रांचीः कृषि सचिव अबुबकर सिद्दीकी ने झारखंड में कृषि सम्बन्धी सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों, सरकारी विनियोग, वैज्ञानिकों की आधुनिक तकनीकों, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और किसानों के प्रयासों के प्रभाव के आकलन तथा नीति निर्माण और कार्यान्वन में कमियों को चिन्हित करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन पर जोर दिया है.
उन्होंने कहा कि ऐसी समिति के निष्कर्ष से कृषि क्षेत्र के भावी विकास के लिए एक सुदृढ़ रोडमैप तैयार करने में मदद मिलेगी.
मंगलवार को बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान परिषद् की 40वीं बैठक को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि धान-गेहूं की खेती की परंपरागत सोच में बदलाव लाते हुए राज्य के किसानों को समेकित कृषि पद्धति, बागवानी फसल तथा उच्च कीमत वाली नकदी फसलें अपनाने को प्रेरित करना चाहिए.
विश्वविद्यालय में शिक्षकों की घोर कमी की ओर अपना ध्यान आकृष्ट कराये जाने पर उन्होंने कहा कि नियुक्ति के लिए झारखंड लोक सेवा आयोग को अब तक भेजी गयी अधियाचना की प्रति उन्हें शीघ्र भेजी जाए ताकि वह भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाने हेतु आयोग के अध्यक्ष से बात कर सकें.
उन्होंने कहा कि बीएयू का परिनियम 3-4 दशक पुराना है, इसमें सुधार-बदलाव सम्बन्धी अनुशंसा के लिए विश्वविद्यालय को शीघ्र एक समिति गठित करनी चाहिए.
अनुशंसा प्राप्त होने के दो महीनों के अंदर सरकार से इसकी स्वीकृति दिलाने का वह प्रयास करेंगे. उन्होंने कहा बीएयू के शिक्षकों को करियर एडवांसमेंट स्कीम और सातवें वेतनमान का लाभ शीघ्र मिले इसके लिए सरकार गंभीर है और वर्तमान वित्त वर्ष के अंत तक दोनों के संबंध में आदेश निर्गत हो जाने की संभावना है.
राज्य की कृषि निदेशक राखी निशा उरांव ने कृषि उत्पादकता में वृद्धि, किसानों और कृषक महिलाओं के सशक्तिकरण तथा मौसम परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के लिए बीएयू और कृषि विभाग के बीच बेहतर तालमेल और समन्वयन पर जोर दिया.
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने बेहतर शोध परिणाम के लिए वैज्ञानिकों को प्रायोगिक खेतों में ज्यादा समय देने की सलाह दी.