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झारखंड की 'पॉलिटिकल हिस्ट्री' में जुड़ा नया अध्याय, बिना नेता प्रतिपक्ष हुए दो असेंबली सेशन

झारखंड विधानसभा देश की पहली विधानसभा बनने जा रही है, जहां दो सत्र बिना नेता प्रतिपक्ष के चलाए गए. इस मामले के लेकर पक्ष और विपक्ष अलग-अलग दलीलें दे रहे हैं. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि जब चुनाव आयोग में तस्वीर साफ कर दी है, तब ऐसे में स्पीकर को मामला लटकाना नहीं चाहिए. जेएमएम ने भी इस मामले में तर्क दिया है.

Two assembly sessions in Jharkhand without  leader of opposition
झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पर सस्पेंस बरकरार

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Published : Jul 7, 2020, 4:06 PM IST

रांची: अपने गठन के लगभग दो दशक के भीतर ही राजनीतिक अस्थिरता, घोटालों और राजनीतिक प्रयोगों के लिया विख्यात झारखंड की 'पोलिटिकल हिस्ट्री' में एक और अध्याय जुड़ गया है. राज्य की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था झारखंड विधानसभा देश की पहली विधानसभा बनने जा रही है, जहां पिछले 6 महीने में हुए 2 सत्र बिना नेता प्रतिपक्ष के चलाए गए.

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दिसंबर 2019 में बनी नई सरकार का विशेष सत्र आयोजित हुआ. उसके बाद वित्त वर्ष 2020-21 का बजट सत्र भी आहूत किया गया, लेकिन दोनों सत्रों में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली ही पड़ा रहा. हालांकि इसके पीछे सत्ता पक्ष और विपक्ष की अपनी-अपनी दलीलें हैं. परिस्थितियों पर नजर डालें तो फिलहाल यह स्थितियां अभी बनी रहेंगी.


कहां फंसा हुआ है पेंच
दरअसल झारखंड विकास मोर्चा के मुखिया रहे बाबूलाल मरांडी ने अपने दल का विलय फरवरी, 2020 में बीजेपी में कराया. इसके बाद उन्हें बीजेपी विधायक दल का नेता चुना गया. पार्टी ने यह जानकारी झारखंड विधानसभा अध्यक्ष को दी, वहीं दूसरी तरफ झारखंड विधानसभा अध्यक्ष के पास यह दल बदल के तहत चला गया.

हालांकि पिछले दिनों हुए राज्यसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया कि बाबूलाल मरांडी की पार्टी का संवैधानिक रूप से बीजेपी में विलय हुआ है. ऐसे में बाबूलाल मरांडी बीजेपी के विधायक हैं. इसको लेकर स्पीकर को तस्वीर साफ करनी है.

क्या कहते हैं राजनीतिक दल
इस मामले में बीजेपी का कहना है कि बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिया जाना चाहिए. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि जब चुनाव आयोग में तस्वीर साफ कर दी है, तब ऐसे में स्पीकर को मामला लटकाना नहीं चाहिए, इससे स्थापित लोकतंत्र की मर्यादाएं टूटती हैं.

वहीं दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सह प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि बीजेपी आयातित नेताओं के भरोसे रही है, उसे चाहिए कि रांची से विधायक सीपी सिंह जैसे कर्मठ नेता को विधायक दल का नेता बना दे, सारी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी.

उन्होंने कहा कि जहां तक संवैधानिक संस्थाओं की बात है. यह सारी स्थितियां बीजेपी की वजह से हो रही हैं, अगर बीजेपी ने शुरू में ही अपना नेता प्रतिपक्ष चुन लिया होता तो स्थितियां यह नहीं होती.

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सूचना आयोग में नियुक्ति लटकी
दरअसल नेता प्रतिपक्ष न होने की वजह से राज्य का सूचना आयोग भी निष्क्रिय हो गया है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि आयोग के पास न तो मुख्य सूचना आयुक्त है और ना ही सूचना आयुक्त. सूचना आयुक्त का चयन मुख्यमंत्री के नेतृत्व में नेता प्रतिपक्ष सहित अन्य सदस्यों की कमेटी करती है, लेकिन राज्य में नेता प्रतिपक्ष का चयन अभी तक नहीं हुआ है.

इस वजह से सूचना आयोग के पदों पर नियुक्ति नहीं हो पाई है. राज्य के कार्यवाहक मुख्य सूचना आयुक्त हिमांशु शेखर चौधरी भी अप्रैल महीने में रिटायर हो चुके हैं रिटायर हो चुके हैं. वहीं दूसरी तरफ लोकायुक्त की नियुक्ति में भी नेता प्रतिपक्ष की भूमिका होती है.


राज्य गठन से अब तक ये रहे हैं झारखंड असेंबली में नेता प्रतिपक्ष
झारखंड विधानसभा के वेबसाइट पर मिली जानकारी के अनुसार स्टीफन मरांडी 24 नवंबर, 2000 से 10 जुलाई, 2004 तक नेता प्रतिपक्ष रहे. उनके बाद हाजी हुसैन अंसारी को 2 अगस्त, 2004 से 1 मार्च, 2005 तक नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी मिली.

वहीं 16 मार्च, 2005 से 18 सितंबर, 2006 तक सुधीर महतो, 4 दिसंबर, 2006 से 29 मई, 2009 तक अर्जुन मुंडा, 7 जनवरी, 2010 से 18 जनवरी, 2013 तक राजेंद्र सिंह, 19 जुलाई, 2013 से 23 दिसंबर, 2014 तक अर्जुन मुंडा, 7 जनवरी, 2015 से 28 दिसंबर 2019 तक हेमंत सोरेन झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे. साथ ही पिछले 20 वर्षों में राज्य में डेढ़ साल राष्ट्रपति शासन के दौर भी बीता है.

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