रांची: झारखंड विधानसभा में बजट सत्र के दौरान आज सीएम हेमंत सोरेन ने कई बड़ी घोषणाएं की हैं. सदन में मुख्यमंत्री ने कहा कि अब राज्य के प्रशिक्षित बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता के रूप में हर साल 5 हजार रुपये दिए जाएंगे. वहीं, विधवा, दिव्यांग और आदिम जनजाति को 50 प्रतिशत अधिक राशि यानी अब सालाना 7500 रुपये मिलेंगे. इसके अलावा निजी क्षेत्र में स्थानीय को 75 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलेगा.
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झारखंड देश में एक और ऐसा राज्य बन गया है, जहां प्राइवेट नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण दिया जाएगा. सोमवार को राज्य की विधानसभा में इस संबंध में मुख्यमंत्री की ओर से ऐलान किया गया. इसके मुताबिक, औद्योगिक इकाइयों, फैक्ट्री, संयुक्त उद्यम और पीपीपी मॉडल पर आधारित प्रोजेक्ट तक में 75 फीसदी नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए रिजर्व रहेंगी. इसके मुताबिक, राज्य में प्रति महीने 30,000 रुपये तक वेतन वाली निजी क्षेत्र की 75 फीसदी नौकरियां स्थानीय उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होंगी.
पक्ष-विपक्ष के नेताओं की प्रतिक्रिया विपक्षी नेताओं ने बताया सिर्फ लोकलुभावने वादे
मुख्यमंत्री की ओर से निजी क्षेत्र में आरक्षण और बेरोजगारी भत्ता पर की गई घोषणा के बाद विभिन्न दलों ने मिली जुली प्रतिक्रिया व्यक्त की है. सत्तारूढ़ दल झामुमो के विधायक दीपक बिरुआ और कांग्रेस विधायक बंधु तिर्की ने इसकी सराहना करते हुए कहा कि इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार का अवसर मिलेगा.
भाजपा विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार इस तरह के लोकलुभावन कई बार घोषणा कर चुकी है, लेकिन इसका लाभ कितना मिलता है. वह सब कोई जानते हैं. साल में एक बार पांच हजार बेरोजगारी भत्ता देकर सरकार ने ऊंट के मुंह में जीरा देने का काम किया है. जिससे बेरोजगार युवाओं को कोई फायदा नहीं होगा. निर्दलीय विधायक सरयू राय भी सरकार के इस निर्णय पर असंतुष्ट दिखे.
वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि हेमंत सोरेन ने चुनाव के वक्त जो जनता से वादा किए थे, उसे पूरा करने में विफल रहे हैं. बाबूलाल मरांडी ने कहा कि राज्य के बेरोजगारों के लिए हेमंत सोरेन ने चुनाव के वक्त 7,000 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया था लेकिन सरकार में आने के बाद वह इसे पूरा करने में फेल रहे.
कई राज्यों में धरातल पर नहीं दिख रहे वादे
कई दूसरे राज्यों में भी प्राइवेट नौकरियां लोकल लोगों के लिए रिजर्व करने के प्रस्ताव पर विचार हो चुका है, लेकिन अब तक ऐसे किसी प्रस्ताव को लागू नहीं किया गया है. यह भी प्रावधान किया गया है कि अगर कंपनियों को राज्य में प्रशिक्षित युवक-युवती नहीं मिलते हैं तो सरकार के साथ मिलकर तीन साल में ऐसे लोगों को प्रशिक्षित भी करेगी. निजी क्षेत्रों में आरक्षण लागू करने वाले कई राज्यों में भी इस तरह का प्रावधान है, जहां स्थानीय लोगों में जरूरी कौशल नहीं होने पर कंपनियों को उन्हें राज्य सरकार के साथ मिलकर प्रशिक्षित करती है, फिर उन्हें नौकरी में रखती है.
इन राज्यों में पहले से लागू है ऐसा प्रावधान
ऐसा करने वाला झारखंड देश का 7वां राज्य है. इससे पहले आंध्रप्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार में भी यह नियम लागू किया गया है. हरियाणा में 50 हजार रुपए तक की सैलरी वाले पद को इस आरक्षण के दायरे में रखा गया है. आंध्र प्रदेश के इस नियम को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है, वहां अभी तक इसे लागू नहीं किया गया है. साथ ही हरियाणा में भी इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी गई है. वहीं बिहार में नवंबर 2017 में नीतीश कुमार ने निजी कंपनियों को भी आरक्षण के दायरे में लाने का प्रवाधान लागू कर दिया था. झारखंड बस ऐसे कई राज्यों में से एक और नया उदाहरण है, जो निजी क्षेत्र की नौकरी में आरक्षण को लागू करने की कोशिश कर रहा है.
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कानून को लागू करने में कई चुनौतियों से गुजरना होगा
इतिहास की पन्नों को पलट कर देखें तो एक सार्वजनिक नीति के रूप में यह नुकसानदेह है. बढ़ती बेरोजगारी का सामना करते हुए आंध्र प्रदेश ने भी ऐसे ही कानून को पारित करने का प्रयास किया था, लेकिन उसे असंवैधानिक बताकर हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. फिर कर्नाटक ने भी हाल ही में इसी तरह के प्रावधानों के जरिये वर्ष 2020 में निजी क्षेत्र को स्थानीय उम्मीदवारों को वरीयता देने के लिए कहा था, लेकिन राज्य के पास यह सुनिश्चित करने के लिए कोई तंत्र नहीं है कि कंपनियां उसके निर्देशों का अनुपालन कर रही हैं या नहीं.
आरक्षण हमेशा से राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा रहा है. यह वोट दिलाऊ भी माना जाता है, इसलिए रूप बदल-बदल कर फैसला होता रहा है. हाल ही में हरियाणा सरकार निजी क्षेत्र में पचास हजार रुपये तक के वेतन की नौकरियों में स्थानीय निवासियों को 75 फीसद आरक्षण का कानून लाई है, लेकिन इसका कोर्ट की कसौटी पर खरा उतरना मुश्किल है. संविधान जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है. साथ ही संविधान में प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समानता, कहीं भी बसने और रोजगार की आजादी का मौलिक अधिकार है.