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कहीं राजनीतिक प्रयोगशाला तो नहीं बन रहा है झारखंड, कांग्रेस ने कहा- बढ़े विधानसभा सीटें, BJP ने कांग्रेस पर फोड़ा ठीकरा - राजनीतिक प्रयोगशाला बन रहा झारखंड

अपने गठन के लगभग 19 साल के दौरान झारखंड ने ढेरों राजनीतिक प्रयोग देखें. इस बार भी झारखंड विकास मोर्चा के बीजेपी में विलय के बाद एक सवाल खड़ा हो गया है कि क्या अस प्रदेश में ऐसे ही राजनीतिक प्रयोग होते रहेंगे.

Politicle exprement, राजनीतिक प्रयोग
कांग्रेस और बीजेपी का कार्यालय

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Published : Feb 18, 2020, 8:25 PM IST

रांची: प्रदेश में झारखंड विकास मोर्चा के बीजेपी में विलय के बाद एक सवाल खड़ा हो गया है कि कहीं झारखंड राजनीतिक दलों के लिए महज एक प्रयोगशाला बनकर तो नहीं रह गया है. दरअसल अपने गठन के लगभग 19 साल के दौरान राज्य ने ढेरों राजनीतिक प्रयोग देखें.

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2000 में बना था झारखंड

15 नवंबर 2000 को बने राज्य में पहली सरकार गठबंधन दलों के सहयोग से बनी. उसके बाद राज्य में सत्ता की चाबी निर्दलीय विधायकों के हाथ चली गई. स्थितियां ऐसी हुई की पिछले 19 वर्ष में राज्य ने एक ग्यारह मुख्यमंत्री देखें और तीन बार राष्ट्रपति शासन में लगा. इतना ही नहीं झारखंड देश का पहला राज्य बना जहां राज्यसभा चुनाव तक रद्द कर दिया गया. इसके अलावा यह देश का तीसरा ऐसा राज्य बना जहां एक निर्दलीय विधायक को 2 साल से अधिक समय तक मुख्यमंत्री पद पर रहने का मौका मिला.

ये रहा है झारखंड का राजनीतिक सफर

पुराने पन्नों को पलट कर देखें तो झारखंड में प्रदेश में सत्ता की बागडोर सबसे पहले बीजेपी को मिली. जिसमें बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री बने, लगभग ढाई साल के बाद नेतृत्व परिवर्तन हुआ और अर्जुन मुंडा को सीएम बनाया गया. वहीं 2005 में 10 दिनों के लिए झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने और उसके बाद सत्ता की चाबी बीजेपी के पास आयी. लगभग डेढ़ साल तक राज्य में बीजेपी का शासन रहा 2006 सितंबर में मधु कोड़ा मुख्यमंत्री बने. कोड़ा के बाद शिबू सोरेन को राज्य का मुख्यमंत्री बनने का दो बार मौका मिला. इस दौरान राज्य में 3 टर्म राष्ट्रपति शासन लगा. 2014 दिसंबर तक मुंडा और हेमंत सोरेन के हाथ भी सत्ता की चाबी आई. वहीं 2014 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार राज्य में 5 साल तक स्थिर सरकार चली. निर्दलीय सीएम बनने वाले कोड़ा देश के तीसरे शख्स सितंबर 2006 से अगस्त 2008 तक राज्य में मधु कोड़ा मुख्यमंत्री के रूप में रहे. कोल्हान के जगन्नाथपुर विधानसभा इलाके से से चुनकर आए कोड़ा बीजेपी के पुराने कैडर थे लेकिन बाद में उन्होंने राहे अलग कर ली और निर्दलीय विधायक बने.

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पहले भी दिखे हैं कई उदाहरण

कोड़ा के पहले 1971 में ओडिशा में विश्वनाथ दास पहले निर्दलीय मुख्यमंत्री बने. उसके बाद 2002 में मेघालय में एफ खोंगलाम दूसरे निर्दलीय सीएम थे. कोड़ा के कार्यकाल में राज्य में पहली बार मनी लॉन्ड्रिंग का मामला उछला और इस आरोप में उन्हें जेल भी जाना पड़ा. बाद में उन्हें जय भारत समानता पार्टी बनाई जिसका कांग्रेस में विलय हो गया. विधायकों के खरीद फरोख्त को लेकर लगते रहे आरोप विधायकों के खरीद-फरोख्त को लेकर राज्य में शुरू से आरोप लगते रहे. राज्य में बनी गठबंधन सरकारे हो या फिर निर्दलीय विधायकों के समर्थन से बनी सरकारें, विधायकों के खरीद-फरोख्त का आरोप राज्य गठन के बाद से लगते रहे.

2012 में रद्द हो चुका है राज्यसभा चुनाव

यहां तक कि इसी वजह से 2012 में होने वाले राज्यसभा चुनाव को भी रद्द कर दिया गया. यह पहला मौका था जब राज्यसभा चुनाव को रद्द किया गया. दरअसल चुनाव के ऐन पहले राजधानी रांची से एक उम्मीदवार के कथित रिश्तेदार की गाड़ी से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद की गई थी. जिसके बाद चुनाव आयोग के निर्देश पर राज चुनाव रद्द कर दिया गया.

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जेवीएम दूसरा राजनीतिक दल जिसका हुआ विलय

वहीं, झारखंड विकास मोर्चा प्रदेश में बड़ा दूसरा राजनीतिक दल है, जिसका दूसरे दल में औपचारिक विलय हुआ. इससे पहले कोड़ा की जय भारत समानता पार्टी का कांग्रेस में विलय हुआ था. 2006 में अलग हुए झारखंड विकास मोर्चा की राज्य में हुए तीन विधानसभा चुनाव में भागीदारी रही. सबसे बड़ी बात है कि तीनों चुनाव में झाविमो की नजदीकियां यूपीए की तरफ रही. 2009 में पार्टी के 11 विधायक जीते, 2014 में 8 और 2019 में 3 विधायक असेंबली पहुंचे. हालांकि है सोमवार को हुए इस विलय को लेकर भी अब सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं. कांग्रेस ने दावा किया है कि मरांडी का बीजेपी में विलय तकनीकी रूप से सही नहीं है.

क्या मानते हैं राजनीतिक दल

झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता लाल किशोर नाथ शाहदेव ने कहा कि किस तरह के एक्सपेरिमेंट के लिए बीजेपी पूरी तरह से जिम्मेदार है. उन्होंने कहा कि इसकी सबसे बड़ी वजह यह भी है कि प्रदेश में विधानसभा सीटें काफी कम है. ऐसे में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा गया है. इसके हल के रूप में विधानसभा सीटें बढ़ाने बढ़ाई जानी चाहिए. वहीं बीजेपी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के उपाध्यक्ष अशोक बड़ाईक ने कहा कि आंकड़ों के हेर-फेर के कारण इस तरह के काम करती रही है.

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