाजपा का प्रत्याशी होगा या आजसू का.

आदिवासी हित और करप्शन मुक्त शासन पर जोर: भाजपा ने आदिवासी सीटों पर पैनी नजर गड़ा दी है. द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाना उसी कवायद का परिणाम बताया जाता है. झारखंड में भगवान का दर्जा पाने वाले बिरसा मुंडा की जयंती को जनजाति गौरव दिवस के रूप में घोषित करना उसी दिशा में बढ़ता कदम है. जहां तक झारखंड की बात है तो यहां भ्रष्टाचार के मामलों में दो आईएएस जेल जा चुके हैं.

भाजपा दावा करती है कि वह करप्शन को कतई बर्दाश्त नहीं करेगी. भाजपा के इस नेरेटिव को धरातल पर उतारने के लिए बाबूलाल मरांडी से ज्यादा कोई फिट नजर नहीं आता. इस दिशा में सरकार को घेरने के लिए वह लगातार हमलावर भी हैं. भाजपा मान चुकी है कि बाबूलाल मरांडी के बगैर सोरेन परिवार को नहीं घेरा जा सकता. कुल मिलाकर कहें तो बाबूलाल मरांडी को अग्नि परीक्षा से गुजरना है. अगर पास हो गये तो परिणाम क्या होगा, इसका जवाब सबको मालूम है.

Last Updated : Jul 9, 2023, 11:00 AM IST

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