रांचीः मुख्यमंत्री आवास से महज 20 किलोमीटर दूर राढ़हा पंचायत का कौवाटोंगरी गांव है. इस गांव में पंचम उरांव जनवितरण प्रणाली की दुकान चलाते हैं. लेकिन राशन आने पर उनको लाभुकों को अनाज देने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है. नेटवर्क ना मिलने पर 10-10 दिन तक गरीबों को राशन मुहैया नहीं हो पाता है.
SPECIAL REPORT: बिन नेटवर्क सब सून! नहीं मिलता है नेटवर्क
जब पंचम उरांव की दुकान में सरकारी अनाज पहुंचता है तो उनकी बहु फिलिसिता लकड़ा हाथ में पॉश मशीन लेकर गरीब लाभुकों के साथ नेटवर्क की तलाश में निकल पड़ती है. कभी इस टीला तो कभी उस टीला, कभी इस गांव तो कभी उस गांव. जहां भी पॉश मशीन पर नेटवर्क का कांटा दिखता है वहीं दरबार लग जाता है. लाभुक पॉश मशीन पर अंगूठा लगाते हैं, उसी आधार पर उन्हें अनाज मिलता है. जद्दोजहद यहीं खत्म नहीं होती, अनाज देने से पहले 35 किलो और 5 किलो का ईंट या पत्थर ढोना पड़ता है. ऐसा इसलिए क्योंकि पॉश मशीन से लगे वजन मशीन पर जबतक लाभुक को मिलने वाले अनाज की क्षमता का वजन नहीं रखा जाता है तबतक मशीन में इंट्री नहीं हो पाती है.
राशन मिलने में लग जा 10-10 दिन
अब आप समझ सकते हैं कि लोगों को ना सिर्फ नेटवर्क की तलाश होती है, बल्कि ईंट-पत्थर भी ढोना पड़ता है. यह प्रक्रिया हर माह करीब दस दिन तक चलती है. जब सभी लाभुकों का डाटा दर्ज हो जाता है. तब उसी पर्ची के आधार पर गांव में अनाज दिया जाता है. गांव के बुजुर्ग नरतू उरांव समेत कई लाभुकों ने अपना दर्द ईटीवी भारत से बयां किया.
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विभाग को दी गई है जानकारीः बीडीओ
कांके प्रखंड के बीडीओ ने बताया कि हमारी पहली प्राथमिकता लाभुकों को अनाज पहुंचाने की है. उन्होंने कहा कि विभाग को खराब नेटवर्क की जानकारी दी जा चुकी है. लेकिन अभी तक इसका कोई हल नहीं निकला है.
झारखंड में 57 लाख परिवारों को पीडीएस का अनाज मिलता है. इसमें लाल कार्डधारी परिवार के प्रति व्यक्ति को पांच किलो और पीला कार्ड यानी अंत्योदय कार्डधारी प्रति परिवार के 35 किलो अनाज मिलता है. झारखंड में पीडीएस की कुल 24451 दुकानें हैं. लेकिन कमजोर नेटवर्क इस अभियान को प्रभावित कर रहा है.