रांची: राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद अब जन प्रतिनिधित्व अधिनियम को लेकर एक बहस शुरू हो गई है. कांग्रेस की नाराजगी जाहिर करने और आरोप लगाने में गुस्सा इतना ज्यादा है कि फैसला देने वाले जज तक पर गलत करने का आरोप लग गया. पीएम नरेंद्र मोदी को लेकर राहुल गांधी द्वारा दिए गए आपत्तिजनक बयान पर सूरत की अदालत ने 2 साल की सजा सुनाई और उसी के आलोक में राहुल गांधी की सदस्यता लोकसभा सचिवालय ने रद्द कर दी.
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10 साल बाद: राहुल गांधी को लेकर जो प्रसंग शुरू हुआ है इसकी एक बानगी 27 सितंबर 2013 को भी काफी चर्चा में थी. राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह की यूपीए-2 में लाए गए एक अध्यादेश के प्रति को फाड़ने के बाद यह कहा गया था कि लाया जा रहा अध्यादेश बकवास है. इस बात के बाद पूरे देश में एक बड़ी बहस छिड़ी थी कांग्रेस के लिए नए तेवर का नेता मिलना चर्चा का विषय था. इस बात की भी चर्चा खूब थी कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के जिस मुद्दे पर सबसे ज्यादा घिरती है उसके लिए बने कानून पर कांग्रेस के नई पीढ़ी के लोग समझौता करने के मूड में नहीं है. राहुल गांधी राजनीति में बदलाव के नई दिशा देंगे.
बिहार वाली राजनीति: आज की राजनीति मौजूदा स्वरूप में बिहार की राजनीति में बहुत कुछ बदला हुआ है. नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ सरकार चला रहे हैं. संभव है कि राहुल गांधी पर दिया जाने वाला बयान अलग ही होगा. लेकिन 2013 में जिस राजनीति को बिहार में जगह मिली थी वह काफी चर्चा में थी. पशुपालन घोटाले में लालू यादव पर सुनवाई काफी तेजी से चल रही थी और यह माना जा रहा था कि जिस अध्यादेश को राहुल गांधी ने फाड़ा है इसका असर तो लालू यादव के राजनीतिक जीवन पर पड़ेगा ही.
लालू की गई सदस्यता: 28 अक्टूबर 2013 को राष्ट्रीय जनता दल के कार्यालय में चर्चा हो रही थी. राहुल गांधी ने जिस तरीके से काम किया है इसके दूरगामी राजनीतिक परिणाम तो आएंगे ही. हालांकि चर्चा के केंद्र बिंदु में लालू यादव ही थे. राजद में चल रही थी राजद के कई बड़े नेता भी वहां मौजूद थे. जिस बात की चर्चा उस समय हो रही थी उसे अमलीजामा भी पहनने में बहुत वक्त नहीं लगा. लालू यादव, राहुल गांधी द्वारा फाड़े गए उस अध्यादेश के बाद पहले ऐसे राजनेता बने जिनकी सदस्यता लोकसभा से जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत चली गई.
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4 अक्टूबर 2013 देश का पहला मामला: 27 अक्टूबर 2013 को अध्यादेश फाड़ दिए जाने के बाद जो कानून अमल में आया उसके बाद 3 अक्टूबर 2013 को लालू यादव को पशुपालन घोटाले के मामले में दोषी करार दे दिया गया. अगले दिन 4 अक्टूबर 2013 को लालू यादव की सदस्यता समाप्त हो गई. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के आने के बाद लालू यादव पहले ऐसे सांसद थे जिन की सदस्यता देश में इस कानून के आने के बाद गई थी. राजद के लोगों से जब इस पर प्रतिक्रिया ली गई थी तो सभी लोगों ने कहा था कि कांग्रेस नई राजनीति को शुरू कर रही है आने वाले समय में इसके अच्छे परिणाम जरूर मिलेंगे. रांची की अदालत में लालू यादव के दोषी करार दिया था.
धनबल-बाहुबल को लगा डर: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम आने के बाद बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा चर्चा थी. धन बल के आधार पर बाहुबल को जुटाकर सदन के गलियारे में अपनी धमक के साथ पहुंच जाना राजनीति के चलन में आम बात थी. 1990 के दशक के बाद जिस तरीके की राजनीति बिहार झारखंड और उत्तर प्रदेश में दिखी माफिया और बाहुबलियों के दबदबे से विधानसभा और विधान परिषद भी अछूते नहीं रहे. लोकसभा के गलियारे में भी ऐसे दबंगों की कमी नहीं रही. जब इस जनप्रतिनिधि अधिनियम को कानून का दर्जा मिला तो माना जाने लगा कि राजनीति में स्वच्छता आनी शुरु हो जाएगी. इसके लिए राहुल गांधी का नाम भी काफी जोरों से लिया गया था, क्योंकि राहुल गांधी अगर उस समय उस अध्यादेश को नहीं फाड़ते तो शायद यह कानून लचीला हो गया होता और लोगों को इसका लाभ मिल जाता.
राजनीति बोल रही है: राहुल गांधी को 2 साल की सजा मिलने के बाद उनकी सदस्यता लोकसभा सचिवालय ने खारिज किया. उसके बाद से बिहार और झारखंड में राजनीतिक प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई हैं. कांग्रेस के झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा कि जो कुछ हुआ वह गलत हुआ है. यह लोकतंत्र में अघोषित आपातकाल जैसी स्थिति खड़ी कर दी गई है. राष्ट्रीय जनता दल ने ट्वीट करके यह कहा है जो कुछ हुआ है यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.
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सबक सब के लिए: राहुल गांधी को लेकर कई राजनीतिक समीक्षक इसे राजनीति में बदलाव की बड़ी कड़ी मान रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक रवि शंकर कश्यप ने कहा राहुल गांधी को लेकर चाहे जिस तरह के बयान की बात की जाए लेकिन राजनीतिक दलों के लिए एक संदेश जरूर है कि बोलने में बयान की मर्यादा का ध्यान रखना भी जरूरी है. अगर राहुल गांधी के लिए यह नियम लागू होता है तो दूसरे राजनीतिक दलों को भी अपने गिरेबान में झांक कर देख लेना चाहिए.
देश बदल रहा है: लोकतंत्र में सत्ता किसी की जागीर नहीं है. जनता ने जगह दी है इसलिए सरकार चलाना है. इसमें किसी की मनमानी पन की बात नहीं है. यह सभी राजनीतिक दलों के लिए एक संदेश है कि बोलने की मर्यादा क्या होनी चाहिए. राहुल गांधी ने इस अध्यादेश को आज के 10 साल पहले फाड़ करके यह बता दिया था कि राजनीति में बदलाव और राजनैतिक शुचिता की आवश्यकता हर जगह है. राहुल गांधी ने जो किया वह उस समय के राजनीतिक हालात पर थे. यह अलग बात है कि आज कानून का हथौड़ा उनके ऊपर ही गिर गया. जिस कानून के तहत उन पर कार्रवाई हुई है, निश्चित तौर पर उनकी राजनीति के लिए एक संकट का दौर है. लेकिन जो लोग आज खुश हैं उनको अपने गिरेबान में झांक कर देख लेना चाहिए कि अगर राजनीति में बोलने वाली सुचिता का ध्यान नहीं रखा गया तो शायद अगला नंबर उनका भी हो सकता है.
राहुल गांधी को संसद की सदस्यता जाने के बाद राजनीतिक दलों के लिए बात चिंता भी है और चिंतन का भी अब आगे स्वच्छ राजनीति के लिए कैसे चलना है. क्योंकि बहुत कुछ कह देने के बाद अगर इस कानून की जद में आए तो सजा का समय और उसके बाद कम से कम 6 साल तक तो राजनीति से दूर रहना ही पड़ेगा. भारत में इसे बदलाव के नजरिए से देखना चाहिए और यह बदलते भारत की एक बड़ी कहानी लिखेगा इसमें दो राय नहीं है. राजनीति में बोलने वाले और राजनीत में कहने वालों को नजर और नजरिया बदल लेना चाहिए.