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झारखंड की 14 लोकसभा सीटों पर किसके दावे में कितना दम! क्या एनडीए को टक्कर देने की हालत में है INDIA

Lok Sabha Election Analysis. झारखंड की 14 लोकसभा सीटों को लेकर इंडी गंठबंधन और एनडीए दोनों ओर से सभी सीटों पर जीत के दावे किए जा रहे हैं. लेकिन किसके दावे में कितना दम है, क्या इंडी गठबंधन एनडीए को टक्कर देने की हालत में है, जानते हैं इस रिपोर्ट में...

Lok Sabha Election Analysis
Lok Sabha Election Analysis

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jan 9, 2024, 5:15 PM IST

रांची:अभी 2024 के लोकसभा चुनाव की घोषणा होने में वक्त है. लेकिन अभी से ही पार्टियों ने ताल ठोकना शुरु कर दिया है. विपक्ष की ओर से दावा किया जा रहा है कि इस बार का लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 के चुनाव से बिल्कुल अलग होगा. इसकी वजह है पार्टियों का ध्रुवीकरण. पहली बार भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए का सामना भाजपा विरोधी पार्टियों की गोलबंदी से तैयार हो रही इंडी गठबंधन से होना है. लेकिन गौर करने वाली बात है कि झारखंड के लिए आज का इंडी गठबंधन 2019 के चुनाव में महागठबंधन बनकर मैदान में उतरा था. तब कांग्रेस को सात, झामुमो को चार, जेवीएम (बाबूलाल मरांडी की पार्टी) को दो और आरजेडी को एकमात्र पलामू मिली थी. लेकिन सिर्फ एक सीट मिलने से राजद ने किनारा कर लिया था. राजद ने चतरा से भी उम्मीदवार उतार दिया. बदले में कांग्रेस भी चतरा में फ्रेंडली फाइट के लिए उतर गई थी. इसके बावजूद एनडीए के सामने महागठबंधन नहीं टिक पाया.

झामुमो जैसी पार्टी 2014 की दुमका सीट को गंवा बैठी. वहां से शिबू सोरेन को उनके चेला रहे भाजपा के सुनील सोरेन ने हरा दिया. झामुमो सिर्फ अपनी परंपरागत राजमहल सीट जीतने में कामयाब रहा. शेष दो सीटों मसलन, गिरिडीह में झामुमो के जगरनाथ महतो को भाजपा समर्थित आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी और जमशेदपुर में चंपई सोरेन को भाजपा के विद्युत वरण महतो ने मात दे दी. कांग्रेस को सिर्फ सिंहभूम (चाईबासा) से संतोष करना पड़ा. यह क्रेडिट भी गीता कोड़ा की वजह से मिला क्योंकि इस सीट पर कोड़ा परिवार का दबदबा रहा है. लेकिन कांग्रेस ने खूंटी में भाजपा को जबरदस्त टक्कर दी थी. इस सीट पर भाजपा के अर्जुन मुंडा को कांग्रेस के कालीचरण मुंडा से महज 1,445 वोट के अंतर से जीत मिली थी.

इसबार फर्क सिर्फ इतना होगा कि महागठबंधन से इंडी गठबंधन बने विपक्षी गुट में जेवीएम नहीं होगा. इसलिए कांग्रेस ने अभी से बोलना शुरु कर दिया है कि इसबार उसकी दावेदारी सात से बढ़कर नौ सीटों पर होगी. हालांकि इसपर झामुमो, कांग्रेस और राजद के आलाकमान को फाइनल फैसला लेना है.

दूसरी तरफ इसबार एनडीए इस बात को लेकर कांफिडेंट है कि वह ना सिर्फ अपनी 12 सीटों पर दोबारा जीत दर्ज करेगी बल्कि पश्चिमी सिंहभूम वाली कांग्रेस की इकलौती सीट पर भी कब्जा जमा लेगी. रही बात झामुमो के राजमहल सीट की तो वहां की परिस्थिति ऐसी है कि बिना त्रिकोणीय मुकाबला के भाजपा के लिए पार पाना मुश्किल होगा. इसकी वजह है आदिवासी और मुस्लिम वोटरों का दबदबा. हालांकि भाजपा दावा कर रही है कि इस बार राजमहल में रिकॉर्ड जरुर टूटेगा.

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक भाजपा जीत के फॉर्मूले पर लंबे समय से काम कर रही है. मोदी के मैजिक को टटोला जा रहा है. कई एजेंसियां अलग-अलग फैक्टर को लेकर पार्टी के लिए रिपोर्ट तैयार कर रही हैं. भाजपा में मजबूत पकड़ रखने वाले नेताओं का मानना है कि झारखंड में इस बार जीत का दायरा 12 सीटों से बढ़कर 13 सीटों तक पहुंचने से कोई नहीं रोक पाएगा. अभी तक की तैयारी के मुताबिक भाजपा अपने सहयोगी आजसू के लिए दोबारा गिरिडीह सीट छोड़ने वाली है. दूसरी तरफ कभी भाजपा के रहे मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को अपने पाले में लाकर कांग्रेस की इकलौती पश्चिमी सिंहभूम सीट पर कब्जा जमाने की फिल्डिंग कर रही है.

भाजपा नेताओं का मानना है कि दूसरी पार्टियों के कार्यकर्ता भी चाहते हैं कि इस बार भी केंद्र की कमान नरेंद्र मोदी के ही हाथ में रहे. ऊपर से राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की खबर से भाजपा को जबरदस्त माइलेज मिला है. फिलहाल भाजपा के भीतरखाने पलामू, लोहरदगा और धनबाद सीट पर विशेष मंथन चल रहा है. जानकारी के मुताबिक पलामू से भाजपा सांसद बीडी राम, लोहरदगा में सुरदर्शन भगत और धनबाद में पीएन सिंह की जगह नये चेहरों को मौका मिल सकता है. इसकी वजह है सांसदों की उम्र और परफॉर्मेंस. सूत्र बता रहे हैं कि पलामू में घूरन राम, लोहरदगा में समीर उरांव और धनबाद में राज सिन्हा के अलावा सरयू राय एंट्री लेने की जुगत में हैं.

झारखंड के लिहाज से देखें तो पिछले दोनों चुनावों में भाजपा भारी पड़ी है. इसमें कोई शक नहीं कि वर्तमान हालात में हार-जीत का आंकलन कर पाना प्रीमेच्योर होगा, फिर भी राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में भाजपा कांफिडेंट दिख रही है. वहीं झारखंड में 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता और ओबीसी को आरक्षण बढ़ाने के अलावा सरना कोड को लेकर इंडी गठबंधन को भरोसा है कि उसे वोटरों का विश्वास हासिल होगा. लेकिन सबसे बड़ी बात है कि यह चुनाव स्थानीय मुद्दों पर नहीं होना है. मुकाबला सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी से है. उनका सामना करने के लिए बेशक हेमंत सोरेन का चेहरा सामने है लेकिन पिछले डेढ़ वर्षों में ईडी की कार्रवाई से झारखंड में जिस तरीके से उथल पुथल मचा है, उस भंवर से सही सलामत निकलने के बाद ही नये अनुमान का रास्ता खुल पाएगा.

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