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पहले माता-पिता को किया चित, अब बेटे हेमंत सोरेन की बारी!

झारखंड में बीजेपी ने मिशन 2024 के तहत बाबूलाल मरांडी पर अपना भरोसा जताया है. ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इन्होंने ना सिर्फ दिशोम गुरु शिबू सोरेन को बल्कि उनकी पत्नी रूपी सोरेन को भी मात दी है और अब अगर उनके सामने हेमंत सोरेन हैं.

Babulal Marandi
Babulal Marandi

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Published : Jul 6, 2023, 7:08 PM IST

Updated : Jul 6, 2023, 7:45 PM IST

रांची:बाबूलाल मरांडी को झारखंड बीजेपी का नया अध्यक्ष चुन लिया गया है. बाबूलाल संघ के कार्यकर्ता रह चुके हैं. इसके अलावा इन्होंने संथाल परगना के चप्पे चप्पे में काम किया है. इसके अलावा वे आदिवासी चेहरा भी हैं. ऐसे में झामुमो के लिए वे बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकते हैं. बाबूलाल मरांडी पहले से ही सोरेन परिवार पर बेहद आक्रामक रहे हैं. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने अपने हमले और तेज कर दिए हैं. इन सबके बीच अब ये बातें भी होने लगी है कि झारखंड में बीजेपी के लिए सीएम का चेहरा बाबूलाल मरांडी ही होंगे.

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80 के दशक से दुमका में सक्रिय: बीजेपी के लिए बाबूलाल मरांडी क्यों खास है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने ना सिर्फ हेमंत सोरेन की मां रूपी सोरेन को मात दी है, बल्कि दिशोम गुरू कहे जाने वाले शिबू सोरेन को भी इन्होंने चुनाव में चित किया है. 80 के दशक से ही दुमका में सक्रिय रहे हैं, उस वक्त इन्होंने आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता के तौर पर पूरे संथाल के गांव-गांव में काम किया. महज 30 की उम्र युवा बाबूलाल मरांडी ने आदिवासियों में राजनीतिक चेतना जागृत करने की कोशिश की. अपने काम में लगन के कारण ही बाबूलाल बीजेपी के संस्थापक सदस्य कैलाशपति मिश्र जैसे नेताओं के चहेते बने इन्हें बीजेपी की तरफ से टिकट भी मिला.

पहली बार 1991 में दी शिबू सोरेन को टक्कर: राम मंदिर के समर्थन के लिए निकाली गई रथ यात्रा जब बिहार पहुंची तो तब लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया. इससे नाराज बीजेपी ने केंद्र में जनता दल की सरकार से समर्थन वापस ले लिया जिससे बीपी सिंह की सरकार गिर गयी थी. 1991 में मध्यावधि चुनाव की घोषणा कर दी गई. तब दुमका में बीजेपी को शिबू सोरेन के खिलाफ एक बेहतर प्रत्याशी की तलाश थी. यहां पार्टी ने बाबूलाल मरांडी पर दांव लगाया. शिबू सोरेन जैसे दिग्गज नेता के खिलाफ युवा बाबूलाल मरांडी जीत तो नहीं सके लेकिन 1.25 लाख वोट लाकर उन्होंने राजनीति में अपनी पहचान बना ली. 1996 के चुनाव में भी यहां बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी पर भरोसा जताया. हालांकि इस बार भी बाबूलाल जीत नहीं सके, लेकिन बड़ी बात ये थी कि ये शिबू सोरेन से सिर्फ 5000 हजार मतों से हारे थे. अब तक पूरे संथाल में बाबूलाल मरांडी की लोकप्रियता सिर चढ़कर बोल रही थी.

तीसरी बार में दिशोम गुरु को दी मात: 1998 की चुनाव में बाबूलाल मरांडी ने जी तोड़ मेहनत की थी, अपने तीसरे प्रयास में बाबूलाल मरांडी महज 40 साल की उम्र में झामुमो के सबसे बड़े नेता शिबू सोरेन को मात देकर झारखंड का सबसे बड़ा उलटफेर कर दिया. इस जीत से ना सिर्फ झारखंड में बल्कि पूरे भारत की राजनीति में हलचल बच गया. इनकी जीत का इनाम भी इन्हें मिला और वाजपेयी सरकार में ये वन और पर्यावरण मंत्री बनाए गए.

रूपी सोरेन को भी हराया: 1999 एक बार फिर से मध्यावधि चुनाव हुए. इस बार दुमका में उनका मुकाबला शिबू सोरेन की पत्नी रूपी सोरेन से हुआ. चुनाव भले ही रूपी सोरेन लड़ रहीं थीं लेकिन ये शिबू सोरेन के लिए काफी महत्वपूर्ण था, लेकिन एक बार फिर लोगों ने बाबूलाल पर अपना भरोसा दिखाया और उन्होंने यहां से जीत दर्ज की.

शिबू सोरेन और रूपी सोरेन को मात देने वाले बाबूलाल मरांडी के सामने हेमंत सोरेन हैं. यह मुकाबला सिर्फ एक सीट पर नहीं बल्कि पूरे राज्य का है. बाबूलाल मरांडी ने 2024 में मोदी के हाथ को मजबूत करने के लिए राज्य की 14 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करने का टारगेट रखा है. वहीं 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन को सत्ता से हटाने जिद्द ठान ली है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही होगा कि क्या एक बार फिर से बाबूलाल वही करिश्मा दोहरा पाएंगे. क्या वे हेमंत सोरेन को मात दे पाएंगे.

Last Updated : Jul 6, 2023, 7:45 PM IST

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