रांची:झारखंड के पूर्व सीएम रघुवर दास के सीएम हेमंत सोरेन पर खुद को खनन पट्टा आवंटित करने के आरोप लगाने के बाद से झारखंड की राजनीति गर्म हो गई. मुख्य सचिव को भेजे गए चुनाव आयोग के पत्र ने इस गर्माहट को और बढ़ा दिया है. उसके बाद चुनाव आयोग की ओर से सीएम हेमंत सोरेन को किए गए शोकॉज ने जैसे झारखंड की सियासत में तूफान ला दिया.
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चुनाव आयोग के शोकॉज के बाद से झारखंड की राजनीति में तरह-तरह की चर्चाएं हो रहीं हैं. क्या मुख्यमंत्री इस्तीफा दे देंगे, क्या उन्हें हटा दिया जाएगा, क्या राज्य में राष्ट्रपति शाषन लगेगा या फिर कोई नया मुख्यमंत्री राज्य को मिलेगा. मुख्यमंत्री का अगला कदम क्या होगा. इसपर वो कानूनी जानकार के साथ-साथ अपने सलाहकारों के साथ मंथन कर रहे हैं. चुनाव आयोग ने 10 मई तक जवाब देने का समय दिया है.
इधर, खान सचिव पूजा सिंघल पर कार्रवाई को भी लोग इससे जोड़कर देख रहे हैं. पिछले दिनों हेमंत के गीदड़ भभकी वाले बयान पर बीजेपी की भी प्रतिक्रिया आ चुकी है. झारखंड बीजेपी अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने हेमंत सोरेन से इस्तीफे की मांग कर दी है. वहीं शुक्रवार को ईडी की कार्रवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए सीएम हेमंत सोरेन ने कहा था कि वो बीजेपी की गीदड़ भभकी से डरने वाले नहीं हैं.
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वहीं, बाबूलाल के दलबदल मामले में विधानसभा अध्यक्ष के न्यायाधीकरण में सुनवाई में आई तेजी भी, कई संकेत दे रहे हैं. 6 मई को इस मामले में सुनवाई हुई और 6 मई की सुनवाई से पहले ही 9 मई को भी सुनवाई की तारीख तय कर दी गई. ऐसे में इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि बाबूलाल की सदस्यता भी खतरे में पड़ सकती है. इन सब के बीच बाबूलाल मरांडी का दिल्ली दौरा भी अपने आप में बहुत कुछ कह रहा है. राजनीतिक हलके में इन सारे घटनाक्रम को बीजेपी-जेएमएम के बीच वार-पलटवार से जोड़कर देखा जा रहा है.
सीएम पर कार्रवाई की सूरत में क्या हैं ऑप्शन: अगर सीएम हेमंत सोरेन को अयोग्य करार दिया जाता है तो उन्हें या तो इस्तीफा देना पड़ेगा या फिर बर्खास्तगी होगी. लिहाजा, अभी से ही राजनीतिक विकल्पों पर चर्चा शुरू हो गई है. हालिया स्थिति में मुख्यमंत्री पद के दो विकल्प नजर आ रहे हैं.
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विकल्प एक- पिता शिबू सोरेन को सत्ता सौंपना: जानकारों का मानना है कि सत्ताधारी दलों में हो रही खींचतान के लिहाज से शिबू सोरेन को सामने लाना मुफीद होगा. इससे गठबंधन की एकता बनी रह सकती है. क्योंकि पिछले कुछ दिनों से झामुमो के ही कुछ विधायक खतियान के आधार पर स्थानीयता और पेसा एक्ट को लेकर सरकार के लिए सिरदर्द बने हुए हैं. इनमें सबसे मुखर होकर विरोध कर रहे हैं लोबिन हेंब्रम. गुरुजी की बहू सीता सोरेन भी वर्तमान व्यवस्था से नाराज चल रहीं हैं.
विकल्प दो- पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाना: राजपाट पर नियंत्रण के लिहाज से कल्पना सोरेन का सीएम बनना सबसे बेहतर विकल्प के रूप में नजर आ रहा है. लेकिन वह मूलरूप से ओडिशा की रहने वाली हैं. अब देखना होगा कि क्या वह झारखंड की किसी रिजर्व सीट से चुनाव लड़ने की योग्यता रखती हैं. लेकिन कल्पना सोरेन के नाम पर पार्टी की एकजुटता संदेहास्पद लग रही है.
विकल्प तीन- राज्य में राष्ट्रपति शासन: एक तीसरे विकल्प की भी यहां जोर शोर से चर्चा हो रही है. चूंकि सत्ताधारी दल कांग्रेस में भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. इरफान अंसारी, राजेश कच्छप, उमाशंकर अकेला और नमन विक्सल कोनगांडी लगातार संगठन पर दबाव डाल रहे हैं. पार्टी विधायक अपने ही मंत्री खासकर बन्ना गुप्ता को घेरते नजर आते हैं. ऐसे में जानकारों का मानना है कि कांग्रेस खेमे की गुटबाजी एक नया राजनीतिक समीकरण खड़ी कर सकती है. ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति शासन से भी इनकार नहीं किया जा सकता है.