रांची: अपने गठन के लगभग दो दशक के भीतर ही राजनीतिक अस्थिरता, घोटालों और राजनीतिक प्रयोगों के लिया विख्यात झारखंड की 'पोलिटिकल हिस्ट्री' में एक और अध्याय जुड़ गया है. राज्य की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था झारखंड विधानसभा देश की पहली विधानसभा बनने जा रही है, जहां पिछले 6 महीने में हुए 2 सत्र बिना नेता प्रतिपक्ष के चलाए गए.
दिसंबर 2019 में बनी नई सरकार का विशेष सत्र आयोजित हुआ. उसके बाद वित्त वर्ष 2020-21 का बजट सत्र भी आहूत किया गया, लेकिन दोनों सत्रों में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली ही पड़ा रहा. हालांकि इसके पीछे सत्ता पक्ष और विपक्ष की अपनी-अपनी दलीलें हैं. परिस्थितियों पर नजर डालें तो फिलहाल यह स्थितियां अभी बनी रहेंगी.
कहां फंसा हुआ है पेंच
दरअसल झारखंड विकास मोर्चा के मुखिया रहे बाबूलाल मरांडी ने अपने दल का विलय फरवरी, 2020 में बीजेपी में कराया. इसके बाद उन्हें बीजेपी विधायक दल का नेता चुना गया. पार्टी ने यह जानकारी झारखंड विधानसभा अध्यक्ष को दी, वहीं दूसरी तरफ झारखंड विधानसभा अध्यक्ष के पास यह दल बदल के तहत चला गया.
हालांकि पिछले दिनों हुए राज्यसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया कि बाबूलाल मरांडी की पार्टी का संवैधानिक रूप से बीजेपी में विलय हुआ है. ऐसे में बाबूलाल मरांडी बीजेपी के विधायक हैं. इसको लेकर स्पीकर को तस्वीर साफ करनी है.
क्या कहते हैं राजनीतिक दल
इस मामले में बीजेपी का कहना है कि बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिया जाना चाहिए. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि जब चुनाव आयोग में तस्वीर साफ कर दी है, तब ऐसे में स्पीकर को मामला लटकाना नहीं चाहिए, इससे स्थापित लोकतंत्र की मर्यादाएं टूटती हैं.
वहीं दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सह प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि बीजेपी आयातित नेताओं के भरोसे रही है, उसे चाहिए कि रांची से विधायक सीपी सिंह जैसे कर्मठ नेता को विधायक दल का नेता बना दे, सारी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी.