रांचीःरिम्स में आखिरकार जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन आ गई है, लेकिन डेढ़ महीने से अधिक समय होने के बाद भी इसे इंस्टाल नहीं कराया जा सका है. जिससे इस मशीन का उपयोग नहीं शुरू हो सका है. मशीन अभी भी जेनेटिक डिजीज रिसर्च विभाग के एक कमरे में बंद पड़ी है. इस संबंध में रिम्स प्रबंधन का कहना है कि जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन को शुरू करने के लिए लिए जिन एसेसरीज और रासायनिक तत्वों की जरूरत होती है, उसकी व्यवस्था अभी नहीं हो पाई है. इस मशीन के संचालन से खास फायदा यह होगा कि लोग शादी पर युवक-युवती की बीमारी नई पीढ़ी में तो नहीं आएगी, इसका भी पता चल सकेगा.
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राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स के शिशु रोग विभाग के एचओडी और कई वर्षों तक जेनेटिक डिसऑर्डर पर रिसर्च करने वाले डॉ. अमर वर्मा कहते हैं कि जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन को भले ही सुर्खियां कोरोना के समय मिली हो पर यह चिकित्सा जगत के लिए क्रांतिकारी मशीन है. उन्होंने कहा कि झारखंड में हिमोग्लोबिनोपैथी, सीकल सेल डिजीज, थैलसीमिया में किस गुणसूत्र के कौन से वैरिएंट में खराबी है और वह कितनी गंभीर है. किन दो युवक युवतियों में शादी होने पर नई पीढ़ी में बीमारी आने की कितनी संभावना होगी जैसे तमाम सवाल का जवाब जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन से पता चल सकता है.
डॉ. अमन वर्मा ने बताया कि राज्य में बड़ी संख्या में लोगों में अनुवांशिक बीमारियां जैसे ब्लड डिसऑर्डर आदि पाई जाती है. जीनोम सिक्वेंसिंग कर समय से पहले ही बीमारी की पहचान कर रोका जा सकता है और नई पीढ़ी को जेनेटिक डिसऑर्डर से बचाया जा सकता है. डॉ अमर वर्मा का कहना है कि जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन का फ्यूचरिस्टिक मेडिसिन के लिए भी इस्तेमाल हो सकता है. हम समय से पहले ही यह पता लगा सकते हैं कि किसी व्यक्ति को भविष्य में कौन सी जटिल बीमारी हो सकती है.