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Jivitputrika Vrat 2023: 6 अक्टूबर को है जीवित्पुत्रिका पर्व, अष्टमी के दिन महालक्ष्मी के पर्व होने से बन रहा अद्भुत संयोग - जितिया पर्व का पारण

जितिया व्रत 2023, 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा. अष्टमी के दिन महालक्ष्मी का पर्व होने से इस बार अद्भुत संयोग है. क्योंकि इस दिन सप्तमी और अष्टमी का महासंयोग बन रहा है. Jitiya Festival in Ranchi.

coincidence of Ashtami Mahalakshmi happening on day of Jivitputrika vrat 2023
जितिया व्रत 2023

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 5, 2023, 4:13 PM IST

Updated : Oct 5, 2023, 4:51 PM IST

जितिया व्रत की जानकारी देते पंडित जितेंद्रजी महाराज

रांचीः जितिया पर्व को लेकर वह उहापोह की स्थिति बनी हुई है. क्योंकि 6 अक्टूबर को सप्तमी मिला अष्टमी का संयोग बन रहा है. ऐसे में लोगों के बीच यह भ्रम फैल रहा है कि सप्तमी में जितिया का पर्व किस प्रकार करें क्योंकि शास्त्र के अनुसार किसी भी पर्व का बेहतर संयोग अष्टमी में होता है.

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लोगों की इस उहापोह की स्थिति को देखते हुए पंडित बताते हैं कि जीवित्पुत्रिका पर्व का सबसे अच्छा संयोग 6 अक्टूबर को ही है. महिलाएं 6 तारीख को निर्जला रहकर अपने संतानों के बेहतर भविष्य और दीर्घायु होने की व्रत रख सकती हैं. उन्होंने कहा कि अष्टमी के दिन सप्तमी का संयोग जरुर आ रहा है लेकिन उससे भी बेहतर संयोग है कि उसी दिन महालक्ष्मी व्रत भी है. इसलिए उस दिन का संयोग सबसे अच्छा बन रहा है और इस बार का जीवित्पुत्रिका पर्व बहुत ही उत्तम है.

रांची के प्रख्यात पंडित जितेंद्रजी महाराज ने बताया कि जितिया पर्व का पारण नवमी के दिन होना चाहिए. अगर 6 अक्टूबर को व्रती निर्जला व्रत नहीं करती हैं तो फिर उनका पारण 8 अक्टूबर को होगा जो दशमी के दिन पड़ता है और शास्त्र के अनुसार किसी भी पर्व का पारण दसवें दिन में नहीं होना चाहिए. पंडित जितेंद्रजी महाराज ने बताया कि सनातन धर्म व पंचांग के अनुसार 6 अक्टूबर को ही जीवित्पुत्रिका पर्व का सबसे उत्तम संयोग है. इसी दिन व्रतियों को व्रत रख अपने पुत्र के दीर्घायु होने की कामना करनी चाहिए.

कैसे करें पूजा: भगवान विष्णु की जैसे पूजा होती है, उसी तरह सोलह प्रकार से जीमूतवाहन राजा का पूजन करना चाहिए. साथ में भगवती दुर्गा की पूजा अवश्य करनी चाहिए और चील सियार की भी पूजा करनी चाहिए. व्रत के दूसरे दिन पांच चना, पांच सिरा के बीज, मरुआ की आटा या मड़ूआ को दूध के साथ पीना चाहिए. इन सभी खानों के साथ सतपूतिया झींगी की सब्जी और नोनी के साग से पारण करना चाहिए. जिससे संतान दीर्घायु होते हैं और जीमूतवाहन राजा और माता दुर्गा की कृपया बनी रहती है.

जीवित्पुत्रिका पर्व की क्या है कथा: पंडित जितेंद्रजी महाराज बताते हैं कि यह जीमूतवाहन राजा की कथा है. उन्होंने बताया कि शास्त्रों के अनुसार जीमूतवाहन राजा ने पक्षी राज गरुड़ से एक बच्चे को बचाने के लिए अपनी जान की आहुति देने के लिए तैयार हो गए थे. जीमूतवाहन राजा के दयालुता को देखकर पक्षीराज गरुड़ उन पर खुश हुए और उन्होंने वरदान दिया कि जो भी महिला जीमूतवाहन राजा की पूजा करेगी उसके पुत्र-पुत्री की दीर्घायु होगी.

गरुड़ प्रतिदिन आकर एक गांव में बच्चों के मांस खाया करते थे. एक दिन जीमूतवाहन राजा अपने ससुराल गए थे तभी उन्होंने देर रात किसी स्त्री के रोने की आवाज सुनी. स्त्री का विलाप सुनने के बाद राजा जीमूतवाहन स्त्री के पास पहुंचे और उनकी समस्याएं सुनीं. राजा को देख स्त्री ने बताया कि उसका एक ही बेटा जिसे गरुड़ कुछ दिनों में खा जाएगा. महिला की चिंता और पीड़ा को देख उसी वक्त जीमूतवहन राजा ने महिला से कहा कि अपने बेटे को गरुड़ के पास मत भेजो उसकी जगह मैं जाऊंगा. यह कहकर राजा गरुड़ के पास चले गए.

गरुड़ ने राजा का एक अंग खा लिया लेकिन राजा के मुंह से एक शब्द तक नहीं निकाला और उसने अपना दूसरा अंग भी गरुड़ को खाने दे दिया. जिसके बाद गरुड़ ने राजा का दूसरा अंग नहीं खाया और राजा से पूछा कि तुम कौन हो. इसके बाद राजा ने कहा कि आप मांस खाएं पूछने का क्या मतलब है, तभी गरुड़ ने कहा पहले पहचान बताओ, तभी राजा ने कहा मेरी माता का सेधिया और पिता का नाम सलीवाहन है, मेरा जन्म सूर्यवंश में हुआ है. इसी के साथ जीमूतवाहन ने राजा गरुड़ को सारी कहानी बताई. राजा की कहानी सुनने के बाद गरुड़ ने राजा की दयालुता देख कहा कि हे राजन मैं तुम पर खुश हुआ वरदान मांगो. राजा ने पक्षीराज गरुड़ से कहा कि आपने अब तक जितने बालकों को खाएं हैं, वह जीवित हो जाएं और आज से किसी बालकों को नहीं खाएं. उसी समय से यह व्रत प्रचलित हो गया, जो आज तक चलता आ रहा है.

Last Updated : Oct 5, 2023, 4:51 PM IST

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