रांची: वर्ष 1962 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू झारखंड की राजधानी रांची में हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन का उद्घाटन कर देश को एक बड़ा धरोहर दिया. हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन लिमिटेड दुनिया के बेहतरीन कैपिटल इक्विपमेंट्स सप्लायर कंपनियों के नाम में शामिल है. न्यूक्लियर प्लांट के क्षेत्र में ना जाने कितने उपकरणों का निर्माण कर चुका है. लेकिन धीरे-धीरे यह धरोहर बदहाली की हाल झेलने को मजबूर हो गयी है. आज एचईसी को बेचने की बात आए दिन सुनने को मिलती है. जिससे एचईसी में काम करने वाले मजदूर अपनी नौकरी को लेकर चिंतित हैं जबकि आज से कुछ वर्ष पहले तक एचईसी में काम करना लोगों के लिए गर्व की बात होती थी.
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एचईसी का बुरा दौर चल रहा है. बेबसी और बदहाली के बीच कर्मचारियों और अधिकारियों ने हमेशा एचईसी का साथ दिया. वेतन ना मिलने में एचईसी में हड़ताल भी हुई. मजदूरों ने एचईसी में काम ठप कराया. अपनी मांगों को लेकर आंदोलन किया लेकिन कभी भी खुद को एचईसी से अलग नहीं किया. एचईसी के एचएमटीपी (HMTP) प्लांट में वेल्डर का काम कर रहे सरोज कुमार बताते हैं बचपन में जब उनके पूर्वज एचईसी में काम करते थे तो उन्हें बचपन से ही इच्छा होती थी कि वह भी बड़े होकर एचईसी में काम करेंगे. लेकिन वर्ष 2012 में वेल्डर के रूप में नौकरी की शुरुआत करते ही उन्हें एहसास होने लगा कि शायद वह अपनी पूरी उम्र एचईसी में नौकरी नहीं कर पाएंगे क्योंकि एचईसी की हालत दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है. क्योंकि महीनों तक कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा है. फैक्ट्री की बड़ी-बड़ी मशीनों में जंग लग रहे हैं.
एचईसी कर्मचारी उदय शंकर बताते हैं कि वर्षों से इंसेंटिव मजदूरों को नहीं मिली है. कई मजदूर तो अब उम्मीद छोड़ चुके हैं और अपने दूसरे रोजगार में जुट गए हैं ताकि उन्हें भुखमरी के कगार पर ना जाना पड़े. एचईसी में वर्षों से काम कर रहे वरिष्ठ कर्मचारी बालमुकुंद शर्मा बताते हैं एक वक्त था जब एचईसी के क्षेत्र में काम करना और रहना गर्व की बात होती थी. एचईसी में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए हजारों एकड़ में फ्लैट और मकान बनाए गए थे. सभी क्षेत्रों में मिडिल स्कूल और हाईस्कूल हुआ करते थे ताकि क्षेत्र में रहने वाले कर्मचारियों के बच्चे को पढ़ने के लिए ज्यादा दूर ना जाना पड़े. एचईसी की तरफ से बड़े-बड़े खेल के मैदान, बिजली, पानी की व्यवस्था हुआ करती थी. यहां तक कि एचईसी के अपने सुरक्षाकर्मी हुआ करते थे. उन्होंने बताया कि एचईसी अपने कर्मचारियों को स्वास्थ्य व्यवस्था मुहैया कराने के लिए अपना अस्पताल तक रखा हुआ है ताकि किसी भी मजदूर को स्वास्थ्य संबंधी किसी भी समस्या के लिए बाहर का अस्पताल ना जाना पड़े. लेकिन आज की तस्वीर उलट हो गई है अब तो एचईसी क्षेत्र में रहने वाले लोग धीरे-धीरे अपनी सभी सुविधाओं को खो रहे हैं.
एचईसी में काम करने वाले कई वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि एचईसी ने भारत के कई युद्ध और देश की तरक्की के लिए उठाए गए कदमों में हमेशा साथ दिया है. वर्ष 1971 के युद्ध में इंडियन माउंटेन टैंक, 105 एमएम गेन बैरल का निर्माण, आईएनएस राणा के लिए गियर सिस्टम का निर्माण, चंद्रयान के लिए लॉन्चिंग पैड निर्माण सहित कई बड़े उपकरणों का निर्माण कर एचईसी ने देश को मजबूत किया.
मजदूरों के लिए आवाज उठाने वाले भारतीय मजदूर संघ के महामंत्री व एचईसी के कर्मचारी अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि एचईसी की हालत आज खराब हुई है. इसका कारण सिर्फ वर्तमान सरकार नहीं बल्कि पूर्ववर्ती सरकार भी है. क्योंकि एचईसी की हालत वर्ष 2000 से गिरना शुरू हुआ उस वक्त केंद्र में बैठी सरकार ने कारखाना के जीर्णोद्धार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया. जिसके बाद कारखाना दिन प्रतिदिन अपनी बदहाली की हालत में जाता चला गया. उन्होंने अपनी संघ की ओर से कहा कि उन्हें वर्तमान सरकार से उम्मीद है. लेकिन इसके लिए मजदूरों को एकजुट होना पड़ेगा अगर मजदूर एकजुट नहीं होंगे तो आने वाले समय में एचईसी एक इतिहास बनकर रह जाएगा.