रांची: बैंकों के निजीकरण का विरोध लगातार जारी है. इसके खिलाफ 16 और 17 दिसंबर को बैंकों में ताला लटका हुआ नजर आएगा. यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स ने इसकी घोषणा करते हुए इसके लिए केन्द्र सरकार को जिम्मेदार माना है. हड़ताल पर जाने से पहले शुक्रवार को राजभवन के समक्ष धरना पर बैठे बैंककर्मियों ने केन्द्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की.
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16 और 17 दिसंबर को बैंक बंद
यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स के संयुक्त संयोजक एमएल सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार के द्वारा शीतकालीन सत्र में बैंकिंग अधिनियम 1970 एवं 1980 को संशोधित कर बैंकों का निजीकरण करने जा रही है जिसके विरोध में देशभर के बैंक कर्मी आंदोलनरत हैं और आगामी 16 और 17 दिसंबर को अखिल भारतीय स्तर पर हड़ताल करने जा रहे हैं. यह हड़ताल मुख्यत: आम जनता के हितों को देखते हुए की जा रही है. उन्होंने कहा कि जब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक लाभ अर्जित कर रहे हैं अपनी सभी सामाजिक जवाबदेही निभा रहे हैं तो केंद्र सरकार द्वारा निजीकरण का प्रस्ताव लाना कहां से उचित है.
केन्द्र सरकार कर रही है बैंकों के साथ मनमानी बैकों के निजीकरण के खिलाफ आंदोलन कर रहे यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स ने केन्द्र सरकार पर बैंकों के साथ मनमानी करने का आरोप लगाया है. संघ ने सरकार से जानना चाहा है कि आखिरकार बैंकों का निजीकरण क्यों आवश्यक है. संघ के नेता एमएल सिंह ने कहा कि निजीकरण होने से शाखाएं बंद होंगी, आम जनता की गाढ़ी कमाई डूब जाएगी, ग्राहक सेवा प्रभावित होगा, सेवा शुल्क में अपार वृद्धि होगी, बेरोजगारी में वृद्धि होगी और कर्मचारियों की छंटनी होगी. जिससे क्षेत्रीय असमानता के साथ-साथ गरीबों और आम जनता के बच्चों पर अमीरों का अधिकार हो जाएगा. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के द्वारा संचालित चाहे वह जन धन योजना हो या कृषि से संबंधित योजनाएं उसे संचालित करने में हम बैंककर्मी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसके बावजूद भी बैंकों के निजीकरण करने पर केन्द्र सरकार आमदा है. धरना के बाद राज्यपाल के नाम से बैंक यूनियन्स के द्वारा ज्ञापन सौंपकर इसपर विचार करने की मांग की गई है.