रांचीः वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण एक तरफ पूरा देश त्रस्त है, दूसरी तरफ लगातार बढ़ती महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ के रख दी है. खासकर अरहर दाल और खाने के तेल की बात करें तो इनकी लगातार बढ़ती कीमतों ने लोगों को सबसे ज्यादा रुला रही है. राजधानी रांची का मुख्य बाजार पंडरा बाजार में सरसों तेल के अलग-अलग ब्रांड की कीमत अलग-अलग और बढ़ी कीमतों पर बिक रही हैं. सबसे ज्यादा बिकने वाली इंजन सरसों तेल अभी 185 रुपया बिक रहा है, हाथी छाप 180 तो है सलोनी 175 रुपया का बिक रहा है. वही अरहर दाल 95 किलो बिक रहा है.
अरहर दाल और खाने के तेल की कीमत ने बिगाड़ा किचन का बजट, जानिए क्या है वजह
महामारी और उसके लिए लगाई गयी पाबंदी का असर आम लोगों के किचन पर पड़ रहा है. एक तरफ पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफा हुआ तो दूसरी ओर अरहर दाल और कुकिंग तेल की कीमत बढ़ी है. जिससे आम लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
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रांची में अरहर दाल और कुकिंग तेल की कीमत बढ़ी है. खाद्य पदार्थों की कीमतों में उछाल को लेकर रांची में बाजार भाव बढ़ा है. जिससे तेल और दाल की कीमतों में उछाल आया है. पंडरा थोक बाजार विक्रेताओं की मानें तो दाल और तेल में इजाफा का कई कारण हैं. एक तरफ लॉकडाउन की वजह से लोगों का खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल बढ़ा है. दूसरी तरफ लगातार पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफा के कारण भी बाजार में इसका असर देखने को मिला है, क्योंकि ट्रांसपोर्टिंग चार्ज में भी वृद्धि देखने को मिली है.
दाल के थोक विक्रेता संजय मोहरी ने बताया कि बारिश की वजह से उत्पादन में कमी होने के कारण पिछले वर्ष दाल की कीमतों में इजाफा हुआ था. हालांकि अब धीरे-धीरे बाजार संतुलन में आने लगा है. कच्चा तेल थोक विक्रेता ऋषभ छाबड़िया ने बताया कि किसानों के आंदोलन के दौरान सरसों की उपज कम हुई. इससे तेल मिलों को पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल उपलब्ध नहीं हो पा रहा था, जिसके कारण भी पिछले वर्ष तेल की कीमतों में उछाल आई थी, जो सरसों तेल 130 किलो मिलता था, वो सीधे 170 रुपया पहुंच गया था. क्योंकि किसान एक तरफ आंदोलन कर रहे थे और दूसरी तरफ उनके खेत सूने पड़े थे.
खुदरा विक्रेता गौतम कुशवाहा से मिली जानकारी के अनुसार खाद्य पदार्थों की कीमत में उछाल आने की वजह से हम लोग को अधिक कीमतों में ठोक बाजार से खरीद के लाना पड़ता है. जिसके कारण अधिक कीमतों में हम लोग को भी बेचना पड़ता है. क्योंकि बाजार से दुकान तक लाने में कई तरह के चार्ज लगते हैं, एक तरफ ट्रांसपोर्टिंग का चार्ज तो मजदूरों का भी चार्ज लगता है. जिसके कारण थोक कीमत से 1 से 2 रुपया अधिक कीमतों पर खुदरा दुकानदारों को भी बेचना पड़ता है.