रांची: झारखंड के अब्दुल सत्तार चौधरी एक ऐसा नाम है, जो पिछले 42 वर्षों से राष्ट्रध्वज का निर्माण कर रहे हैं. गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस रांची और इसके आसपास के क्षेत्रों के लोग तिरंगा झंडा यहां से लेकर जाते हैं. इस दुकान की पहचान ही अलग है, क्योंकि अब्दुल सत्तार चौधरी झंडा बनाने और बेचने के अलावा तिरंगे का महत्व भी यहां आने वाले ग्राहकों को बताते हैं.
चार महीनों से कर रहे हैं तैयारी
रांची में भी गणतंत्र दिवस को लेकर जश्न की तैयारी है. इस जश्न में चार चांद लगा रहे हैं राजधानी के रहने वाले अब्दुल सत्तार चौधरी, जो अपर बाजार स्थित पुस्तक पथ के पास अपनी तिरंगे की एक दुकान चलाते हैं. इस दुकान में इनके परिवार के सदस्य भी हाथ बंटाते हैं. इनका कहना है कि 4 महीने पहले से ही वह तिरंगा निर्माण में लग जाते हैं, ताकि राजधानी के लोगों को देश की शान तिरंगा आसानी से मुहैया हो सके. उनका कहना है कि जैसे-जैसे समारोह का दिन नजदीक आता है. वैसे-वैसे तिरंगा निर्माण का काम कम होता जाता है और बिक्री बढ़ती है, लेकिन इस बार परिस्थिति कुछ और है.
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एकता और अखंडता का परिचय देता है तिरंगा
कोरोना के कारण देश भर के सभी शैक्षणिक संस्थान बंद थे. धीरे-धीरे इसे खोला तो गया, लेकिन सीमित व्यक्तियों के साथ ही झंडोत्तोलन किया जाएगा. ऐसे में इस बार मुनाफा न के बराबर है. इसके बावजूद पूरे परिवार के साथ वह इस काम में डटे हुए हैं. उनका मानना है कि आजादी के बाद का यह सफर है. हालांकि, उनके स्मरण में 40 से 41 साल से तिरंगा निर्माण में इनका परिवार जुटा हुआ है. संदेश के तौर पर अब्दुल सत्तार चौधरी लोगों को कोरोना से बचने के लिए कोविड-19 के गाइडलाइन का पालन करने की अपील करते हैं. उसके बाद कहते हैं कि लाल और हरा नहीं, बल्कि सभी घरों में लोग एक तिरंगा फहराएं. यह हमारी एकता और अखंडता इसका परिचय है.
तिरंगे की शान में नहीं आता है मजहब