रांची: झारखंड में डायन करार देकर महिलाओं पर अत्याचार और हत्या कर देने का सिलसिला बदस्तूर जारी है. झारखंड पुलिस के आंकड़े यह बताते हैं कि राज्य में किसी न किसी थाने में हर हफ्ते डायन बिसाही के दो मामले जरूर आते हैं. 2021 में अब तक डायन के नाम पर झारखंड के अलग-अलग जिलों में 16 लोगों की हत्या हो चुकी है. इसमें ज्यादातर महिलाएं थी. डायन बिसाही के ज्यादातर मामले पुलिस तक नहीं पहुंचते. ऐसे में इस भयावह समस्या की असल तस्वीर क्या है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.
गुमला के कामडारा थाना क्षेत्र के बुरुहातु गांव में 22 फरवरी की रात निकोदिन टोपनो के पूरे परिवार की हत्या डायन बिसाही की आशंका के आधार पर कर दी गई थी. हत्या के आरोप में गुमला पुलिस की तरफ से गांव के ही 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था. राजधानी रांची में भी डायन के नाम पर तीन हत्या के मामले इस साल सामने आए हैं.
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6 साल में 4,556 मामले
पिछले छः साल(2015-20) के आंकड़ों पर गौर करें तो झारखंड में 4,556 मामले दर्ज किए गए. इसमें हत्या से संबंधित 310 मामले दर्ज हैं. डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम के तहत 2015 में 818, 2016 में 688, 2017 में 668, 2018 में 567, 2019 में 978 और 2020 में 837 मामले दर्ज किए गए हैं. 2020 में डायन बिसाही के नाम पर 30 लोगों की हत्या कर दी गई.
पिछले साल जमशेदपुर में सबसे अधिक केस
2020 में डायन बिसाही के सबसे ज्यादा मामले पश्चिमी सिंहभूम में सामने आए. इस साल डायन के आरोप में 5 लोगों की हत्या कर दी गई और 22 लोगों की बेरहमी से पिटाई की गई. डायन के नाम पर पिछले साल खूंटी में तीन, रांची, पलामू, हजारीबाग, गिरिडीह और सरायकेला में दो-दो लोगों की हत्या कर दी गई. 2020 में रांची में डायन के नाम पर 5 महिलाओं के हाथ जला दिए गए थे. इसके अलावा 22 लोगों की पिटाई कर दी गई. लातेहार में 20, साहिबगंज में 19, चतरा में 18 और खूंटी में 12 लोगों की पिटाई का मामला सामने आया. रांची के बेड़ो, नामकुम, लापुंग, दशम, अनगड़ा और तुपुदाना ऐसे इलाके हैं जहां अक्सर डायन के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित करने की खबरें सामने आती हैं.
क्यों लगते हैं डायन-बिसारी के आरोप
झारखंड के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले ज्यादातर लोग किसी बीमारी के फैलने की स्थिति में पहले नीम-हकीम या ओझा के पास जाते हैं. जब झोलाछाप डॉक्टरों और ओझा से कुछ नहीं हो पाता तब वह आस पड़ोस की किसी महिला को इसके लिए जिम्मेदार बताते हुए उसे डायन करार दे देते हैं. मौजूदा समय में गांवों में स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर नहीं हैं और ऐसी स्थिति में डॉक्टर और ओझा ही लोगों का सहारा है. ओझा की ओर से डायन करार दी गई महिला का उत्पीड़न शुरू होता है और कई बार लोग जान से भी मार देते हैं. लोग पुरानी मान्यताओं को मानते हुए किसी बच्चे को बुखार आने, पेट में दर्द होने, खाना न खाने, रात में रोने, नींद न आने, गांव में फसल कम होने, पानी कम गिरने या अधिक गिरने, जानवरो की तबीयत खराब होने पर यह मान लेते हैं कि किसी की नजर लगी है.